दिन में कई बार रंग बदलता है यहां का शिवलिंग, हिमाचल की किन्नर कैलाश यात्रा होती है अनोखी

Kailash parvat : जिस पर कोई नहीं चढ़ पाया आज तक! जानिए क्यों - Aavazलाइव हिंदी खबर :-कैलाश मानसरोवर यात्रा तो आपने कई बार सुना होगा लेकिन बहुत कम ही लोग हैं जिन्होंने सावन में होने वाले किन्नर कैलाश यात्रा के बारे में सुना होगा। तिब्बत स्थित कैलाश मानसरोवर के बाद किन्नर कैलाश को ही दूसरा सबसे बड़ा कैलाश पर्वत माना जाता है। सावन का महीना शुरू होते ही यहां पर बाबा के भक्तों का सैलाब लगना शुरू हो जाता है। हिमाचल प्रदेश की इस जगह को सबसे खतरनाक भी कहा जाता है। किन्नर कैलाश सदियों से हिंदू व बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए आस्था का केंद्र है। इस यात्रा के लिए देश भर से लाखों भक्त किन्नर कैलाश के दर्शन के लिए आते हैं। किन्नर कैलाश पर प्राकृतिक रूप से उगने वाले ब्रह्म कमल के हजारों पौधे देखे जा सकते हैं।

सतलज नदी पार करके पूरा होता है सफर

भगवान शिव की तपोस्थली किन्नौर के बौद्ध लोगों और हिंदू भक्तों की आस्था का केंद्र किन्नर कैलाश समुद्र तल से 24 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है। हर साल सैकड़ों शिव भक्त जुलाई व अगस्त में जंगल व खतरनाक रास्ते से हो कर किन्नर कैलाश पहुंचते हैं। किन्नर कैलाश की यात्रा शुरू करने के लिए भक्तों को जिला मुख्यालय से करीब सात किलोमीटर दूर राष्ट्रीय राजमार्ग-5 स्थित पोवारी से सतलुज नदी पार कर तंगलिंग गाव से हो कर जाना पड़ता है।

 

पार्वती कुंड में सिक्का डालने से होती है मन की मुराद पूरी

गणेश पार्क से करीब पाच सौ मीटर की दूरी पर पार्वती कुंड है। इस कुंड के बारे में मान्यता है कि इसमें श्रद्धा से सिक्का डाल दिया जाए तो मुराद पूरी होती है। लोग इस कुंड में नहाने के बाद करीब 24 घंटे की चढ़ाई के बाद किन्नर कैलाश स्थित शिवलिंग के दर्शन करने पहुंचते हैं।

1993 से शुरू हुई यात्रा

1993 से पहले इस स्थान पर आम लोगों के आने-जाने पर प्रतिबंध था। 1993 में पर्यटकों के लिए खोल दिया गया, जो 24000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां 40 फीट ऊंचे शिवलिंग हैं। यह हिंदू और बौद्ध दोनों के लिए पूजनीय स्थल है। इस शिवलिंग के चारों ओर परिक्रमा करने की इच्‍छा लिए हुए भारी संख्‍या में श्रद्धालु यहां पर आते हैं।

पौराणिक महत्व

किन्नर कैलाश के बारे में अनेक मान्यताएं भी प्रचलित हैं। कुछ विद्वानों के विचार में महाभारत काल में इस कैलाश का नाम इन्द्रकीलपर्वत था, जहां भगवान शंकर और अर्जुन का युद्ध हुआ था और अर्जुन को पासुपातास्त्रकी प्राप्ति हुई थी। यह भी मान्यता है कि पाण्डवों ने अपने बनवास काल का अन्तिम समय यहीं पर गुजारा था। किन्नर कैलाश को वाणासुर का कैलाश भी कहा जाता है।

रंग बदलता है शिवलिंग

यहां के शिवलिंग की जो खास बात है वह यह की दिन में कई बार यह रंग बदलता है। सूर्योदय से पूर्व सफेद, सूर्योदय होने पर पीला, मध्याह्न काल में यह लाल हो जाता है। इसके बाद फिर क्रमश: पीला, सफेद होते हुए संध्या काल में काला हो जाता है। इसके बदलते रंग का रहस्य आज तक कोई नहीं समझ पाया है। कुछ लोगों का मत है कि यह एक स्फटिकीय रचना है और सूर्य की किरणों के विभिन्न कोणों में पड़ने के साथ ही यह चट्टान रंग बदलती नजर आती है।

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