लाइव हिंदी खबर (हेल्थ कार्नर ) :- बच्चों की खानपान संबंधी समस्या के मामले उन घरों में ज्यादा देखे जाते हैं जहां या तो माता-पिता बच्चे को शरीर की जरूरत के अनुसार खाना नहीं दे पाते हैं या उन्हें यह जानकारी नहीं होती कि किस उम्र में उसे क्या व कितना खिलाएं। बच्चों को बाहर के खाने की आदत, ज्यादा समय टीवी देखने से भी इनका खानपान प्रभावित होता है।
सिर्फ दूध ही काफी नहीं
जन्म के बाद छह माह तक सिर्फ मां का दूध बच्चे के शरीर में पौष्टिक तत्त्वों की पूर्ति कर रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। इसे सामान्यत: ढाई साल तक ऊपर के दूध या अन्य हल्की चीजें जैसे खिचड़ी, राबड़ी, बिस्किट, दलिया, कॉर्नफ्लैक्स के साथ पिलाना जरूरी है। कुछ महिलाएं ऊपर का दूध शुरू करने के बाद ब्रेस्टफीडिंग बंद कर देती हैं जो गलत है। कई बार वे बेसन, मैदा या आटे से बनी भारी चीजें शिशुओं को देना शुरू कर देती हैं जिससे उसे पेट से जुड़ी दिक्कतें व कमजोरी महसूस होती है। ऐसे ही दूध कैल्शियम की पूर्ति तब करता है जब साथ में कभी-कभी बच्चे को दूध से बनी चीजें जैसे पनीर, मक्खन, दही, छाछ आदि भी दें। ये चीजें दूध न पचने पर भी दे सकती हैं।
स्वाद के विरुद्ध न खिलाएं
बच्चे का विकास न होने के पीछे उसकी इच्छा व स्वाद के विरुद्ध और जबरदस्ती खाने पीने की चीजें देना भी एक कारण है। इसलिए उसके खाने में नई-नई चीजें शामिल करें।
कार्ब, प्रोटीन व फैट का मेल
55 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट (सभी तरह का अनाज), 25-30 प्रतिशत फैट (दूध, दही, छाछ, तेल खासकर मूंगफली व तिल), घी) और 25 प्रतिशत प्रोटीन (दाल) से युक्त डाइट हो। रोटी व चावल को अलग-अलग तरह से जैसे कभी प्लेन या स्टफ परांठा, पावभाजी, पुलाव या मिक्स वेज पुलाव व खिचड़ी आदि के रूप में दे सकते हैं। प्रोटीन की पूर्ति के लिए दाल को भूनकर नमकीन बनाकर भी दें तो बच्चे शौक से खा लेते हैं।
भ्रम से बचें
आमतौर पर फैले कुछ भ्रम जैसे गुड़ व आम गर्म होते हैं और शरीर में गर्मी कर त्वचा पर फुंसी की समस्या बढ़ाते हैं। केला ठंडा होता है जो कफ व खांसी का कारण बनता है। ये तभी नुकसान करते हैं जब इन्हें अधिक खाया जाए।