पुत्र की दीर्घायु के लिए रखा जाता हैं ‘सकट चौथ व्रत’, जानें व्रत की विधि

पुत्र की दीर्घायु के लिए रखा जाता हैं ‘सकट चौथ व्रत’, जानें व्रत की विधि लाइव हिंदी खबर :-हिन्दू कैलेंडर के अनुसार माघ मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को ‘सकट चौथ’ के नाम से जाना जाता है। इसदिन स्त्रियां अपनी संतान की दीर्घायु और सफलता के लिए व्रत करती हैं। यह व्रत भगवान गणेश से जुड़ा है और ऐसी  मान्यता प्रचलित है कि इस व्रत को वही महिलाएं रख सकती हैं जिनकी पुत्र संतान हो।

सकट चौथ के दिन स्त्रियां सुबह स्नानादि करके व्रत का संकल्प लेती हैं। इसके बाद गणेश पूजा की जाती है और शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही व्रत संपूर्ण होता है। यह निर्जला उपवास होता है। पूरे दिन अन्न या जल ग्रहण नहीं किया जाता है।

सकट चौथ क्यों मनाया जाता है और इसदिन व्रत क्यों किया जाता है इसके पीछे एक पौराणिक कथा प्रचलित है। कथा के अनुसार सतयुग में महाराज हरिश्चंद्र के नगर में एक कुम्हार रहता था। एक दिन की बात है, उसने बर्तन बनाकर आंवा लगाया पर आंवा पका ही नहीं, बर्तन कच्चे रह गए।

उसने पुनः प्रयास किया लेकिन वह दोबारा विफल ही रहा। बार-बार नुकसान होते देख उसने समाधान खोजने की कोशिश की। एक तांत्रिक से जब उसने  पूछा तो तांत्रिक ने उसे एक बच्चे की बलि देने को कहा। कुम्हार को मालूम पड़ा कि हाल ही में तपस्वी ऋषि शर्मा की मृत्यु हुई है और उनका एक पुत्र भी है।

कुम्हार ने उसी पुत्र को पकड़ कर सकट चौथ के दिन आंवा में डाल दिया। उधर दूसरी तरफ बालक की माता उसे खोज रही थी, माता ने गणेश जी का उपवास रखा हुआ था और पूरा दिन गणेश का नाम भी जप रही थी।

अगले दिन कुम्हार ने देखा कि बालक सुरक्षित घूम रहा है और उसका आंवा भी पक गया है। यह देख उसे पश्चाताप हुआ और उसने अपना पाप राजा के सामने स्वीकार किया। जब राजा ने बालक की माता से इस चमत्कार का रहस्य पूछा तो मालूम हुआ का गणेश अराधना के चलते ही बालक को कोई नुकसान नहीं हुआ। तब से सकट चौथ पर गणेश पूजन और व्रत का चलन चला।

व्रत पूजा विधि:

सकट चौथ पर सुबह स्नान के बाद भगवान गणेश की इस मंत्र से पूजा करें – “गजाननं भूत गणादि सेवितं,कपित्थ जम्बू फल चारू भक्षणम्।
उमासुतं शोक विनाशकारकम्, नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम्॥”

इसके बाद पूरे दिन निर्जल उपवास करें। शाम होने पर पुनः स्नान करें। इसके बाद तिल के लड्डू या छोटे छोटे पहाड़ बना सकते हैं। कुछ जगहों पर तिल के इस मिश्रण से बकरा भी तैयार किया जाता है जिसकी बलि घर का कोई बच्चा पूजा के अंत में देता है। ऐसा केवल मान्यता के आधार पर कुछ ही जगहों पर किया जाता है।

अंत में गणेश पूजन करने के बाद चंद्रमा को कलश से अर्घ्य अर्पित करें। धूप  या दीये से उनकी आरती उतारें और अपने पुत्र की लंबी आयु के लिए प्रार्थना करें।

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