हिमालय पर रहने वाले भगवान शिव बहुत ही भोले और जल्दी प्रसन्न होने वाले देवता माने जाते हैं। भगवान शिव की भक्ति सच्चे मन से करने पर वे जल्दी प्रसन्न होकर अपने भक्त को मनचाहा आशीर्वाद देते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं भगवान शिव का एक स्वरूप ऐसा भी है जो कि सृजन से लेकर विनाश का वर्णन करता है। महादेव के इस स्वरूप के बारे में कहा जाता है कि यह रूप घर में नहीं रखना चाहिए। ना ही इस स्वरूप की पूजा की जाती है। परंतु क्यों आइए जानते हैं भगावन शिव के इस स्वरूप की विस्तृत जानकारी….
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भगवान शिव का एक स्वरूप नटराज है। नटराज का अर्थ नट यानी नृत्य और राज का अर्थ राजा से निकाला गया है, अर्थात नटराज का मतलब नृत्य के राजा है। इस स्वरूप में भगवान शिव नृत्य अवस्था में रहते हैं। इस स्वरूप में शिव जी नृत्य के अपने दिव्य कार्य के माध्यम से व्यक्ति के मन से अज्ञानता को दूर करते हैं। नटराज के रूप में भगवान शिव को पहली बार चोल कांस्य की मूर्तियों में चित्रित किया गया था, जहां उन्हें आग की लपटों पर नाचते हुए दिखाया गया था, जिसमें एक पैर बौना और दूसरा हवा में था। बौने को अज्ञानता का प्रतीक माना जाता है। ऊपरी दाहिने हाथ में एक ‘डमरू’ पकड़े हुए यह दर्शाता है कि वह सृजन का स्रोत है। निचला दायां हाथ आशीर्वाद देने के लिए है जो सुरक्षा प्रदान करता है।
सृजन से लेकर विनाश का वर्णन करता है ये स्वरूप
प्राचीन आचार्यों के मतानुसार शिव के आनन्द तांडव से ही सृष्टि अस्तित्व में आती है तथा उनके रौद्र तांडव में सृष्टि का विलय हो जाता है। भगवान शिव के इस स्वरूप में ऊपरी बाएं हाथ में ब्रह्मांड के अंतिम विनाश के लिए साधन आग होती है। वहीं निचले बाएं हाथ बाएं पैर की ओर इशारा करते हैं, यह दर्शाता है कि उसके पैर व्यक्तिगत आत्माओं की एकमात्र शरण हैं। उठा हुआ पैर मुक्ति की तरफ इशारा करता है की वह भ्रम से मुक्ति के लिए खड़ा है। इसी प्रकार नटराज का पूरा स्वरूप सृजन से लेकर विनाश का पूरा वर्णन करता है।