भारतीय संस्कृति में हर त्योहार और पर्व का अपना अलग महत्व होता है। इन्हीं पर्वों में से एक है विजयदशमी पर्व जो की हिंदूओं के प्रमुख त्यौहारों में से माना जाता है। इसे बड़ी ही धूम के साथ मनाया जाता है। शारदीय नवरात्रि के दसवें दिन दशहरा पर्व मनाया जाता है। विजयादशमी यानी दशहरे के दिन रावण दहन होता है और इसी के बाद सभी राज्यों व जगहों पर कई तरह की मान्यताओं को मनाया जाता है। वहीं विजयादशमी पर रावण दहन के बाद शमी के पत्ते को देने की मान्यता बहुत प्रचलित है, तो कई जगहों पर इसके वृक्ष की पूजा की जाती है। क्या आपको पता है की इस दिन शमी के पत्तों ता पूजन व पत्तों को बांटने का प्रचलन क्यों है, यदि नहीं तो आइए आपको बताते हैं
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इसलिए किया जाता शमी वृक्ष का पूजन
दशहरे पर रावण दहन और शस्त्र पूजन के साथ शमीवृक्ष का भी पूजन किया जाता है। वहीं कई प्रांतों में शमी के पत्ते को सोना समझकर देने का प्रचलन है। संस्कृत साहित्य में अग्नि को शमी गर्भ के नाम से जाना जाता है। विजयादशमी पर रावण दहन के बाद कई प्रांतों में शमी के पत्ते को सोना समझकर देने का प्रचलन है, तो कई जगहों पर इसके वृक्ष की पूजा का प्रचलन। इसके पीछे हिंदू धर्म में ये मान्यता है कि महाभारत के युद्ध में पांडवों ने इसी वृक्ष के ऊपर अपने हथियार छुपाए थे और बाद में उन्हें कौरवों से जीत प्राप्त हुई थी। गुजरात कच्छ के भुज शहर में लगभग साढ़े चार सौ साल पुराना एक शमीवृक्ष है।
विजयादशमी के दिन इसकी पूजा करने का एक तात्पर्य यह भी है कि यह वृक्ष आने वाले संकट का पहले से संकेत दे देता है। शमी वृक्ष की पूजा के पीछे एक और कहानी प्रचलित है। सुप्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य वराहमिहिर के अनुसार जिस साल शमी वृक्ष ज्यादा फूलता-फलता है उस साल सूखे की स्थिति का निर्माण होता है।