लाइव हिंदी खबर :- हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार प्राणी का केवल शरीर नष्ट होता है, आत्मा अमर है। आत्मा एक शरीर के नष्ट हो जाने पर दूसरे शरीर में प्रवेश करती है, इसे ही पुनर्जन्म कहते हैं।
पुनर्जन्म के सिद्धांत को लेकर सभी के मन में ये जानने की जिज्ञासा अवश्य ही रहती है कि पूर्व जन्म में वे क्या थे? साथ ही वे ये भी जानना चाहते हैं कि वर्तमान शरीर की मृत्यु हो जाने पर इस आत्मा का क्या होगा?
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, किसी भी व्यक्ति की कुंडली देखकर उसके पूर्व जन्म और मृत्यु के बाद आत्मा की गति के बारे में जाना जा सकता है।
दरअसल, शिशु जिस समय जन्म लेता है, वह समय, स्थान व तिथि को देखकर उसकी जन्म कुंडली बनाई जाती है। उस समय के ग्रहों की स्थिति के अध्ययन कर यह जाना जा सकता है कि वह किस योनि से आया है और मृत्यु के बाद उसकी क्या गति होगी।
आइये जानते हैं कि जन्म कुंडली के अनुसार आप पूर्व जन्म में क्या थे और कौन थे?
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, जिसकी कुंडली में चार या इससे अधिक ग्रह उच्च राशि के अथवा स्वराशि के रहते हैं तो माना जाता है कि उसने उत्तम योनि भोगकर जन्म लिया है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, लग्न में उच्च राशि का चंद्रमा हो तो माना जाता है कि ऐसा व्यक्ति पूर्वजन्म में योग्य वणिक था।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, लग्नस्थ गुरु इस बात का संकेत देता है कि जन्म लेने वाला पूर्वजन्म में वेदपाठी ब्राह्मण था।
अगर जन्मकुंडली में कहीं भी उच्च का गुरु होकर लग्न को देख रहा है तो वह पूर्वजन्म में धर्मात्मा, सद्गुणी व विवेकशील साधु अथवा तपस्वी था।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, यदि जन्म कुंडली में सूर्य छठे, आठवें या बारहवें भाव में हो या तुला राशि का हो तो व्यक्ति पूर्वजन्म में भ्रष्ट जीवन व्यतीत करना वाला था।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, लग्न या सप्तम भाव में यदि शुक्र हो तो जातक पूर्वजन्म में राजा अथवा सेठ था और जीवन के सभी सुख भोगने वाला था।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, लग्न, एकादश, सप्तम या चौथे भाव में शनि इस बात का संकेत है कि व्यक्ति पूर्वजन्म में शुद्र परिवार से संबंधित था एवं पापपूर्ण कार्यों में लिप्त था।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, यदि लग्न या सप्तम भाव में राहु हो तो व्यक्ति की पूर्व मृत्यु स्वभाविक रूप से नहीं हुई।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, चार या इससे अधिक ग्रह जन्म कुंडली में नीच राशि के हो तो ऐसे व्यक्ति ने पूर्वजन्म में निश्चय ही आत्महत्या की होगी।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, कुंडली में स्थित लग्नस्थ बुध स्पष्ट करता है कि व्यक्ति पूर्वजन्म में वणिक पुत्र था और कई क्लेशों से ग्रस्त रहता था।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, सप्तम भाव, छठे भाव या दशम भाव में मंगल की उपस्थिति यह स्पष्ट करती है कि यह व्यक्ति पूर्वजन्म में क्रोधी स्वभाव का था तथा कई लोग इससे पीड़ित रहते थे।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, गुरु शुभ ग्रहों से दृष्ट हो या पंचम या नवम भाव में हो तो जातक पूर्वजन्म में संन्यासी था।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, कुंडली के ग्यारहवें भाव में सूर्य, पांचवे में गुरु और बारहवें में शुक्र इस बात का संकेत देता है कि यह व्यक्ति पूर्वजन्म में धर्मात्मा प्रवृत्ति का था और लोगों की मदद करने वाला था।