इस दिन की जाती है मां दुर्गा के शाकंभरी स्वरूप की पूजा, जाने कारण

इस दिन की जाती है मां दुर्गा के शाकंभरी स्वरूप की पूजा, जाने कारणलाइव हिंदी खबर :-हिन्दू पंचांग के पौष माह में शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को पौष पूर्णिमा कहा जाता है। वहीं शास्त्रों में पौष पूर्णिमा का विशेष महत्व बताया गया है। हिन्दू धर्म और भारतीय जनजीवन में पूर्णिमा तिथि का बड़ा महत्व है।

इस दिन दान, जप और तप का विशेष महत्व होता है। इस साल पूर्णिमा पर गुरुपुष्य योग बनने पर इसका महत्व और बढ़ गया है।पौष पूर्णिमा को शांकभरी पूर्णिमा भी कहते हैं। हिन्दू धर्म ग्रन्थों में पौष पूर्णिमा के दिन दान, स्नान और सूर्य देव को अर्घ्य देने का विशेष महत्व बतलाया गया है।

पौष मास की पूर्णिमा के दिन ही मां दुर्गा ने अपने भक्तों के कल्याण के लिए माता शांकभरी का अवतार लिया था। शास्त्रों के अनुसार, इस दिन मां दुर्गा ने पृथ्वी पर अकाल और गंभीर खाद्य संकट से भक्तों को निजात दिलाने के लिए शांकभरी का रूप लिया था।

इसलिए इन्हें सब्जियों और फलों की देवी माना जाता है। इसलिए इस पूर्णिमा को शांकभरी पू्र्णिमा के नाम से भी जानते हैं। पौष पूर्णिमा के दिन मां दुर्गा की पूजा का भी विधान है। छत्तीसगढ़ के आदिवासी इस दिन को छेरता पर्व मनाते हैं।

शांकभरी पूर्णिमा से जुड़ी मान्यता-
मान्यता है कि पौष पूर्णिमा के दिन गरीब या जरुरतमंद को अन्न, शाक (कच्ची सब्जी) फल व जल का दान देने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। मां दुर्गा की कृपा से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

पौष पूर्णिमा का महत्व
वैदिक ज्योतिष और हिन्दू धर्म से जुड़ी मान्यता के अनुसार पौष सूर्य देव का माह कहलाता है। इस मास में सूर्य देव की आराधना से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिए पौष पूर्णिमा के दिन पवित्र नदियों में स्नान और सूर्य देव को अर्घ्य देने की परंपरा है।

चूंकि पौष का महीना सूर्य देव का माह है और पूर्णिमा चंद्रमा की तिथि है। अतः सूर्य और चंद्रमा का यह अद्भूत संगम पौष पूर्णिमा की तिथि को ही होता है। इस दिन सूर्य और चंद्रमा दोनों के पूजन से मनोकामनाएं पूर्ण होती है और जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती है।

पौराणिक कथाएं-

पौराणिक ग्रंथों में वर्णित कथा के अनुसार, एक समय जब पृथ्‍वी पर दुर्गम नामक दैत्य ने आतंक का माहौल पैदा किया। इस तरह करीब सौ वर्ष तक वर्षा न होने के कारण अन्न-जल के अभाव में भयंकर सूखा पड़ा, जिससे लोग मर रहे थे।

जीवन खत्म हो रहा था। उस दैत्य ने ब्रह्माजी से चारों वेद चुरा लिए थे। तब आदिशक्ति मां दुर्गा का रूप मां शाकंभरी देवी में अवतरित हुई, जिनके सौ नेत्र थे। उन्होंने रोना शुरू किया, रोने पर आंसू निकले और इस तरह पूरी धरती में जल का प्रवाह हो गया। अंत में मां शाकंभरी दुर्गम दैत्य का अंत कर दिया।

ये भी कथा है प्रचलित-
एक अन्य कथा के अनुसार शाकंभरी देवी ने 100 वर्षों तक तप किया था और महीने के अंत में एक बार शाकाहारी भोजन कर तप किया था। ऐसी निर्जीव जगह जहां पर 100 वर्ष तक पानी भी नहीं था, वहां पर पेड़-पौधे उत्पन्न हो गए।

यहां पर साधु-संत माता का चमत्कार देखने के लिए आए और उन्हें शाकाहारी भोजन दिया गया। इसका तात्पर्य यह था कि माता केवल शाकाहारी भोजन का भोग ग्रहण करती हैं और इस घटना के बाद से माता का नाम शाकंभरी माता पड़ा।

पौष पूर्णिमा व्रत और पूजा विधि…
पौष पूर्णिमा पर स्नान, दान, जप और व्रत करने से पुण्य की प्राप्ति होती है और मोक्ष मिलता है। इस दिन सूर्य देव की आराधना का विशेष महत्व है। पौष पूर्णिमा की व्रत और पूजा विधि इस प्रकार है :

1. पौष पूर्णिमा के दिन प्रातःकाल स्नान से पहले व्रत का संकल्प लें।
2. पवित्र नदी या कुंड में स्नान करें और स्नान से पूर्व वरुण देव को प्रणाम करें।
3. स्नान के पश्चात सूर्य मंत्र का उच्चारण करते हुए सूर्य देव को अर्घ्य देना चाहिए।
4. स्नान से निवृत्त होकर भगवान मधुसूदन की पूजा करनी चाहिए और उन्हें नैवेद्य अर्पित करना चाहिए।
5. किसी जरुरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन कराकर दान-दक्षिणा देनी चाहिए।
6. दान में तिल, गुड़, कंबल और ऊनी वस्त्र विशेष रूप से देने चाहिए।

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