लाइव हिंदी खबर :-भगवान श्री कृष्ण के मित्र सुदामा अपनी मित्रता के वजह से शास्त्रों में विख्यात हैं। श्री कृष्ण के मन में अपनी अलग ही छवि बनाने वाले सुदामा को दुनिया मित्रता के रूप में याद करती है, लेकिन सुदामा का एक रूप ऐसा भी था जिसकी वजह से भगवान शिव को इनका वध करना पड़ा था। इस सत्य पर विश्वास करना मुश्किल तो है लेकिन अगर हम इतिहास के पन्ने पलटे तो यह सच सामने आता है, परंतु आखिर क्यों भगवान शिव को सुदामा का वध करना पड़ा।
शंखचूर्ण के रुप में हुआ था सुदामा का पुनर्जन्म
स्वर्ग के गोलोक में सुदामा और विराजा निवास करती थी। सुदामा विराजा से प्रेम करता था लेकिन विराजा कृष्ण से प्रेम करती थी, एक बार जब विराजा और कृष्ण प्रेम में लीन थे, तो स्वयं राधा वहां प्रकट हो गईं। और राधा ने विराजा को श्रीकृष्ण के साथ देख कर विराजा को गोलोक से पृथ्वी पर निवास करने का श्राप दे दिया और किसी कारणवश राधा जी ने सुदामा को भी पृथ्वी पर निवास करने का श्राप दे दिया। जिससे उन्हे स्वर्ग से पृथ्वी पर आना पड़ा। मृत्यु के पश्चात सुदामा का जन्म राक्षस राजदम्ब के यहां शंखचूर्ण के रूप में हुआ और विराजा का जन्म धर्मराज के यहां तुलसी के रूप में हुआ।
तुलसी से हुआ था शंखचूर्ण विवाह
शंखचूर्ण माता तुलसी से विवाह के बाद उनके साथ अपनी राजधानी वापस लौट आए। शंखचूर्ण को भगवान ब्रह्मा द्वारा वरदान प्राप्त था की जबतक तुलसी तुम पर भरोसा करेंगी तब तक तुम्हे कोई जीत नहीं पाएगा। शंखचूर्ण को रक्षा के लिए एक सूरक्षा कवच भी दिया गया था।
शंखचूर्ण धीरे-धीरे कई युद्ध जीतते हुए तीनों लोकों के स्वामी बन गए। शंखचूर्ण के क्रूर अत्याचार से परेशान देवताओं ने भगवान ब्रह्मा से इसका समाधान मांगा। ब्रह्मा ने इस विषय पर भगवान विष्णु से सुझाव लिए जाने की बात पर देवतागण भगवान विष्णु के पास गए। विष्णुजी ने देवताओं को शिव जी से सुझाव लेने को कहा। देवताओं की परेशानी को समझते हुए शिव जी शंखचूर्ण से युद्ध करने के लिए अपने पुत्रों कार्तिके व गणेश को इस युद्ध के लिए मैदान में उतारा। इसके बाद भद्रकाली ने भी अपनी विशाल सेना के साथ शंखचूर्ण से युद्ध किया लेकिन शंखचूर्ण पर भगवान ब्रह्मा के वरदान के कारण वध कर पाना काफी मुश्किल हो गया था, और अंत में भगवान विष्णु युद्ध के दौरान शंखचूर्ण के सामने प्रकट हुए और उनसे उनका कवच मांगा, जो उन्हे ब्रह्मा जी ने दिया था। शंखचूर्ण ने तुरंत ही कवच भगवान विष्णु को दे दिया
भगवान शिव ने किया शंखचूर्ण का वध
भगवान विष्णु उस कवच को पहनकर मां तुलसी के सामने शंखचूर्ण के अवतार में उपस्थित हुए। उनके रूप को देखकर मां तुलसी ने उन्हे अपना पति मानकर उनका आदर सत्कार किया, और इलके कारण मां तुलसी का पतिव्रता नष्ट हो गया। पत्नी तुलसी की पतिव्रता में शंखचूर्ण की शक्ति बसी थी। वरदान की शक्ति के समापन पर भगवान शिव ने शंखचूर्ण का वध किया और देवताओं को उसके अत्याचार से मुक्त करा दिया। तो इसलिए श्रीकृष्ण के मित्र सुदामा के पुर्नजन्म शंखचूर्ण का भगवान शिव ने वध किया।