लाइव हिंदी खबर :-वसीमा खान
जिस तरह से ईद-उल-फितर रमजान की खुशी में मनाया जाता है, ठीक उसी तरह से ईद-उल-अजहा भी हज की खुशी में मनाया जाता है। ईद-उल-अजहा त्यौहार, हर साल इस्लामी महीने जिल हिज्ज यानी हज के महीने को पड़ता है। हर त्यौहार के मनाए जाने के पीछे कोई न कोई वजह या वाकया होता है, वैसे ही ईद-उल-अजहा के पीछे भी है। ईद-उल-अजहा का वास्ता कुर्बानी से है।
इब्राहिम (अ।) को खुदा की तरफ से हुक्म हुआ कि यदि तुम मुझसे सच्ची मोहब्बत करते हो, तो अपनी सबसे ज्यादा प्यारी चीज की कुर्बानी करो। इब्राहिम (अ।) के लिए सबसे प्यारी चीज थी, उनका इकलौता बेटा हजरत इस्माइल। लिहाजा इब्राहिम (अ।) अल्लाह की राह में अपने प्यारे बेटे को कुर्बानी करने के लिए तैयार हो गए। इधर बेटा इस्माइल भी खुशी-खुशी कुर्बान होने को तैयार हो गया। इब्राहिम (अ।) जब अपने बेटे को लेकर कुर्बानी देने जा रहे थे, तभी रास्ते में शैतान मिला और उसने कहा कि वह इस उम्र में क्यों अपने बेटे की कुर्बानी दे रहे हैं। उसके मरने के बाद बुढ़ापे में कौन आपकी देखभाल करेगा? इब्राहिम (अ।) ने शैतान की बात को अनसुना कर दिया और कुर्बानी के लिए तैयार हो गए।
हजरत इब्राहिम को लगा कि कुर्बानी देते समय उनकी भावनाएं आड़े आ सकती हैं इसलिए उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली। जैसे ही इब्राहिम (अ।) ने अपने बेटे हजरत इस्माइल की गर्दन पर छुरी चलाई, उनकी जगह एक भेड़ कुर्बान हो गया। ऐन कुर्बानी के वक्तखुदा ने हजरत इस्माइल को बचा लिया और इब्राहिम (अ।) की कुर्बानी भी कुबूल कर ली। खुदा की ओर से यह महज एक इम्तिहान था, जिसमें पैगंबर इब्राहिम (अ।) पूरी तरह से पास हुए। यह वाकया इस्लाम की तारीख में अजीम मिसाल बन गया।
ईद-उल-अजहा मनाए जाने के पीछे हज की खुशी भी है। हज, इस्लाम के पांच प्रमुख स्तंभों में से एक है। हज हर उस मुसलमान पर फर्ज है, जिसके पास उसके सफर का जरूरी खर्च और बीवी-बच्चों के लिए इतना खर्च हो कि वे उसके पीछे आराम से अपना गुजर कर सकें। हज का फरीजा (पुनीत कर्तव्य) और अरकान मक्का शहर, मीना और अराफात के मैदान में जिल हिज्ज महीने की आठ से बारह तारीख तक पूरे किए जाते हैं। हज के इस फरीजे को अदा करने के लिए दुनिया भर से मुसलमान सऊदी अरब के शहर मक्का और मदीना मुनव्वरा के लिए सफर करते हैं।