लाइव हिंदी खबर :- पूर्व फ्लाइट ऑपरेशंस इंस्पेक्टर और DGCA के अधिकारी प्रशांत ढल्ला ने बताया कि किसी भी विमान का डायवर्ज़न केवल तभी किया जाता है जब विमान में तकनीकी समस्या आती है। उन्होंने स्पष्ट किया कि एयर इंडिया 154 का डायवर्ज़न इसी प्रक्रिया के तहत हुआ।

ढल्ला ने कहा कि किसी विमान में कई प्रकार की प्रणालियाँ होती हैं और यदि किसी एक प्रणाली में खराबी आती है, तो यह अन्य प्रणालियों पर भी प्रभाव डाल सकती है। हालांकि, विमान निर्माता इस बात का ध्यान रखते हैं कि हर प्रणाली में 2 या 3 अतिरिक्त चैनल मौजूद हों, जिन्हें Standby Mode कहा जाता है। इसका मतलब यह है कि यदि एक प्रणाली विफल हो जाए, तो दूसरा चैनल स्वतः उसकी जगह ले लेता है और विमान सुरक्षित रहता है।
उन्होंने आगे बताया कि पायलट ऐसे मामलों में सुरक्षा और यात्रियों की सुरक्षा को सर्वोपरि रखते हुए निर्णय लेते हैं। डायवर्ज़न का निर्णय पूर्वनिर्धारित प्रोटोकॉल और प्रशिक्षण के अनुसार लिया जाता है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि किसी भी प्रकार की तकनीकी समस्या के बावजूद उड़ान सुरक्षित ढंग से पूरी हो और हवाई अड्डे पर सुरक्षित लैंडिंग हो सके।
ढल्ला ने यह भी स्पष्ट किया कि विमान की जटिल प्रणालियों के कारण कभी-कभी सिस्टम इंटरलॉक और मल्टीपल फेल्योर की स्थिति उत्पन्न हो सकती है, लेकिन निर्माता और एयरलाइंस ने सुरक्षा मानकों के अनुसार हर संभावना का ध्यान रखा है। इस प्रकार एयर इंडिया 154 का डायवर्ज़न सुरक्षा प्रोटोकॉल का हिस्सा था और इसमें किसी प्रकार का जोखिम नहीं था, बल्कि यात्रियों और विमान दोनों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का एक सुरक्षित कदम माना गया।