लाइव हिंदी खबर :- अक्सर हमारे बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि कुछ भी बन जाओ लेकिन घमंड मत करना, अपने अंदर अहंकार मत आने देना। क्योंकि ये घमंड एक दिन तुमको ही मार देगा। इसके पीछे उदाहरण के तौर पर रावण के बारे में बताया जाता है। रावण बहुत बड़ा विद्वान था, ज्ञानी था लेकिन अहंकार और अवगुणों ने उसके कुल का सर्वनाश कर दिया। ऐसे में ये जानना जरूरी है कि कौन सी ऐसी बातें हैं जो इंसान को बर्बादी की ओर ले जाता है…
काम में कमी निकालना: अक्सर हम कुछ लोगों को देखते हैं वे हर काम में कमी निकालते रहते हैं। या हम ये भी कह सकते हैं कि उनका काम ही है सिर्फ कमियां निकालना। ऐसे लोग कभी खुश नहीं रह पाते और उनके अंदर की घृणा उन्हें कमजोर कर देती है।
नास्तिक: कुछ लोग नास्तिक प्रवृति के होते हैं। ऐसे लोग संतों का विरोध करते हैं, ईश्वर पर यकीन नहीं करते। ऐसे लोग नकारात्मकता से भरे होते हैं और संसार में खुद को ही श्रेष्ठ समझते हैं।
ज्ञान न देना: कुछ ऐसे लोग होते हैं जो बहुत ज्ञानी होते हैं लेकिन वे उस ज्ञान को अपने तक ही सीमित रखते हैं और अपने बारे में ही सोचते रहते हैं। ऐसे लोग राष्ट्र और समाज के लिए किसी काम नहीं आते हैं।
कामवासना: कुछ लोग अपनी इंद्रियों के वशीभूत होकर पाप कर्म और कामवासना में लीन हो जाते हैं, ऐसे लोग समाज विरोधी होते हैं। इनका होना या न होना एक समान है।
दूसरों पर निर्भर रहना: जो अपने जीवन के हर छोटे-बड़े फैसलों के लिए दूसरों पर निर्भर रहता है, वह समाज के विकास में कोई योगदान नहीं देता। ऐसे लोगों को समाज में रहने का कोई हक नहीं है।
बदनाम लोगों से संबंध रखना: जो इंसना अपने सोच और कर्मों के कारण समाज में बदनाम हो, ऐसे लोगों से संबंध नहीं रखना चाहिए। क्योंकि ऐसे लोगों को समाज का हिस्सा नहीं माना जाता है।
बीमार: एक कहावत है कि स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन वास करता है। ऐसे में वह इंसान जो कभी भी बीमारियों से उबर ही न पाए वैसे लोग जीवन के आनंद से दूर हो जाते हैं और ऐसे लोग मरे हुए व्यक्ति के समान होते हैं।
क्रोधी व्यक्ति: जिनका स्वभाव क्रोधी हो, वह समाज में रहने लायक नहीं है क्योंकि इन्हें हर बात बुरी लगती है, जिस कारण इनमें नकारात्मकता ज्यादा होती है। ध्यान रहे कि गलत बात पर क्रोध करने वाले इसमें शामिल नहीं हैं।
पाप कर्म से पैसा कमाने वाला: जो इंसना गलत काम कर के पैसा कमाता है और परिवार का पालन-पोषण करता है, उसे समाज में रहने का कोई हक नहीं है। क्योंकि हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि जो जैसा अन्न खाता है, वैसा ही उसका मन होता है और वैसा ही उसका संस्कार भी होता है।