लाइव हिंदी खबर :-पौराणिक कथाओं के अनुसार, समुंद्र मंथन के वक्त वासुकी नाग के मुख में भयंकर विष ज्वालाएं उठी और वे समुद्र में मिश्रित होकर विष के रुप में प्रक्रट हुई। यह विष पूरे ब्रह्मांड में फैलने लगी। इसके बाद सभी देवी-देवता मदद के लिए भगवान शिव के पास पहुंचे। उसके बाद भोलेनाथ ने विष को पी लिया। विष के प्रभाव से भगवान शिव का कंठ नीला पड़ गया। इसके बाद से ही उन्हें नीलकंठ कहा जाने लगा।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, विष का प्रभाव कम करने के लिए सभी देवी-देवताओं ने चांदनी रात में भगवान शिव का गुणगान किया। तब से ही वह रात्रि शिवरात्रि के नाम से जानी गई।
***** पुराण के अनुसार, शिवरात्रि की कहानी ब्रह्मा और विष्णु से जुड़ी हुई है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार ब्रह्मा और विष्णु में इस बात को लेकर विवाद हो गया कि दोनों में सर्वश्रेष्ठ कौन है। इसके बाद दोनों ने युद्ध की घोषणा कर दी।
युद्ध की घोषणा होते ही चारों ओर हड़कंप मच गया। इसके बाद सभी देवी-देवता शिव जी के पास पहुंचे और इस विवाद को खत्म करने के लिए प्रार्थना करने लगे। देवी-देवताओं के प्रार्थना पर भगवान शिव ने इस विवाद को खत्म करने के लिए ज्योतिर्लिंग के रुप में प्रक्रट हुए।
यह एक ऐसा शिवलिंग था जिसका न कोई आदि था न कोई अंत। इस शिवलिंग का परीक्षण करने के लिए भगवान विष्णु सूकर और ब्रह्मा जी हंस का रुप धारण किया, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। कहा जाता है कि पहली बार शिव को ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट होने पर इसे शिवरात्रि के रूप में मनाया गया। तब ही से शविरात्रि मनाने की परंपरा शुरू हुो गई।