क्या है सबरीमाला मंदिर की खासियत ? पहले 10 से 50 साल तक की महिलाओं को जाने की नहीं थी इजाजत

क्या है सबरीमाला मंदिर की खासियत ? पहले 10 से 50 साल तक की महिलाओं को जाने की नहीं थी इजाजत

लाइव हिंदी खबर :-केरल के शबरीमाला को भारत का सबसे पवित्र मंदिर कहा जाता है। स्वामी अयप्पा के इस मंदिर के दर्शन के लिए हर साल करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। इस मंदिर की सबसे ज्यादा चर्चा इसलिए होती थी कि इस मंदिर  में 10 से 50 साल तक की महिलाओं को जाने की इजाजत नहीं थी। मगर सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है मगर सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं को प्रवेश को अब अनुमति दी है। अब इस मंदिर में महिलाएं प्रवेश कर सकती है। आइए आपको बताते हैं इस मंदिर की खासियत और कौन थे स्वामी अयप्पा।

साल में 2 बार खुलते हैं मंदिर के कपाट

मंदिर की आस्था इस बाद से समझी जा सकती है कि बिना किसी जाति-पात के इस मंदिर में कोई भी दर्शन के लिए आ सकता है। हलांकि पहले महिलाओं के आने पर यहां प्रतिबंध था मगर अब किसी भी वर्ग उम्र की महिलाएं यहां दर्शन के लिए आ सकती हैं। इस मंदिर के कपाट साल में सिर्फ 2 बार के लिए खुलते हैं। पहला 15 नवंबर और दूसरी बार 14 जनवरी यानी मकर संक्रान्ती के दिन। इन दोनों ही दिनों में लाखों की संख्या में लोग यहां दर्शन के लिए आते हैं।

दिव्य ज्योति के होते हैं दर्शन

इस मंदिर में आने वाले भक्तों को मंदिर में दिव्य ज्योति के दर्शन भी होते हैं। ये भगवान अयप्पा का होने का स्वरूप बताती है। इस दिव्य ज्योति को माकरा विलाकू कहते हैं। मंदिर तक जाने वाली 8 सीढ़ियों का काफी महत्व है। इनमें से 5 सीढ़ियां पांच इंद्रियों को दर्शाती है और बाकी 3 काम, क्रोध और लोभ को दर्शाता है।

शिव और मोहनी के पुत्र थे स्वामी अयप्पा

अयप्पा को हरिहरपुत्र के नाम से भी जाना जाता है। यह भगवान विष्णन और हर यानी शिव के पुत्र बताये जाते हैं। हरी के मोहनी रूप को ही अयप्पा कहा जाता है। सबरीमाला नाम रामायण में शबरी से रखा गया है। इस मंदिर की असली रौनक मंडला पूजा के दिन देखने को मिलती है। साउथ के इस सबसे फेमस फेस्ट में देश और विदेश हर जगह से लोग आते हैं।

18 पहाड़ियों के बीच में बना है मंदिर

ये सबरीमाला का मंदिर 18 पहाड़ियों के बीच में बसा है। इस मंदिर को सबरीमाला श्रीधर्मषष्ठ मंदिर भी कहा जाता है। इस मंदिर में बहुत से भक्त नंगे पैरों की यात्रा करके यहां तक आते हैं। इस मंदिर में आने वाले लोग कुछ दिनों पहले से ही मांस-मदिरा का सेवन भी बंद कर देते हैं।

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