लाइव हिंदी खबर :- मान्यता है कि गणेश जी का जन्म भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्थी को मध्याह्न काल में, सोमवार, स्वाति नक्षत्र एवं सिंह लग्न में हुआ था।भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से गणेश जी का उत्सव गणपति प्रतिमा की स्थापना कर उनकी पूजा से आरंभ होता है और लगातार दस दिनों तक घर में रखकर अनंत चतुर्दशी के दिन बप्पा की विदाई की जाती है। वैसे तो देवताओं के सामने किसी व्यक्ति का कोई वर्चस्व नहीं होता हैं। लेकिन, खासकर गणेश जी के सामने कोई भी अपना वर्चस्व नहीं दिखाता है, ऐसा करने के पीछे एक खास कथा है क्योंकि एक बार कुबेर की अमीरी के इस घमंड को तक गणेशजी ने चूर कर दिया था।
ऐसे में हम आपको उस कथा के बारे में बताने जा रहे हैं कि कैसे गणेशजी ने कुबेर का घमंड चूर किया था।मान्यता के अनुसार एक बार कुबेर को अपने धन धान पर बहुत ज्यादा अहंकार हो गया। उसने सोचा की उसके पास तीनो लोको में सबसे ज्यादा सम्पति है , क्यों ना एक भव्य भोज का आयोजन करके सभी को अपना वैभव दिखाएं। यहीं सोचते हुए कुबेर ने सभी देवी देवताओं को एक महाभोज में आमंत्रित किया।
इसका आमंत्रण देने के लिए वे भगवान शिव के निवास स्थल कैलाश भी गये और उन्हें परिवार सहित आने का आमंत्रण दे दिया। भोलेनाथ तो सब कुछ जानने वाले हैं ही,अत: वे समझ गये की कुबेर को अपने धन पर घमंड हो गया है और उन्हें सही राह दिखाई चाहिए। शिव ने कुबेर से कहा की वो तो आ नहीं सकते पर उनके पुत्र श्री गणेश जरुर भोज में आएंगे। कुबेर खुश होकर चले गये। महाभोज वाले दिन आ गया। यहां कुबेर ने दुनिया भर के पकवान सोने चांदी के थालों में परोस रखे थे। सभी देवी देवता भर पेट खाकर कुबेर के गुणगान करते विदा होने लगे।
अंत में श्री गणेश ने पहुंच गए। कुबेर ने उन्हें विराजित किया और खाना परोसने लगे। गणपति जी अच्छे से जानते थे की कुबेर का कैसे घमंड दूर करना है। वे खाते ही जा रहे है। धीरे धीरे कुबेर का अन्न भोजन भंडार खाली होने लगा पर गणेश जी का पेट तो भरा ही नहीं।
कुबेर ने गणेश जी के फिर से भोजन की व्यवस्था की पर क्षण भर में वो भी खत्म हो गया। गणेश जी अपनी भूख को शांत करने के लिए कुबेर के महल की चीजों को भी खाने लगे। इससे कुबेर घबरा गए और उनका अहंकार भी खत्म हो गया। वे अच्छी तरह से समझ गए कि वे धन के देवता होने के बाद भी आने वाले अतिथि का पेट तक नहीं भर सकते।
इसके बाद कुबेर गणेश जी के चरणों में गिर गए और अपने घमंड के लिए क्षमा मांगी। गणेश जी ने अब अपनी लीला खत्म की और उन्हें माफ़ कर सदबुद्धि प्रदान की।