लाइव हिंदी खबर :- तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैय्यप एर्दोगन और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की हालिया मुलाकात में एक असामान्य दृश्य देखने को मिला। राष्ट्रपति एर्दोआन ने अपनी निजी अनुवादक को साथ लाने पर ज़ोर दिया, जिसे मीडिया में हिजाबी अनुवादक के रूप में संदर्भित किया गया। हालांकि, इस अनुवादक को अनुवाद में अपेक्षित गति और स्पष्टता नहीं मिली, जिससे बातचीत में कुछ असुविधा पैदा हुई।

इसके अलावा यह भी सामने आया कि अनुवादक ने ट्रंप से हाथ मिलाने से इनकार कर दिया, जो कूटनीतिक स्तर पर एक असामान्य स्थिति मानी गई। इस बीच, दोनों राष्ट्रपतियों ने अपनी-अपनी भाषाओं में बातचीत जारी रखी और अनुवादक के माध्यम के बिना संवाद करने की कोशिश की। विशेषज्ञों के अनुसार यह घटना दर्शाती है कि उच्च-स्तरीय कूटनीति में भाषा और सांस्कृतिक पहलुओं का कितना महत्व होता है।
अनुवादक का चयन केवल भाषाई क्षमता तक सीमित नहीं होता, बल्कि कूटनीतिक शिष्टाचार और पारंपरिक व्यवहारों का भी पालन करना आवश्यक होता है। इस मुलाकात के दौरान ट्रंप और एर्दोआन ने विभिन्न वैश्विक और द्विपक्षीय मुद्दों पर चर्चा की, लेकिन अनुवादक की भूमिका में उत्पन्न कठिनाई को देखते हुए बातचीत का कुछ हिस्सा दोनों नेताओं के सीधे संवाद में पूरा किया गया।
इस घटना ने यह भी उजागर किया कि कभी-कभी कूटनीतिक बैठकों में अनुवादक की भूमिका विवाद और असुविधा का कारण भी बन सकती है। दोनों नेताओं की यह मुलाकात शिष्टाचार और संवाद के महत्व को रेखांकित करती है, साथ ही यह दिखाती है कि भाषा और सांस्कृतिक अंतर कैसे उच्च-स्तरीय कूटनीति में अप्रत्याशित चुनौती पैदा कर सकते हैं।