लाइव हिंदी खबर :- इस दिन भगवान विष्णु के निमित्त व्रत किया जाता है। मार्गशीर्ष मास भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण का प्रिय मास माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार एकादशी एक देवी थीं, जो अगहन यानी मार्गशीर्ष मास में प्रकट हुई थीं। इसलिये इस एकादशी को उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है।
एकादशी व्रत करने से मिलेगा अश्वमेघ यज्ञ के बराबर फल
उत्पन्ना एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। जो भी व्यक्ति इस व्रत पूरे विधि- विधान से करता है, उसे सभी तीर्थों के बराबर फल प्राप्त होता है। इसके साथ ही इस दिन दिये हुए दान का कई गुना फल की प्राप्ति होती है। यह भी कहा जाता है कि उत्पन्ना एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को हजार गुना अश्वमेघ यज्ञ, तीर्थ स्नान व दान का पुण्य प्राप्त होता है
उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा
उत्पन्ना एकादशी कथा के अनुसार, सतयुग में एक महाभयंकर दैत्य मुर हुआ करता था। दैत्य मुर ने इन्द्र आदि देवताओं पर विजय प्राप्त कर उन्हें, उनके स्थान से भगा दिया। तब इन्द्र तथा अन्य देवता क्षीरसागर भगवान श्रीविष्णु के पास जाते हैं। देवताओं सहित सभी ने श्रीविष्णुजी से दैत्य के अत्याचारों से मुक्त करवाने के लिए विनती की। इन्द्रदेव के वचन सुनकर भगवान श्रीविष्णु बोले- मैं तुम्हारे शत्रुओं का शीघ्र ही संहार करूंगा। जब दैत्यों ने भगवान श्रीविष्णुजी को युद्ध भूमि में देखा तो उन पर अस्त्रों-शस्त्रों का प्रहार करने लगे। भगवान श्रीविष्णु मुर को मारने के लिए जिन-जिन शस्त्रों का प्रयोग करते, वे सभी उसके तेज से नष्ट होकर उस पर पुष्पों के समान गिरने लगे।
भगवान विष्णु उस दैत्य के साथ सहस्त्र वर्षों तक युद्ध करते रहे, परंतु जीत न सके। अंत में विष्णुजी विश्राम करने की इच्छा से बद्रियाकाश्रम में एक गुफा में चले गए। दैत्य भी उस गुफा में चला गया, कि आज मैं श्रीविष्णु को मारकर अपने सभी शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर लूंगा। उस समय गुफा में एक अत्यंत सुंदर कन्या उत्पन्न हुई और दैत्य से युद्ध करने लगी। दोनों में देर तक युद्ध हुआ। कन्या ने उसको मूर्छित कर दिया और उठने पर दैत्य का सिर काट दिया और वह दैत्य मृत्यु को प्राप्त हुआ।