लाइव हिंदी खबर :- भारतीय संस्कृति में कलावा बांधा जाता है। कोई भी शुभ कार्य, पूजा-पाठ या कर्मकांड में कलावा बांधने की परंपरा होती है। दरअसल कलावा बांधने के पीछे धार्मिक दृष्टिकोण के साथ-साथ वैज्ञानिक मान्यताएं भी हैं। इसके अलावा कलावा बांधने की परंपरा के पीछे ज्योतिषशास्त्र क्या कहता है आइए जानते हैं।
कई जगहों पर कलावा को मौली से भी जाना जाता है। कोई भी शुभ कार्य, नये कार्य की शुरुआत या फिर नई वस्तु पर कलावा बांधा जाता है। कलावा दो रंगों में होता जिसका महत्व ज्योतिष में अलग-अलग है। एक पीले रंग का और दूसरा लाल रंग का। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार, कलाई में लाल रंग का कलावा पहनने से कुंडली में मंगल ग्रह मजबूत होता है। ज्योतिष में मंगल ग्रह का संबंध लाल रंग से होता है और पीले रंग का संबंध बृहस्पति से होता है। इसके अनुसार पीले रंग का कलावा बांधने से कुंडली में बृहस्पति की स्थिति शुभ और मजबूत होती है।
कलावा बांधने का धार्मिक महत्व
धर्म ग्रंथों की मान्यता के अनुसार कलावा बांधने से त्रिदेव- ब्रह्मा, विष्णु व महेश एवं त्रिदेवियां- लक्ष्मी, पार्वती व सरस्वती की असीम कृपा प्राप्त होती है। कलावा कच्चे सूत के धागे से बना होता है। शास्त्रों के अनुसार कलावा बांधने की परंपरा की शुरुआत देवी लक्ष्मी और राजा बलि ने की थी। कलावा को रक्षा सूत्र भी कहा जाता है, माना जाता है कि कलाई पर इसे बांधने से जीवन पर आने वाले संकट से रक्षा होती है। धार्मिक महत्व रखने के साथ साथ कलावा बांधना वैज्ञानिक तौर पर भी काफी लाभप्रद है।
कलावा बांधने का वैज्ञानिक कारण
वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाये तो कलाई पर मौली बांधने से नसों की क्रिया नियंत्रित होती है। इससे मानव शरीर में वात, पित्त और कफ का सामंजस्य बना रहता है। हाथ, पैर, कमर और गले में मौली बांधने से आपको स्वास्थ्य लाभ भी होता है। मौली या कलावा बांधने से रक्तचाप, हृदयाघात, मधुमेह और लकवा जैसे गंभीर बीमारियों से बचाव करने में भी लाभ होता है।