यह है भगवान विष्णु की तपोभूमि, इस धाम में लिखा गया था पांचवां वेद,जरूर जाने

यह है भगवान विष्णु की तपोभूमि, इस धाम में लिखा गया था पांचवां वेद,जरूर जाने

लाइव हिंदी खबर :-सनातन धर्म में मुख्य रूप से चार वेदों का वर्णन मिलता है। वेद, प्राचीन भारत के पवित्र साहित्य हैं जो हिन्दुओं के प्राचीनतम और आधारभूत धर्मग्रन्थ भी हैं। वेद, विश्व के सबसे प्राचीन साहित्य भी हैं। भारतीय संस्कृति में वेद सनातन वर्णाश्रम धर्म के, मूल और सबसे प्राचीन ग्रन्थ हैं। ये चार वेद क्रमश: ऋग्वेद,यजुर्वेद,सामवेद व अथर्ववेद हैं। वहीं शास्त्रों के अनुसार महाभारत को पांचवा वेद कहा जाता है।

ऐसे समझें चार वेदों को…
ऋग्वेद – सबसे प्राचीन तथा प्रथम वेद जिसमें मंत्रों की संख्या 10627 है। ऐसा भी माना जाता है कि इस वेद में सभी मंत्रों के अक्षरों की संख्या 432000 है। इसका मूल विषय ज्ञान है। विभिन्न देवताओं का वर्णन है और ईश्वर की स्तुति आदि।
यजुर्वेद – इसमें कार्य (क्रिया) व यज्ञ (समर्पण) की प्रक्रिया के लिये 1975 गद्यात्मक मंत्र हैं।
सामवेद – इस वेद का प्रमुख विषय उपासना है। संगीत में गाने के लिये 1875 संगीतमय मंत्र।
अथर्ववेद – इसमें गुण, धर्म, आरोग्य, एवं यज्ञ के लिये 5977 कवितामयी मंत्र हैं।

ऐसे में इस पांचवें वेद की रचना के बारे में हर कोई जानना चाहता है कि आखिर इसकी रचना कहां हुई थी, तो इस संबंध में मान्यता है कि पांचवा वेद भगवान विष्णु जी की तपोभूमि पर रचा गया।

दरअसल हिन्दुओं के चार धामों में से एक बद्रीनाथ धाम भगवान विष्णु का निवास स्थल है, इसे आंठवां बैकुंठ भी माना जाता है। यह भारत के उत्तरांचल राज्य में अलकनंदा नदी के बाएं तट पर नर और नारायण नामक दो पर्वत श्रेणियों के बीच स्थित है। गंगा नदी की मुख्य धारा के किनारे बसा यह तीर्थस्थल हिमालय में समुद्र तल से 3,050 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।

बद्रीनाथ मन्दिर में हिंदू धर्म के देवता विष्णु के एक रूप “बद्रीनारायण” की पूजा होती है। यहां उनकी 1 मीटर (3.3 फीट) लंबी शालिग्राम से निर्मित मूर्ति है जिसके बारे में मान्यता है कि इसे आदि शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी में समीपस्थ नारद कुण्ड से निकालकर स्थापित किया था। इस मूर्ति को कई हिंदुओं द्वारा विष्णु के आठ स्वयं व्यक्त क्षेत्रों (स्वयं प्रकट हुई प्रतिमाओं) में से एक माना जाता है।

भगवान विष्णु जी ने यहां की थी तपस्‍या…
आंठवां बैकुंठ यानि बद्रीनाथ धाम भगवान श्री हरी का निवास स्‍थल माना जाता है। यह उत्‍तराखंड में अलकनंदा नदी के पर नर-नारायण नामक दो पर्वतों के पास है। कहते हैं कि महर्षि वेदव्‍यास ने महाभारत की रचना बद्रीनाथ धाम में ही की थी। इस क्षेत्र में एक गुफा है जिसे महाभारत का रचनास्थल माना जाता है।

शास्त्रों के अनुसार महाभारत को पांचवा वेद भी कहा जाता है। साथ ही महाभारत विश्व का सबसे लंबा साहित्यिक ग्रंथ भी माना जाता है। पुराणों की मानें तो बद्रीनाथ धाम की स्थापना सतयुग में हुई थी और ये भगवान विष्णु की तपोभूमि भी है। भगवान विष्णु ने कई सालों तक इस जगह पर तपस्या की थी। इसीलिए कहते हैं कि पांचवे वेद की रचना विष्णु जी की तपोभूमि पर रचा गया।

भगवान विष्णु की चतुर्भुज मूर्ति
बद्रीनाथ धाम के गर्भगृह में भगवान विष्णु की चतुर्भुज मूर्ति स्थापित है जो कि शालिग्राम शिला से बनी है। यहां की मूर्ति बहुत ही छोटी है। जिसे हीरों के जड़ा हुआ मुकुट पहनाया जाता है।

यहां स्थापित भगवान विष्णु की मूर्ति सबसे पहले आठवीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य को यहां के एक कुंड में मिली थी। जिसे उन्होंने एक गुफा में स्थापित कर दिया था। बाद में राजाओं द्वारा वर्तमान मंदिर का निर्माण करवा कर मूर्ति को इस मंदिर में स्थापित किया गया। यहां भगवान विष्णु के साथ भगवान कुबेर और उद्धव जी की भी मूर्तियां स्थापित हैं।

गर्म पानी का कुंड
अलकनंदा नदी के किनारे तप्त नामक एक कुंड है। इस कुंड का पानी हर समय गर्म ही रहता है जो की किसी चमत्कार के कम नहीं। यह कुंड चमत्कारी होने के साथ-साथ बहुत पवित्र भी माना जाता है। मान्यता है इस कुंड में स्नान करने पर भक्त पापों से मुक्ति पाते हैं।

नाम के पीछे की रोचक कथा…
इस स्थान का नाम बद्रीनाथ कैसे पड़ा इसके पीछे एक रोचक कथा है। कहते हैं कि जब भगवान विष्णु कठोर तप में लीन थे तब देवी लक्ष्मी ने बदरी यानी बेर का पेड़ बन कर सालों तक भगवान विष्णु को छाया दीं और उन्हें बर्फ आदि से बचाया। देवी लक्ष्मी के इसी सर्मपण से खुश होकर भगवान विष्णु ने इस जगह को बद्रीनाथ नाम से प्रसिद्ध होने का वरदान दिया। श्री हरी यहां के पालनहार माने जाते हैं।

ऐसे हुई महाभारत की रचना
महाभारत में वर्णन आता है कि वेदव्यास जी ने हिमालय की तलहटी की एक पवित्र गुफा में तपस्या में संलग्न तथा ध्यान योग में स्थित होकर महाभारत की घटनाओं का आदि से अन्त तक स्मरण कर मन ही मन में महाभारत की रचना कर ली थी।

इस काव्य के ज्ञान को जन साधारण तक कैसे पहुंचाया जाए क्योंकि इसकी जटिलता और लम्बाई के कारण यह बहुत कठिन था। कोई इसे बिना कोई गलती किए वैसा ही लिख दे जैसा कि वे बोलते जायें यह असंभव था। असंभव को संभव करने के लिए व्‍यास जी, ब्रम्‍हा जी के पास गए। जिन्होंने, उनको गणेश जी के पास भेजा।

श्री गणेश लिखने को तैयार हो गये, किंतु उन्होंने एक शर्त रखी कि कलम एक बार उठा लेने के बाद काव्य समाप्त होने तक वे बीच नहीं रुकेंगे। व्यासजी जानते थे कि यह शर्त बहुत कठनाईयां उत्पन्न कर सकती है। इसलिए उन्होंने भी अपनी चतुरता से एक शर्त रखी कि कोई भी श्लोक लिखने से पहले गणेश जी को उसका अर्थ समझना होगा।

गणेश जी ने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। इस तरह व्यास जी बीच-बीच में कुछ कठिन श्लोकों को रच देते थे, तो जब गणेश उनके अर्थ पर विचार कर रहे होते उतने समय में ही व्यास जी कुछ और नये श्लोक रच देते। सम्पूर्ण महाभारत को लिखने में तीन वर्ष का समय लगा था।

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