लाइव हिंदी खबर :- शास्त्र की दृष्टि से देखा जाए, चतुर्मास सृष्टि चक्र के चार युग सतगण, त्रेतागो, द्वापर व कलयुग का प्रतीक है। कल्प के इन चार युगों के अंत में एक छोटा-सा युग भी जुड़ जाता है, जिसको कलकारी ‘पुरुषोत्तम संगम युग’ कहा जाता है, जो भी को परमपिता परमात्मा शिव से संगम प्रदान करने का भी श्रेष्ठ युग है। आध्यात्मिक दृष्टि से देखें, इस छोटे-से, लेकिन सबसे पुण्य प्रदायक पाँच मास में ही मनुष्य परमात्मा के आध्यात्मिक ज्ञान, योग, ध्यान, सेवा, संयम, नियमों का अभ्यास और सदना द्वारा ही सामान्य पुरुष से पुरुषोत्तम बन जाने के अनुकूल उपाय, परिवेश और प्रेरणा प्राप्त करता है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, आषाढ़ शुक्ल एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक के चार मास को चतुर्मास के रूप में मनाया जाता है, जिसमें विशेष रूप से भगवान शिव, चतुर्भुज विष्णु, श्री गणेश, माता लक्ष्मी और अन्य देवी-देवताओं की पूजा, आवाहन, उपवास , जप आदि किया जाता है। पुराणों में कहा गया है कि इन चार महीनों में भगवान विष्णु क्षीर सागर में विश्राम करते हैं और सृष्टि के पालन व संचालन का कार्यभार स्वयं शिव भगवान के ऊपर होता है। इस पूरे समय में मुख्यत: परमात्मा शिव की ही उपासना की जाती है।
इस पुरुषोत्तम वेला में, सृष्टि रूपी कल्पवृक्ष के रचयिता, दिव्य ज्योति स्वरूप निराकार शिव परमात्मा का अवतरण होता है, जिनके दिव्य दर्शन व पावन स्मृति से हर मानव में सोए हुए देवत्व की उत्थान होता है और मनुष्य की अंतरआत्मा में मौजूद विकर्म, विकार और आसुरी स्वभाव का विनाश होता है। शिव से प्राप्त सतज्ञान को अपनाकर ही हम अपने जीवन और संसार में संपूर्ण सुख-शांति, समृद्धि, दैवी सम्पदा आदि की पुन: स्थापना कर सकते हैं।
इस मास में सर्वेश्वर शिव के लिए किए गए योग तपस्या, दान, पुण्य और सुकर्म मनुष्य को विष्णुलोक या देवलोक में पुरुषोत्तम पद दिला सकते हैं। मान्यता है कि इस मास में, अगर भक्त साधारण पुरुष से उत्तम पुरुष बनने के लिए आध्यात्मिक ज्ञान को प्राप्त कर लें, तो वे ईश्वर के साथ योगयुक्त बने कर शुद्ध और सात्विक आहार, विहार, अचार, विचार और कर्म व्यवहार कर पाते हैं। उनमें दैवी गुण विकसित होने लगते हैं।
ब्रह्मा कुमारी चक्रधारी
पुराणों में कहा गया है कि इन चार महीनों में भगवान विष्णु विश्राम करते हैं और सृष्टि के पालन व संचालन का कार्यभार शिव भगवान के ऊपर है। इस पूरे समय में मुख्यत: शिव जी की ही उपासना की जाती है।