लाइव हिंदी खबर :-हिन्दू धर्म में आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को योगिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इसे ‘शयनी एकादशी’ भी कहते हैं। इसदिन सूर्योदय के बाद से एकादशी मानी जाएगी किन्तु व्रत का पारण अगले दिन यानी 10 जुलाई को होगा। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार इस एकादशी की व्रत करने वाले को मृत्यु पश्चात मोक्ष की प्राप्ति होती है।
योगिनी एकादशी व्रत कथा
एक पौराणिक कथा के अनुसार श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को योगिनी एकादशी का महत्व बताया था। कथा सुनाते हुए श्रीकृष्ण ने कहा कि एक समय में अलकापुरी नाम की नगरी में कुबेर नाम का एक राजा था। राजा शिव का बहुत बड़ा भक्त था। उसके राज्य में हेम नाम का एक माली था। माली की पत्नी का नाम विशालाक्षी था। राजा पूजा के लिए हेम माली के यहां से रोजाना फूल मंगवाता था।
रोजाना राजा के महल में माली के यहां से ताजा और सुगन्धित फूल पहुंच जाते। लेकिन एक दिन अचानक हेम माली के यहां से पूजा के लिए फूल नहीं आए। ऐसे में राजा कुबेर गुस्सा हो गए और तुरंत अपने सेवकों से कहकर हेम माली को बुलवाया।
राजा के डर से हेम माली भी दरबार में जल्द से जल्द उपस्थित हो गया। राजा ने गुस्से में उससे सवाल किया और कहा कि आज तुमने शिव पूजा के लिए फूल क्यों नहीं भेजे? ऐसा करके तुमने शिवजी का अनादर किया है। इसलिए मैं तुझे यह शाप देता हूं कि तू स्त्री के वियोग में जीयेगा और मृत्युलोक (धरती पर) में जाकर कोढ़ी होगा।
शाप के असर से हेम माली धरती पर आगया। अपनी पत्नी से भी दूर हो गया और उसने धरती लोक पर कई परेशानियां झेलीं। लेकिन गौर करने वाली बात यह थी कि धरती पर आने के बाद भी हेम माली को अपना पूरा अतीत याद था। वह जानता था कि उस लोक में उसके साथ क्या-क्या हुआ है।
एक दिन हेम माली जंगल से गुजर रहा था, उसे जंगल में ऋषि मार्कण्डेय मिले। उसने ऋषि को सारी बात बतायी। हेम माली की व्यथा जानने के बाद ऋषि मार्कण्डेय ने उसे आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को व्रत करने को कहा। उन्होंने बताया कि इस एकादशी की व्रत करने से तुम्हारे सभी पापा धुल जाएंगे और तुम मोक्ष को पाओगे।
हेम माली ने आज्ञा पाकर एकादशी का व्रत किया। व्रत के प्रभाव से उसे अपना पुराना स्वरूप और पत्नी दोनों मिल गए। और मृत्यु के बाद उसे मोक्ष की भी प्राप्ति हुई, इसी एकादशी को आगे चलकर योगिनी एकादशी के नाम से जाना गया।
योगिनी एकादशी व्रत विधि, नियम
– एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करके भगवान की पूजा करें
– इसदिन भगवान नारायण की धूप, डीप, नेवैध, फूल, फलों आदि से पूजा करें
– संभव हो तो इसदिन मंदिर जाएं और कृष्ण भगवान की भी पूजा करें
– पूरे दिन व्रत के फलाहार का सेवन करें, अन्न ग्रहण नहीं करना है
– भूखे और जरूरतमंद गरीबों को अन्न और वस्त्रों का दान करें
– द्वादिशी तिथि पर व्रत का पारण करें