3 साल में 270 हाथियों को करंट, अवैध शिकार, दुर्घटनाओं का होना पड़ा शिकार

नई दिल्ली, 19 मार्च (आईएएनएस)। भले ही सरकार ने वन्यजीवों के संरक्षण पर ध्यान केंद्रित किया है, लेकिन मानव-वन्यजीव संघर्ष के चलते मनुष्यों और जानवरों दोनों के जीवन का नुकसान हुआ है। करंट लगने, जहर देने आदि के शिकार होकर बड़ी संख्या में हाथियों की जान जा चुकी है।

पर्यावरण और वन मंत्रालय से मिली जानकारी के अनुसार, 2019-20 और 2021-22 के बीच बिजली के झटके और अन्य कारणों से बड़ी संख्या में हाथी मारे गए। आंकड़ों में कहा गया है कि इसी अवधि के दौरान देश भर में कुल 198 हाथियों को करंट लगने से, 41 को ट्रेनों से, 27 को शिकारियों द्वारा और 8 को जहर देकर मार दिया गया।

दूसरी ओर बड़ी संख्या में मनुष्य भी संघर्ष का शिकार बने और उनकी मृत्यु हुई। हाथियों ने तीन साल में 1,579 इंसानों को मौत के घाट उतारा। 2019-20 में 585, 2020-21 में 461 और 2021-22 में 533 लोगों को मार डाला। जहां तक राज्यों का संबंध है, ओडिशा में सबसे अधिक 322 मौतें दर्ज की गईं, इसके बाद झारखंड में 291, पश्चिम बंगाल में 240, असम में 229, छत्तीसगढ़ में 183 और तमिलनाडु में 152 मौतें हुईं।

जहां तक हाथियों की मौत का सवाल है, बिजली के झटके से हुई 198 हाथियों में से असम में 36, ओडिशा में 30 और तमिलनाडु में 29 मौतें दर्ज की गई। असम (41 में से 15) में भी सबसे ज्यादा हाथियों की मौत ट्रेन से हुई है, इसके बाद ओडिशा (8) और पश्चिम बंगाल (5) का स्थान है। मेघालय (11) में अवैध शिकार से सबसे ज्यादा मौतें हुईं, जबकि जहर से सबसे ज्यादा मौतें असम (7) में हुईं।

25 जुलाई को संसद में मंत्रालय ने कहा कि मानव-वन्यजीव संघर्षों के आकलन से पता चलता है कि मुख्य कारणों में निवास स्थान का नुकसान, जंगली जानवरों की आबादी में वृद्धि, खेती के लिए जंगली जानवरों को आकर्षित करने वाले बदलते फसल पैटर्न, भोजन और चारे के लिए जंगलों से मानव प्रभुत्व वाले परि²श्य में जंगली जानवरों की आवाजाही, मानव की आवाजाही, वन उपज के अवैध संग्रह के लिए मनुष्यों का जंगलों में जाना, आक्रामक विदेशी प्रजातियों के विकास के कारण निवास स्थान का क्षरण आदि शामिल हैं।

पर्यावरण और वन पर संसद की स्थायी समिति ने अपनी मार्च, 2023 की रिपोर्ट में मानव-पशु संघर्ष पर ध्यान दिया। कमिटी ने कहा कि प्रोजेक्ट टाइगर और प्रोजेक्ट एलिफेंट वन्यजीव संरक्षण से संबंधित मंत्रालय की पहलों के लिए महत्वपूर्ण हैं, न केवल पारिस्थितिक ²ष्टिकोण से बल्कि इसके सामाजिक और आर्थिक मूल्य के लिए भी।

पैनल ने अपनी रिपोर्ट में कहा, मंत्रालय की पहल, या इसकी कमी का सीधा असर न केवल परियोजना पर बल्कि इन संवेदनशील क्षेत्रों में रहने वाली मानव आबादी पर भी पड़ता है। मानव-पशु संघर्षों की बढ़ती रिपोटरें के साथ, यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि मंत्रालय इन परियोजनाओं पर अपना ध्यान केंद्रित करे और आवश्यक व्यय को पूरा करने के लिए अधिक धन आवंटित करे। इसलिए समिति सिफारिश करती है कि मंत्रालय यह सुनिश्चित करे कि 2022-23 में आवंटित धन का सही उपयोग किया जाए। इसके अलावा, मंत्रालय को इस शीर्ष के अंतर्गत अतिरिक्त आवंटन की मांग करनी चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि संरक्षण के लिए पैसों की कमी न हो।

मंत्रालय के अनुसार, मंत्रालय द्वारा राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को वन्यजीव आवासों के विकास, प्रोजेक्ट टाइगर और प्रोजेक्ट एलीफेंट की केंद्र प्रायोजित योजनाओं के तहत वाटर होल के निर्माण और रखरखाव, मिट्टी और नमी संरक्षण उपायों, अवैध शिकार विरोधी शिविरों की स्थापना, वन्यजीव पशु चिकित्सा देखभाल को मजबूत करना, खरपतवारों का उन्मूलन, फायर लाइन का निर्माण और रखरखाव, बाघ सुरक्षा बल और विशेष बाघ संरक्षण बल की तैनाती आदि जैसी गतिविधियों के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।

हाथियों के संरक्षण में ध्यान केंद्रित करने और तालमेल के लिए और संघर्ष को कम करने के लिए महत्वपूर्ण हाथियों के आवासों को एलीफेंट रिजर्व के रूप में अधिसूचित किया गया है। अधिसूचना मंत्रालय में गठित संचालन समिति के अनुमोदन से की जाती है। प्रमुख हाथी राज्यों में अब तक 32 हाथी रिजर्व स्थापित किए जा चुके हैं।

–आईएएनएस

पीके/एसकेपी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *