लाइव हिंदी खबर :-हिंदू धर्म में वैदिक परंपरा के अनुसार अनेक रीति-रिवाज़, व्रत-त्यौहार व परंपराएं मौजूद हैं। हिंदूओं में जातक के गर्भधारण से लेकर मृत्योपरांत तक अनेक प्रकार के संस्कार किए जाते हैं। इनमें अंत्येष्टि को अंतिम संस्कार माना जाता है। लेकिन अंत्येष्टि के पश्चात भी कुछ ऐसे कर्म होते हैं जिन्हें मृतक के संबंधी विशेषकर संतान को करना होता है।
श्राद्ध कर्म उन्हीं में से एक है। वैसे तो प्रत्येक मास की अमावस्या तिथि को श्राद्ध कर्म किया जा सकता है लेकिन भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर आश्विन मास की अमावस्या तक पूरा पखवाड़ा श्राद्ध कर्म करने का विधान है। इसलिये अपने पूर्वज़ों को के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के इस पर्व को श्राद्ध कहते हैं।
गया जी : जहां श्राद्ध से मृतक की आत्मा को मिलता है मोक्ष…
कहते हैं कि इस दौरान अपने पितरों का श्राद्ध करने से उनकी आत्मा को मोक्ष मिलता है और इसके साथ ही वह अपना आशीर्वाद भी अपने परिवार पर बनाए रखते हैं। ऐसे में शास्त्रों में भी कहा गया है कि अगर कोई गया जी में एक बारे अपने पितरों का श्राद्ध कर आए तो मृतक की आत्मा को सदा के लिए मोक्ष मिल जाता है और फिर बार-बार श्राद्ध भी नहीं करना पड़ता है। ऐसे में आज हम आपको बिहार के गया में स्थित एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसके बारे में बहुत ही कम लोग जानते हैं।
दरअसल बिहार के गया में भगवान विष्णु के पदचिह्नों पर एक मंदिर बना है। जिसे विष्णुपद मंदिर कहा जाता है। यहां पितृपक्ष के अवसर पर श्रद्धालुओं की काफी भीड़ जुटती है और इसे धर्मशिला के नाम से भी जाना जाता है। कहते हैं कि जो लोग यहां अपने पितरों का तर्पण करने आते हैं वे इस विष्णु मंदिर में भगवान के चरणों के दर्शन करने भी अवश्य आते हैं।
मान्यता है कि भगवान के चरणों के दर्शन करने से इंसान के सारे दुखों का नाश होता है एवं उनके पूर्वज पुण्यलोक को प्राप्त करते हैं। मंदिर में भगवान के चरणों का श्रृंगार रक्त चंदन से किया जाता है और ये काफी पुरानी परंपरा बताई जाती है। विष्णुपद मंदिर में भगवान विष्णु का चरण चिह्न ऋषि मरीची की पत्नी माता धर्मवत्ता की शिला पर है।
राक्षस गयासुर को स्थिर करने के लिए धर्मपुरी से माता धर्मवत्ता शिला को लाया गया था, जिसे गयासुर पर रख भगवान विष्णु ने अपने पैरों से दबाया। इसके बाद शिला पर भगवान के चरण चिह्न है। माना जाता है कि विश्व में विष्णुपद ही एक ऐसा स्थान है, जहां भगवान विष्णु के चरण का साक्षात दर्शन कर सकते हैं।
ऐसे बना मंदिर
विष्णुपद मंदिर सोने को कसने वाला पत्थर कसौटी से बना है, जिसे जिले के अतरी प्रखंड के पत्थरकट्टी से लाया गया था। इस मंदिर की ऊंचाई करीब सौ फीट है। सभा मंडप में 44 पीलर हैं। 54 वेदियों में से 19 वेदी विष्णपुद में ही हैं, जहां पर पितरों के मुक्ति के लिए पिंडदान होता है। यहां पूरे सालभर पिंडदान होता है।
मंदिर के शीर्ष पर 50 किलो सोने का कलश और 50 किलो सोने की ध्वजा लगी है। विष्णुपद गर्भगृह में 50 किलो चांदी का छत्र और 50 किलो चांदी का अष्टपहल है, जिसके अंदर भगवान विष्णु की चरण पादुका विराजमान है। यहां भगवान विष्णु के चरण चिन्ह के स्पर्श से ही मनुष्य समस्त पापों से मुक्त हो जाते हैं।
विष्णुपद मंदिर के ठीक सामने फल्गु नदी के पूर्वी तट पर स्थित है सीताकुंड। यहां स्वयं माता सीता ने महाराज दशरथ का पिंडदान किया था। बताया जाता है कि पौराणिक काल में यह स्थल अरण्य वन जंगल के नाम से प्रसिद्ध था।
भगवान श्रीराम, माता सीता के साथ महाराज दशरथ का पिंडदान करने आए थे, जहां माता सीता ने महाराज दशरथ को बालू फल्गु जल से पिंड अर्पित किया था, जिसके बाद से यहां बालू से बने पिंड देने का महत्व है।
विष्णुपद मंदिर से जुड़ी कथा…
गया तीर्थ में पितरों का श्राद्ध और तर्पण किए जाने का उल्लेख पुराणों में भी मिलता है। पुराणों के अनुसार, गयासुर नाम के एक असुर ने घोर तपस्या करके भगवान से आशीर्वाद प्राप्त कर लिया। भगवान से मिले आशीर्वाद का दुरुपयोग करके गयासुर ने देवताओं को परेशान करना शुरू कर दिया।
गयासुर के अत्याचार से दु:खी देवताओं ने भगवान विष्णु की शरण ली और उनसे प्रार्थना की कि वह गयासुर से देवताओं की रक्षा करें। इस पर विष्णु ने अपनी गदा से गयासुर का वध कर दिया। बाद में भगवान विष्णु ने गयासुर के सिर पर एक पत्थर रख कर उसे मोक्ष प्रदान किया।