सिख धर्म के पहले ‘शहीद’ जिन्होंने जान कुर्बान की और जाते-जाते कह गए ये लफ्ज़

सिख धर्म के पहले ‘शहीद’ जिन्होंने जान कुर्बान की और जाते-जाते कह गए ये लफ्ज़लाइव हिंदी खबर :-नाम जपो, किरत करो, वंड के छको’… इन तीन सिद्धांतों पर बना है सिख धर्म। इसकी नींव रखते हुए सिख धर्म के संस्थापक एवं प्रथम गुरु, गुरु नानक देव जी ने यह कहा था कि प्रत्येक सिख को परमात्मा को याद करना है, अपने जीवन का कर्तव्य पूरा करना है और जो भी खाये उसे बांटकर खाना है। आजतक सिख धर्म का हर अनुयायी इन्हीं सिद्धांतों को मान रहा है। किन्तु इनके अलावा सिखों ने एक और बात सीखी और वह है बुराई का साथ ना देना। जरूरत पड़े तो बुराई के खिलाफ आवाज़ उठाना और शहादत भी देना। शहादत का पहला उदाहरण सिख धर्म के पंचम गुरु, गुरु अर्जन देव जी ने दिया था। इनकी शहादत को आज भी सिख धर्म के लोग याद करते हैं।

श्री गुरु अर्जुन देव जी सिख धर्म के पाचंवे नानक कहलाते थे। उनके पिता श्री गुरु रामदास जी (चौथे गुरु) थे और माता भानी जी थीं। गुरु जी का जन्म वैशाख सदी 7 सम्वत 1620 में (15 अप्रैल, 1563 ई.) गोइंदवाल साहिब में हुआ था। बचपन से ही बहुत शांत स्वभाव तथा पूजा-भक्ति करने वाले थे। गुरु जी का बचपन गुरु अमरदास जी और बाबा बुड्ढा जी कि देखरेख में बीता था। बचपन में ही गुरु अमरदास जी ने यह भविष्यवाणी की थी कि यह बालक आगे चलकर बेहद ज्ञानी कहलायेगा और इसी के हाथों महान धार्मिक वाणी की रचना भी होगी।

गुरु अर्जन देव जी की 16 वर्ष की आयु में शादी हुई। उनकी पत्नी का नाम माता गंगा था। गुरू जी तीन भाई थे परन्तु गुरु रामदास जी ने गुरु गद्दी अर्जन देव जी को ही सौंपी। गुरु गद्दी पर विराजमान होते ही आप जी ने अपना सारा समय लोक भलाई तथा धर्म प्रचार में लगा दिया। आप जी ने गुरु रामदास जी द्वारा शुरू किए गए सांझे निर्माण कार्यों को प्राथमिकता दी।

पिता रामदास द्वारा बसाये गए नगर अमृतसर में आप जी ने अमृत सरोवर के बीच हरिमंदिर साहिब जी का निर्माण कराया। इस भव्य मंदिर को बनवाने की नींव मुसलमान फकीर साईं मियांं मीर जी से रखवाई। ऐसा करके आपने दुनिया में धर्म निरपेक्षता का सबूत कायम किया। हरिमंदिर साहिब के चार दरवाजे इस बात के प्रतीक हैं कि हरिमंदिर साहिब हर धर्म-जाति वालों के लिए खुला हुआ है।

लोक भलाई एवं धर्म के प्रचार के अलावा आप जी ने स्वयं वाणी की रचना भी की. आप जी ने दिन रात वाणी लिखी और उसे एकत्रित करने के लिए ग्रन्थ बनवाने का काम भाई गुरदास जी के जिम्मेदार कन्धों पर सौंप दिया। भाई गुरुदास जी ने लिखी गयी वाणी के रागों के आधार पर श्री ग्रंथ साहिब जी का निर्माण करवाया. भाई गुरुदास जी की उस मेहनत का फल है कि आज बिना किसी दुविधा के श्री ग्रंथ साहिब जी में 36 महान वाणीकारों की वाणियां दर्ज हैं. इस महान ग्रन्थ में कुल 5894 शब्द हैं, जिनमें 2216 शब्द श्री गुरु अर्जुन देव जी महाराज द्वारा ही लिखे हुए हैं।

गुरु अजरान देव जी शहीदी

मुग़ल बादशाह अकबर की मौत के बाद उसका पुत्र जहांगीर अगला मुग़ल बादशाह बना। अपने पिता के सूझबूझ वाले रवैये और समझदरी से ठीक विपरीत जहाँगीरबेहड़ घमंडी और दुष्ट शासक था। वह पूरे मुल्क पर अपना ही राज चाहता है परन्तु सिख धर्म के गुरु, गुरु अर्जन देव जी की बढ़ती हुई लोकप्रियता उससे बर्दाश्त नहीं हो रही थी। उसे यह खौफ सताने लगा की जिस तरह से गुरु जी लोक भलाई करके सबका दिल जीत रहे हैं, इसी तरह से वे पूरे देश पर राज कर लेंगे। उनकी इसी सफलता से आहत होकर जहांगीर ने उन्हें शहीद करने का फैसला कर लिया।

श्री गुरु अर्जुन देव जी को लाहौर बुलाया गया. मई महीने के चिलमिलाती हुई गर्मी में उन्हें लोहे के गर्म तवे पर बिठाया गया।  तवे के नीचे आग जलाई गयी और ऊपर से गुरु जी के शरीर पर गर्म-गर्म रेत भी डाली गयी। जब गुरु जी का शरीर अग्नि के कारण बुरी तरह से जल गया तो उन्हें पास ही रावी नदी के ठंडे पानी में नहाने के लिए भेजा गया। कहते हैं गुरु जी दरिया में नहाने के लिए उतरे तो लेकिन कुछ ही क्षणों में उनका शरीर रावी में आलोप हो गया।

जिस स्थान पर गुरु जी ने अपने अंतिम दर्शन दिए थे आज उस स्थान पर गुरुद्वारा डेरा साहिब (जो की अब पाकिस्तान में है) सुशोभित है। गुरु जी ने अपने पूरे जीवनकाल में शांत रहना सीखा और लोगों को भी हमेशा नम्रता से पेश आने का पाठ पढ़ाया। यही कारण है की गर्म तवे और गर्म रेत के तसीहें सहते हुए भी उन्होंने केवल उस परमात्मा का शुक्रिया किया और कहा की तेरी हर मर्जी में तेरी रजा है और तेरी इस मर्जी में मिठास भी है। गुरु जी के आख़िरी वचन थे- तेरा कीया मीठा लागै॥

हरि नामु पदार्थ नानक मांगै॥

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top