छठ पूजा में देवी के साथ क्यों होती है सूर्य देव की पूजा? कौन थीं छठी मैया? जानें पौराणिक महत्व

छठ पूजा में देवी के साथ क्यों होती है सूर्य देव की पूजा? कौन थीं छठी मैया? जानें पौराणिक महत्व

लाइव हिंदी खबर :-उत्तर भारत के बिहार राज्य का प्रसिद्ध त्यौहार छठ पूजा हर साल कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को ही मनाया जाता है।

इस पर्व में सूर्य देवता और छठी मैया की पूजा की जाती है। छठी मैया को षष्ठी देवी भी कहा जाता है। छठ पूजा के पहले दिन को नहाय खाय के नाम से जाना जाता है। दूसरे और तीसरे दिन पूरे दिन निर्जला उपवास किया जाता है। तीसरे दिन की शाम और उससे अगली सुबह पवित्र नदी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।

क्यों मनाते हैं छठ पूजा?

पौराणिक वर्णन के अनुसार भगवान राम और माता सीता ने ही पहली बार ‘छठी माई’ की पूजा की थी। इसी के बाद से छठ पर्व मनाया जाने लगा। कहा जाता है कि लंका पर जीत हासिल करने के बाद जब राम और सीता वापिस अयोध्या लौट रहे थे तब उन्होंने कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को छठी माता की पूजा की थी। इसमें उन्होंने सूर्य देव की पूजा भी की थी। तब से ही यह व्रत लोगों के बीच इतना प्रचलित है।

कर्ण ने की थी सूर्य उपासना

सीता माता के बाद द्वापर युग में सूर्य पुत्र कर्ण ने भी छठ पूजा की थी। इसदिन उन्होंने सूर्य देवता की पूजा की थी। सूर्य देव के प्रति उनकी आस्था आज भी लोगों के बीच चर्चित है। वे हमेशा कमर तक के जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य दिया। सूर्य देव की कृपा के कारण ही उन्हें बहुत सम्मान मिला। तब से सभी सूर्य की उपासना करने लगे।

द्रौपदी ने परिवार की समृद्धि के लिए रखा व्रत

हिन्दू मान्यताओं में एक और कथा प्रचलित है जिसके अनुसार महाभारत काल में द्रौपदी ने भी छठी माई का व्रत रखा था। मान्यता है कि उन्होंने अपने परिवार की सुख और शांती के लिए यह व्रत रखा। अपने परिवार के लोगों की लंबी उम्र के लिए भी वह नियमित तौर पर सूर्य देव की पूजा करती थीं।

कौन हैं छठी मैया?

छठ पर्व क्यों मनाते हैं, कैसे मनाते हैं और इससे जुड़े सभी नियम तो हमने जान लिए, लेकिन क्या कभी यह जानने की कोशिश की है कि छठी मैया या छठी देवी कौन थीं? क्यों छठ पूजा पर सूर्य देवता के साथ छठी मैया की भी पूजा की जाती है? कौन थीं ये देवी और क्यों शुरू हुई इनकी उपासना की ऐसी प्रथा?

धार्मिक ग्रन्थ ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार हिन्दू धर्म में आदि शक्ति के नौ रूपों में से षष्ठी देवी को ही छठ मैया कहा गया है। इन्हें भगवान ब्रह्मा की मानास्पुत्री कहा जाता है। ये वे देवी हैं जो निःसंतानों की झोली भर्ती हैं। जिन्हें पुत्र प्राप्ति नहीं होती या जो संतान के सुख से वंचित है, देवी उनपर कृपा बरसाती हैं।

षष्ठी देवी की मान्यता की वजह से ही हिन्दू शास्त्रों में बच्चे के जन्म के छठे दिन षष्ठी पूजा की जाती है। इस पूजा में दुर्गा के छठे स्वरूप की ही पूजा होती है। नवरात्रि के दौरान छठे दिन पूजनीय मानी गई देवी को कात्यायनी कहा गया है।

छठ में सूर्य और देवी की पूजा एकसाथ क्यों?

इसके पीछे भी कई मान्यताएं हैं जो शास्त्रों पर ही आधारित हैं। शास्त्रों में षष्ठी देवी को ‘अंश’ प्रदान करने वाली माना गया है और सूर्य प्रकृति से जुड़े हैं। छठ पर्व में प्रकृति और अंश दोनों को ही पानी की कामना की जाती है।

छठ के लोकगीतों में भी इसका उदाहरण देखने को मिलता है। उदाहरण के लिए दो लाइनें पेश हैं- ”अन-धन सोनवा लागी पूजी देवलघरवा हे, पुत्र लागी करीं हम छठी के बरतिया हे”

तो इस तरह से छठ पूजा के दौरान महिलाएं छठी मैया से संतान प्रपाती और संतान को सुखीजीवन देने के लिए प्रार्थना करती हैं और भगवान सूर्य से अन्‍न-धन, संपत्ति आदि पाने के लिए विनती करती हैं।

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