लाइव हिंदी खबर :-आंवला नवमी ( Amla navami ) के दिन भगवान विष्णु और शिव जी की पूजा की जाती है। कहा जाता है की आंवला नवमी के दिन दोनों देवता आंवले के पेड़ में निवास करते हैं।
इस दिन सभी महिलायें सुबह जल्दी स्नान कर आंवले के पेड़ की पूजा करती हैं और जल अर्पित करती हैं। आंवले के पेड़ की जड़ में जल के बाद दूध चढ़ाया जाता है। उसके बाद पेड़ पर रोली, चावल, हल्दी सहित सभी चीजें चढ़ाकर उसके चारों तरफ कच्चा सूत या मौली 8 परिक्रमा करते हुए लपेटें। इसके बाद आंवले के पेड़ के नीचे परिवार के साथ भोजन किया जाता है।
आंवला नवमी का महत्व
आंवला नवमी के दिन आंवले के पेड़ के नीचे भोजन बनाकर उसके नीचे बैठकर खाने का बहुत अधिक महत्व माना जाता है। कहा जाता है की इस दिन भगवान विष्णु नें कुष्माणडक नामक दैत्य का वध किया था। यही नहीं आंवला नवमी का दिन ही था जिस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने कंस का भी वध किया था
इस दिन लोग मथुरा-वृंदावन की परिक्रमा करने जाते हैं। संतान प्राप्ति के लिए की गई पूजा पर वृत भी रखा जाता है और इस दिन रात में भगवान विष्णु को याद करते हुए जगराता किया जाता है। आंवला नवमी के दिन भगवान विष्णु लक्ष्मी की कृपा पाने के लिये शाम के समय यहां एक दिया भी लगाया जाता है।
पौराणिक कथा के अनुसार
कथा के अनुसार, काशी नगर में एक निःसंतान धर्मात्मा वैश्य रहता था। वैश्य की पत्नी से एक दिन उनकी पड़ोसन ने कहा कि- अगर तुम किसी दूसरी स्त्री के पुत्र की बली भैरव बाबा को चढ़ा दोगी तो तुम्हें पुत्र की प्राप्ति हो जायेगी। वैश्य की पत्नी ने जब अपने पति को यह बात बताई तो उसने इस बात से साफ इन्कार कर दिया। लेकिन पत्नी ने वैश्य की बात ना मानते हुए एक कन्या को कुंए में गिराकर भैरव बाबा को उसकी बलि दे दी। लेकिन इसके परिणामस्वरुप वैश्य की पत्नी को उल्टा पड़ गया और उसे कोढ़ हो गया। इसके साथ ही बली दी गई कन्या की आत्मा भी उसे सताने लगी।
वैश्य के पूछने पर उसने पति को सारी बातें बता दी। वैश्य ने पत्नी से कहा ब्राह्मण वध, बाल वध व गौ हत्या पाप है, ऐसा करने वालों के लिए इस धरती में कोई जगह नहीं है। वैश्य की पत्नी अपने किये पर शर्मसार होने लगी, तब वैश्य ने उससे कहा कि तुम गंगाजी की शरण में जाकर भगवान का भजन करो व गंगा स्नान करो तभी तुम्हें इस रोग से मुक्ति मिल पाएगी।
पति की बातों को मानते हुए वैश्य की पत्नी गंगाजी की शरण में चली गई और वहां भगवान के भजन करने लगी। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर गंगाजी ने उसे कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आंवले के पेड़ की पूजा करने को कहा। इसके बाद महिला ने इस तिथि पर आंवले के पेड़ की पूजा करके आंवला खाया था, जिससे वह रोगमुक्त हो गई और कुछ ही दिनों बाद उसे एक संतान प्राप्त हुई।