लाइव हिंदी खबर :-वराह अवतार भगवान विष्णु का ही एक अवतार है। भगवान के इस अवतार में श्रीहरि पापियों का अंत करके धर्म की रक्षा करते हैं। वराह अवतार जयंती भगवान के इसी अवतरण को प्रकट करती है। इस जयंती के अवसर पर भक्त लोग भगवान का भजन-कीर्तन व उपवास एवं व्रत इत्यादि का पालन करते हैं। जगत के कल्याण हेतु जो लीलाधारी भगवान अनेकानेक अवतार लेते हैं। वराह भगवान का यह व्रत सुख, संपत्तिदायक एवं कल्याणकारी है। जो श्रद्धालु भक्त वराह भगवान के नाम से माघ शुक्ल द्वादशी के दिन व्रत रखते हैं, उनके सोये हुए भाग्य जागृत होते हैं।
वराह जयंती कथा
हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु ने जब दीति के गर्भ से जुड़वां बच्चों रूप में जन्म लिया, इनके जन्म से पृथ्वी कांप उठी, आकाश में नक्षत्र एवं लोक डोलने लगे, समुद्र में भयंकर लहरें उठने लगीं। ऎसा ज्ञात हुआ, मानो जैसे प्रलय का आगमन हो गया हो। इतना भयानक था इन दोनों का जन्म लेना। यह दोनों दैत्य जन्म उपरांत ही बड़े हो गए। इनका शरीर वज्र के समान कठोर और विशाल हो गया, दोनों बलवान थे और संसार में अजेयता और अमरता प्राप्त करना चाहते थे इसलिए हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु दोनों ने ब्रह्माजी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया।
इनकी तपस्या से प्रसन्न हो ब्रह्माजी ने इन्हें दर्शन दिए वरदान मांगने को कहा, दोनों भाइयों ने यह वर मांगा कि, हे प्रभु कोई भी युद्ध में हमें पराजित न कर सके और न कोई मार सके। ब्रह्माजी उन्हें यही वरदान देकर अपने लोक चले जाते हैं। ब्रह्मा से वरदान पाकर हिरण्याक्ष और भी अधिक उद्दंड और निरंकुश बन गया, तीनों लोकों में अपने को सर्वश्रेष्ठ सिद्ध करने के लिए अनेक अत्याचार करने लगा और तीनों लोकों को जीतने निकल पड़ा। वह इंद्रलोक में पहुंचा देखते ही देखते समस्त इन्द्रलोक पर हिरण्याक्ष का अधिकार हो गया।
इ सके बाद दैत्य हिरण्याक्ष वरूण की राजधानी विभावरी नगरी में पहुंचा और वरूण देव को युद्ध के लिए ललकारा, हिरण्याक्ष के वचन सुनकर वरूण देव क्रोधित हुए परंतु अपने क्रोध को ह्वदय में दबाकर शांत भाव मुस्कराते हुए बोले कि हो सकता है कि तुम महान योद्धा और शूरवीर हो परंतु विष्णु से अधिक नहीं, तीनों लोकों में भगवान विष्णु को छोड़कर कोई भी ऎसा नहीं है, जो महान हो अत: उन्हीं के पास जाओ वही तुम्हारे साथ युद्ध कर सकते हैं और तुम्हें पराजित करेंगे।
वरूण का कथन सुनकर हिरण्याक्ष अत्यधिक क्रोधित होकर विष्णु की खोज में निकल पड़ता है, देवर्षि नारद से उसे ज्ञात होता है कि विष्णु इस समय वराह का रूप धारण कर पृथ्वी को रसातल से निकालने के लिए गए हैं। तब हिरण्याक्ष समुद्र के नीचे रसातल में जा पहुंचा। वहां उसने देखा कि वराह अपने दांतों पर पृथ्वी को उठाते हुए जा रहा है। दैत्य, वराह को असभ्य भाषा में अभद्र वचन कहते हुए पृथ्वी को ले जाने से रोकता है।
हिरण्याक्ष की कटु वाणी को अनसुनी करते हुए भगवान विष्णु शांत हो वराह के रूप में दांतों पर धरती को लिए हुए आगे बढ़ते रहते हैं। दैत्य भगवान वराह का पीछे नहीं छोड़ता किंतु भगवान वराह पृथ्वी को रसातल से बाहर निकलकर समुद्र के ऊपर स्थापित कर देते हैं। वराह पर अपनी बातों का असर न होता देख हिरण्याक्ष हाथ में गदा लेकर विष्णु पर प्रहार करता है तब वे हिरण्याक्ष के हाथ से गदा छीनकर उसे दूर फेंक देते हैं। जब वह त्रिशूल लेकर विष्णु को मारने का प्रयास करता है तब भगवान अपने सुदर्शन चक्र से हिरण्याक्ष के त्रिशूल के टुकड़े-टुकड़े कर देते हैं। भगवान वराह और हिरण्याक्ष में मध्य भयंकर युद्ध होता है और अन्त में भगवान वराह के हाथों से हिरण्याक्ष का वध होता है।
मनोकामना पूरी करने के लिए ऎसे करें वराह जयंती व्रत
जो भक्त वराह जयंती का व्रत रखते हैं उन्हें जयंती तिथि को संकल्प करके एक कलश में भगवान वराह की प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए। भगवान की स्थापना करने के पश्चात विधि विधान सहित षोडषोपचार से भगवान वराह की पूजा करनी चाहिए।
पूरे दिन व्रत रखकर रात्रि में जागरण करके भगवान विष्णु के अवतारों की कथा कहनी और सुननी चाहिए। त्रयोदशी के दिन कलश मे स्थित वराह भगवान की पूजा करने के बाद, विसर्जन क रना चाहिए। विसर्जन के पश्चात प्रतिमा को ब्रा±मण या आचार्य को दान देना चाहिए।
वराह मंत्र
वराहाय नम: सूकराय नम: धृतसूकररूपकेशवाय नम: