लाइव हिंदी खबर :- धार्मिक पुस्तकों में पुत्र के जन्म और उनके संरक्षण में माता के योगदान के सर्वश्रेष्ठ उदाहरण केवल दो ही माने जा सकते हैं- पहला छाया पुत्र शनि देव का और दूसरा पार्वती पुत्र श्री गणेश का। भगवान गणेश की उत्पत्ति और पुनर्जीवित होने की घटना से तो लगभग सभी परिचित हैं। शनि देव के साथ हुए अन्याय से लोग कम ही परिचित हैं।
शनि देव जब गर्भ में थे तब माता छाया ने भगवान शंकर की अनन्य भक्ति की। वे भक्ति में इतनी तल्लीन हो गईं कि खुद के स्वास्थ्य की देखभाल ठीक से नहीं कर सकीं। जब शनि देव का जन्म हुआ तो सूर्य देव आत्मिक रूप से इतने अशक्त बन बैठे थे कि उन्होंने अपने कृशकाय और श्यामवर्णी नवजात पुत्र को सहारा देने की बजाय उन्हें अपना पुत्र मानने से ही इनकार कर दिया। इससे माता छाया और शनि देव को कितना तिरस्कार और अपमान सहना पड़ा होगा, इसका अंदाजा लगाना भी हम सबके लिए दुष्कर है। विश्व को उजाला बांटने वाले पिता ने अपनी ही संतान के जीवन में दुख रूपी अंधेरा भर दिया। इसके बावजूद शनिदेव ने हार नहीं मानी।
त्याग और तपस्या से भगवान शंकर को प्रसन्न किया। वरदान स्वरूप अत्यधिक तेजस्वी दृष्टि प्राप्त की और खुद को अपने पिता के समकक्ष क्षमतावान बनाया। इस प्रकार उन्होंने न केवल माता के स्वाभिमान की रक्षा की बल्कि उन्हें उनके हक का सम्मान दिलाया। माता के स्वाभिमान की रक्षा के लिए उन्होंने भगवान शंकर की घोर तपस्या कर सूर्य के तेज से भी ज्यादा प्रभावकारी दृष्टि का वरदान पाया। आज यही दृष्टि दुष्टों, अनाचारियों और गलत करने वालों को सर्वाधिक भयभीत रखती है। सेल्फ-मेड शनि देव को यदि केवल छाया पुत्र ही कहा जाए तो मेरे खयाल से विद्वजनों द्वारा इसे सकारात्मक ही लिया जाना चाहिए।
सर्वहारा वर्ग के अग्रज कहे जा सकने वाले शनिदेव के भक्तों की आज संसार में कमी नहीं है। लोग उन्हें प्रेम और भयवश याद करते हैं। उनकी पूजा करते हैं। उनकी तेजस्वी दृष्टि से राहत पाने के लिए दिन-रात प्रार्थना करते हैं। लेकिन शनि देव उन्हीं से प्रसन्न होते हैं जो सही होते हैं। जिनके कार्य व्यवहार और व्यापार नैतिक होते हैं। छल-छद्म से शनि को सख्त चिढ़ है। पाखंड और प्रपंच को पोषण देने वाले यदि ये सोचते हों कि तिल, तेल, काले कपड़े व अन्य प्रिय पदार्थ चढ़ाने से शनिदेव उनके प्रति नरमी बरतेंगे तो वे भुलावे में हैं। ऎसे लोगों को शनिदेव के जीवन चरित्र का भान होना चाहिए।