लाइव हिंदी खबर :- समुद्र मंथन से उत्पन्न रत्नों में से एक शंख को विजय, समृद्धि, सुख-वैभव, शांति, यश-कीर्ति और मां लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है। इसे भगवान विष्णु को समर्पित कर दिया गया है, इसीलिए लक्ष्मी-विष्णु की पूजा में शंख ध्वनि अनिवार्य मानी जाती है। विष्णु पुराण के अनुसार, मां लक्ष्मी समुद्र के राजा की पुत्री हैं और शंख उनके सौतेले भाई हैं। शंख को नाद का प्रतीक माना गया है, इसीलिए हमारे यहां युद्ध के आरंभ और अंत में शंख ध्वनि का प्रयोग किया जाता है।
धार्मिक मान्यता है कि शंख से सभी शत्रुओं का नाश हो जाता है।
इसीलिए मंगलकारी शंख को आदि-अनादि काल से धार्मिक अनुष्ठान और यज्ञ प्रयोजनों में शामिल किया जाता रहा है। कहते हैं कि प्रात: और सायंकाल में जब सूर्य की किरणें निस्तेज हो जाती हैं, तब शंख ध्वनि से न सिर्फ आसपास का संपूर्ण वातावरण शुद्ध होता है, बल्कि इसके प्रभाव से पाप नष्ट होकर पुण्य शक्ति में वृद्धि होती है। मान्यता है कि शंख की ध्वनि जहां तक जाती है, वहां तक के कीटाणुओं का नाश हो जाता है। कई अर्थों में शंख कितने ही रोगों को दूर करने वाला महाऔषधि भी है, जिसका उपयोग अपने देश में आयुर्वेदिक दवाई के रूप में पुरातन काल से किया जाता रहा है। शंख में जल भरकर देवस्थान में रखने और इसे घर में छिड़कने से वातावरण शुद्ध होता है। जिस घर में शंख ध्वनि की जाती है, वहां कोई व्याधिग्रस्त नहीं होता और विपत्तियां दूर होती हैं।
वैसे शिव पूजा में शंख वर्जित है। असल में शिव जी ने लोकोद्धार के लिए शंखचूड़ का वध किया था। इस कारण शंख का जल शिवजी की पूजा में निषेध बताया जाता है। लेकिन शिवजी को छोड़कर सभी देवताओं पर, शंख से जल अर्पित किया जा सकता है। प्रयोग के आधार पर शंख मूलत: तीन प्रकार के होते हैं- वामावर्ती, दक्षिणावर्ती और मध्यावर्ती, और इन तीनों का अलग-अलग महत्व शास्त्रों में वर्णित है। श्रीकृष्ण के पास पांचजन्य, युधिष्ठिर के पास अनंत विजय, अर्जुन के पास देवदत्त, भीम के पास पुंडक, नकुल के पास सुगोष और सहदेव के पास मही पुष्पक शंख था, जिसकी शक्ति अलग- अलग थी। विष्णु के प्रिय माह पुरुषोत्तम मास में शंख का महत्व दोगुना हो जाता है। कहा तो यह भी जाता है कि शंख ध्वनि करने वाला मृत्यु उपरांत विष्णु लोक में परम पद पाता है।