लाइव हिंदी खबर :-रंगों और खुशियों का त्यौहार है होली। लोग एक दूसरे को रंग लगाकर नए साल और खुशियों का स्वागत करते हैं। वैसे तो भारत देश मान्यताओं और परम्पराओं का देश माना जाता है। होली पर भी रंग खेलने और गुझिया खाने के साथ बहुत सी छोटी- बढ़ी मान्यता जुड़ी है। संगम के शहर इलाहाबाद में ऐसी ही एक परम्परा सदियों से चली आ रही है। होली के एक दिन पहले यहां “हतौड़े की बारात” निकाली जाती है। इस बारात में शहर के लोग बाराती बनते हैं और हथौड़े को दूल्हा बनाया जाता है। हाथी-घोड़ों के साथ यह बारात पूरे शहर में घूमती है।
क्यों निकाली जाती हथौड़े की बारात
सेंटर ऑफ मीडिया स्टडी, इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के कोर्स कॅार्डिनेटर और वरिष्ट पत्रकार डॉ। धनंजय चोपड़ा ने बताया कि कुछ सालों पहले होली पर शहर में “हुडदंग” नाम का होली महोत्सव होता था। शहर के सबसे बड़ें इस आयोजन में पूरे देश से हास्य कवियों का जमावड़ा होता था। इस कार्यक्रम की शुरुआत कद्दू को फोड़ कर की जाती थी। और उस कद्दू को फोड़ने के लिए हतौड़े का इस्तेमाल होता है। धनंजय बताते हैं कि इस कार्यक्रम का उद्देश्य लोगों को हंसाना होता था।
लोकनाथ व्यायामशाला में सजता था दूल्हा “हथौड़ा”
इलाहाबाद के सबसे पुराने व्यायामशाला से इस हथौड़े को रीबन और चमकदार पन्नी से सजाया जाता था। सिर्फ यही नहीं काजल और नींबू-मिर्च से इस हथौड़े की नजर उतारी जाती है। इसके बाद पूरे धूम-धाम और पारंपरिक तरीके से बारात उठती है। शहरवासी बारातियों की तरह नाचते हुए पूरे शहर का चक्कर लगाते थे। साथ ही रंग और गुलाल भी एक-दूसरे को लगाया जाता था और खुशियां बाटी जाती थीं।
कद्दू के अंदर भरा जाता था अबीर
तथौड़े की बारात जब कार्यक्रम स्थल पर पहुंचती है तो उसी से हथौड़े से कद्दू को फोड़ा जाता है। उस कद्दू के अंदर रंग-बिरंगे गुलाल भरते हैं। इस कार्यक्रम का पूरा मकसद लोगों को हंसना होता है। इसके बात काव्य और कविताओं का कार्यक्रम शुरू होता है। पिछले कुच्छ समय से ये कार्यक्रम बंद हैं लेकिन हथौड़े की बारात की ये परम्परा अभी भी जारी है।