लाइव हिंदी खबर (हेल्थ कार्नर ) :- एक अच्छी डिटॉक्स डाइट में 60 प्रतिशत तरल और 40 प्रतिशत ठोस खाद्य पदार्थ होना चाहिए। शरीर में तरल की मात्रा बढऩे पर थकान, कब्ज, यूरिनरी प्रॉब्लम, हृदय रोग, मोटापा, डायबिटीज, अन्य जीवनशैली संबंधी रोगों से बचाव होता है। डिटॉक्सीफिकेशन के लिए आयुर्वेद में औषधियुक्त काढ़ा देते हैं। इससे लिवर व किडनी की कार्यप्रणाली सुधरती है।

बीमारी की वजह टॉक्सिंस
शरीर में मौजूद टॉक्सिंस अक्सर बीमारी का कारण बनते हैं। इसलिए मौसम के अनुसार खानपान में बदलाव कर शरीर का शोधन करते हैं। लिक्विड चीजें अधिक ली जाती हैं ताकि विषैले तत्व यूरिन के माध्यम से निकल जाएं। खाने के साथ शरीर में जाने वाले विषैले तत्व आंतों की सेल्स को क्षतिग्रस्त करते हैं। इससे ये आसानी से रक्त में पहुंच जाते हैं।
मौसम के अनुसार करते हैं पंचकर्म क्रिया
एलोपैथी में जीवाणुओं को रोग का प्रमुख कारण माना जाता है। आयुर्वेद में दोष अर्थात वात-पित्त, कफ को बीमारी का कारण माना जाता है। मौसम अनुसार शोधन क्रिया करते हैं। बारिश में तेल की वस्ति करते हैं। इस मौसम में वात प्रकोपित होता है। बसंत ऋतु में कफ के लिए वमन और शरद ऋतु में विरेचन कराते हैं। त्वचा रोगों में वमन, विरेचन क्रिया, मोटापे में वमन व वस्ति और थायरॉइड में १५ दिन तक वमन व १६ दिन वस्ति क्रिया कराते हैं। आंतों में अल्सरेटिव कोलाइटिस के लिए पिच्छा वस्ति कराते हैं। कंधे के ऊपर के रोगों में नस्यकर्म कराते हैं। वमन,विरेचन क्रिया के बाद चावल, दाल का पानी, खिचड़ी आदि खिलाते हैं।