क्या ग्रहण के समय कष्ट में रहते हैं सभी देव?क्लिक करके जानें कारण

क्या ग्रहण के समय कष्ट में रहते हैं सभी देव?क्लिक करके जानें कारण

 लाइव हिंदी खबर :-ज्योतिषीय नजरिए से जानें क्यों लगता है ग्रहण

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार, राहु और केतु को छाया ग्रह माना जाता है। तो अगर किसी की कुंडली में राहु-केतु बुरे भाव में बैठे हों तो उस व्यक्ति का जीवन परेशानियों से घिर जाता है। तो जब सूर्य और चंद्रमा पर भी राहु-केतु की छाया पड़ती है तो सूर्य और चंद्रमा को ग्रहण लगता है।

ग्रहण को लेकर प्रचलित है ये कथा

धार्मिक दृष्टि से माने तो ग्रहण के पीछे एक कछा प्रचलित है जिसके अनुसार, जब समुद्र मंथन के बाद अमृतपान को लेकर देवगण और दानवों के बीच विवाद शुरू हुआ तो भगवान विष्णु मोहिनी का रूप रखकर आए। मोहिनी को देखकर सभी दानव मोहित हो गए। मोहिनी ने दैत्यों और देवगणों को अलग अलग बैठा दिया और पहले देवताओं को अमृतपान पिलाना शुरू कर दिया। मोहिनी की चाल को बाकी असुर समझ न सके, लेकिन एक असुर समझ गया और देवताओं के बीच चुपचाप जाकर बैठ गया।

धोखे से मोहिनी ने उसे अमृतपान दे दिया। लेकिन तभी देवताओं की पंक्ति में बैठे चंद्रमा और सूर्य ने उसे देख लिया और भगवान विष्णु को बताया। इससे क्रोधित होकर भगवान विष्णु ने दानव का गला काटकर सुदर्शन चक्र से अलग कर दिया। चक्र से दानव के शरीर के दो टुकड़े तो हो गए लेकिन वो मरा नहीं क्योंकि तब तक वो अमृतपान पी चुका था।

उस दानव का सिर का हिस्सा राहू और धड़ का हिस्सा केतू कहलाया। राहू—केतू खुद के शरीर की इस हालत का जिम्मेदार सूर्य और चंद्रमा को मानते हैं, इसलिए राहू हर साल पूर्णिमा और अमावस्या के दिन सूर्य और चंद्रमा को ग्रहण लगाते हैं। इसे सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण कहा जाता है। चूंकि ग्रहण के समय हमारे देव कष्ट में होते हैं व ब्रहमांड में राहू अपना जोर लगा रहा होता है।

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