मुंबई और कोहिमा महिलाओं के लिए सबसे सुरक्षित, पटना और दिल्ली सबसे असुरक्षित

लाइव हिंदी खबर :- नेशनल एनुअल रिपोर्ट एंड इंडेक्स ऑन वुमेंस सेफ्टी (NARI) 2025 के मुताबिक, देश में महिलाओं के लिए सबसे सुरक्षित शहरों में कोहिमा और मुंबई शीर्ष पर हैं। इनके साथ विशाखापट्टनम, भुवनेश्वर, आइजोल, गंगटोक और ईटानगर भी शामिल हैं। वहीं, पटना, दिल्ली, जयपुर, फरीदाबाद, कोलकाता, श्रीनगर और रांची महिलाओं के लिए सबसे कम सुरक्षित शहर माने गए हैं। रिपोर्ट में बताया गया कि सुरक्षित शहरों में महिलाओं को समान अवसर, नागरिक भागीदारी, मजबूत पुलिस व्यवस्था और महिला-हितैषी इंफ्रास्ट्रक्चर मिलता है। इसके उलट, असुरक्षित शहरों में हालात चिंताजनक हैं।

मुंबई और कोहिमा महिलाओं के लिए सबसे सुरक्षित, पटना और दिल्ली सबसे असुरक्षित

यह सर्वे 31 शहरों की 12,770 महिलाओं पर आधारित है। राष्ट्रीय महिला आयोग (NMC) की अध्यक्ष विजया राहटकर ने गुरुवार को यह रिपोर्ट जारी की।

सर्वे के मुख्य नतीजे

  • 10 में से 6 महिलाओं ने कहा कि वे अपने शहर में सुरक्षित महसूस करती हैं।
  • 40% महिलाओं ने खुद को असुरक्षित या कम सुरक्षित बताया।
  • 91% महिलाओं ने वर्किंग प्लेस पर सुरक्षा महसूस की।
  • एजुकेशनल इंस्टीट्यूट में 86% महिलाएं दिन में सुरक्षित, लेकिन रात में असुरक्षित महसूस करती हैं।
  • 3 में से सिर्फ 1 महिला ही उत्पीड़न की शिकायत दर्ज कराती है।
  • 2024 में 7% महिलाओं को सार्वजनिक जगहों पर हैरेसमेंट झेलना पड़ा, जिनमें 24 साल से कम उम्र की लड़कियों का प्रतिशत दोगुना यानी 14% था।
  • पब्लिक ट्रांसपोर्ट (29%) और पड़ोस (38%) को सबसे असुरक्षित जगहों के रूप में चिन्हित किया गया।

रिपोर्ट ने साफ किया कि ज्यादातर घटनाएं शिकायत दर्ज न होने के कारण आधिकारिक रिकॉर्ड में नहीं आतीं। ऐसे में अपराध के डेटा को NARI जैसे सर्वे से जोड़ने की सिफारिश की गई है।

महिला असुरक्षा से जुड़ा दूसरा पहलू: वेतन में भेदभाव

महिला सुरक्षा के साथ-साथ कार्यस्थल पर समान वेतन का मुद्दा भी बड़ा है। आज भी कई जगहों पर महिलाएं पुरुषों के बराबर काम करने के बावजूद कम वेतन पाती हैं। प्राइवेट कंपनियों में जाति या क्षेत्र के आधार पर सैलरी में अंतर, मजदूरों का शोषण और अवसरों में असमानता जैसी समस्याएं बनी हुई हैं। हर व्यक्ति अपने श्रम का उचित सम्मान चाहता है, लेकिन जब महिलाओं को बराबर काम के बावजूद उचित मेहनताना नहीं मिलता, तो यह न केवल अन्याय है बल्कि महिला सशक्तिकरण में बड़ी बाधा भी है।

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