लाइव हिंदी खबर :- ना कोई धर्म, ना कोई जाति, ना मजहब ना कोई भाषा, गुरुद्वरा जाने के लिए सिर्फ आपका दिल साफ होना चाहिए। “एक ओंकार सतनाम करता पुरख…”, सुनकर आप अपने आप को सुकून की दुनिया में पाएंगे। आज हम आपको देश के सबसे प्रसिद्द गुरुद्वारों के बारे में बताने जा रहे हैं जहां जाकर आपके दिल को शांति मिलेगी। इस वीकेंड आप भी अपने परिवार वालों या दोस्तों के साथ जाइये गुरुद्वारे और बनाइये अपने संडे को और भी खास।
गुरुद्वारा हरमिंदर साहिब/स्वर्ण मंदिर, अमृतसर पंजाब
अमृतसर के इस गुरुद्वारे को हरमिंदर साहिब, श्री दरबार साहिब और स्वर्ण मंदिर के नाम से भी जाना जाता हैं। युवाओं में यह गुरुद्वारा ‘गोल्डन टेम्पल’ के नाम से भी प्रसिद्ध है। सोने से ढका ये गुरुद्वारा सिर्फ देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। इसे भारत के मुख्य धार्मिक स्थलों में गिना जाता है। मान्यताओं के अनुसार, इस गुरुद्वारे को बचाने के लिए महाराजा रणजीत सिंह जी ने इसके ऊपरी हिस्से को सोने से ढंक दिया था, इसलिए इसे स्वर्ण मंदिर का नाम भी दिया गया था। यहां जाकर आप ना सिर्फ भक्तिमय हो जाते हैं बल्कि इसके आस-पास मौजूद स्ट्रीट मार्केट से शॉपिंग भी कर सकते हैं।
गुरुद्वारा श्री हेमकुंड साहिब, उत्तराखंड
गुरुद्वारा श्री हेमकुंड साहिब उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है। उत्तराखंड की हसीं वादियों में मौजूद यह गुरुद्वारा समुद्र स्तर से लगभग 4000 मीटर की ऊंचाई पर है। बर्फबारी के कारण यात्रियों की सुरक्षा के लिए इसे अक्टूबर से अप्रैल तक बंद कर दिया जाता है। यह गुरुद्वारा बेहद सुंदर होने के साथ-साथ एक बहुत ही अच्छी वास्तु कला का भी उदाहरण है। प्राकृतिक सुकून के साथ उत्तराखंड के हेमकुंड साहिब में आपको आध्यात्मिक सुख की भी प्राप्ति होती है।
हजूर साहिब गुरुद्वारा, महाराष्ट्र
हजूर साहिब सिखों के 5 तख्तों में से एक है। यह महाराष्ट्र के नान्देड नगर में गोदावरी नदी के किनारे स्थित है। इस गुरुद्वारा को ‘सच खण्ड’ के नाम से भी जाना जाता है। गुरूद्वारे के भीतर के कमरे को ‘अंगीठा साहिब’ कहा जाता है। मान्यता है कि इस कक्ष में केवल ‘ब्रह्मचारी’ सेवक ही सेवा कर सकता है, इसके अलावा यहां किसी भी अन्य सेवक को जाने की अनुमति नहीं है। इतिहास के मुताबिक इसी स्थान पर 1708 में गुरु गोबिंद सिंह का अंतिम संस्कार किया गया था। महाराजा रणजीत सिंह के आदेश के बाद इस गुरूद्वारे का निर्माण सन 1832-1837 के बीच हुआ था।
गुरुद्वारा पांवटा साहिब, हिमाचल प्रदेश
पांवटा साहिब गुरुद्वारा दसवें गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी को समर्पित है। यह हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में स्थित है। इसी जगह पर गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने जीवन के चार साल बिताए और इसी जगह पर दशम ग्रन्थ की रचना की। गुरुद्वारे का एक संग्रहालय है, जो गुरु के उपयोग की कलम और अपने समय के हथियारों को दर्शाती है।
गुरुद्वारा बंगला साहिब, दिल्ली
मध्य दिल्ली में स्थित गुरुद्वारा बंगला साहिब देश के प्रसिद्ध गुरुद्वारा में से एक है। यह गुरुद्वारा पहले राजा जय सिंह की हवेली थी, जिसे बाद में गुरु हरकिशन जी की याद में एक गुरुद्वारे में तब्दील कर दिया गया। शुरुआती दिनों में इसे जयसिंहपुरा पैलेस कहा जाता था, जो बाद में बंगला साहिब के नाम से मशहूर हुआ।
फतेहगढ़ साहिब, पंजाब
फतेहगढ़ साहिब पंजाब के फतेहगढ़ जिले में मौजूद है। ऐसी मान्याता है कि वर्ष 1704 में साहिबजादा फतेह सिंह और साहिबजादा जोरावर सिंह को फौजदार वजीर खान के आदेश पर यहां दीवार में जिंदा चुनवा दिया गया था। यह गुरुद्वारा उन्हीं की शहादत की याद में बनाया गया था। गुरुद्वारे की मुख्य विशिष्टता सिख वास्तुकला का नमूना है जिसमें सफेद पत्थर की संरचनाएं एवं स्वर्ण गुंबद है।
तख्त श्री दमदमा साहिब, पंजाब
दमदमा का मतलब ‘श्वास या आराम स्थान’ होता है। गुरुद्वारा श्री दमदमा साहिब सिखों के पांच तख्तों में से एक है। यह पंजाब के बठिंडा से 28 किमी दूर दक्षिण-पूर्व के तलवंडी सबो गांव में स्थित है। मुगल अत्याचारों के खिलाफ लड़ाई लड़ने के बाद गुरु गोबिंद सिंह जी यहां आकर रुके थे। इस वजह से इसे ‘गुरु की काशी’ के रूप में भी जाना जाता है।