लाइव हिंदी खबर :- हिंदू धर्म में माघ का महीना काफी पवित्र माना जाता है। माघ महीने में बसंत ऋतु की शुरुआत हो जाती है। बसंत ऋतु होने के साथ ब्रज और मथुरा में 42 दिनों तक चलने वाली बंतोत्सव भी शुरू हो जाती है। मथुरा व ब्रज उन पौराणिक जगहों में से है जिनका प्रमाण हिंदू ग्रंथ में मिलता है। यहां कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। यहां की होली देश-दुनिया में काफी प्रसिद्ध है जिसे देखने के लिए पर्यटक, श्रद्धालु आते हैं। ऐसी एक पौराणिक कथा जुड़ी है मथुरा के एक कुंड में, जिसके बारे कहा जाता है कि यह स्नान करने से निसंतान दंपत्ति को संतान का सुख प्राप्त होता है।
दो सरवरों से जुड़ी है ये मान्यता
मथुरा के अरिता नामक गांव में 2 सरोवर मौजूद है एक सरोवर का नाम राधा कुंड और दूसरे सरोवर का नाम कृष्ण कुंड कहा जाता है। राधा कुंड के बारे में मान्यता है कि जिस किसी दंपत्ति को संतान की प्राप्ति नहीं होती, वह अहोई अष्टमी (कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी) की मध्य रात्रि को इस कुंड में स्नान करें, तो उन्हें निश्चित ही संतान की प्राप्ति होती है।
कंस ने श्रीकृष्ण का वध करने के लिए भेजा था राश्रस
पौराणिक कथा के मुताबिक श्रीकृष्ण के मामा कंस ने उनका वध करने के लिए अरिष्टासुर राक्षस को भेजा। वह राक्षस बछड़े का रूप बनाकर श्रीकृष्ण की गायों में शामिल हो गया और बाल-ग्वालों को मारने लगा। श्रीकृष्ण ने अरिष्टासुर को पहचान लिया और जमीन पर पटक-पटककर उसका वध कर दिया। यह देखकर राधा रानी ने श्रीकृष्ण से कहा कि उन्हें गौहत्या का पाप लग गया है। इस पाप की मुक्ति के लिए उन्हें सभी तीर्थों के दर्शन करने चाहिए। तब श्रीकृष्ण ने देवर्षि नारद से इसका उपाय पूछा। देवर्षि नारद ने कहा कि वह सभी तीर्थों का आह्वान करके उन्हें जल रूप में बुलाएं और उन तीर्थों के जल को एक साथ मिलाकर स्नान करें।
ऐसा करने से गौहत्या के पाप से मुक्ति मिल जाएगी। देवर्षि के कहने पर श्रीकृष्ण ने एक कुंड में सभी तीर्थों के जल को आमंत्रित किया और कुंड में स्नान करके पापमुक्त हो गए। उस कुंड को कुष्ण कुंड कहा जाता है, जिसमें स्नान करके श्रीकृष्ण गौहत्या के पाप से मुक्त हुए थे।
बांसुरी से हुआ कुंड का निर्माण!
मान्यता है कि कृष्ण कुंड का निर्माण श्रीकृष्ण ने अपनी बांसुरी से किया था। नारद मुनि के कहने पर श्रीकृष्ण ने अपनी बांसुरी से एक छोटा सा कुंड खोदा और सभी तीर्थों के जल से उस कुंड में आने की प्रार्थना की। भगवान के बुलाने पर सभी तीर्थ वहां जल रूप में आ गए। माना जाता है कि तभी से सभी तीर्थों का अंश जल रूप में यहां स्थित है। इस कुंड के जल का रंग काला दिखाई देता है, जो श्रीकृष्ण के काले रंग का प्रतीक है।
श्रीकृष्ण के बनाए कुंड को देखकर राधा ने उस कुंड के पास ही अपने कंगन से एक और छोटा सा कुंड खोदा। इसीलिए इस कुंड को राधा कुंड के नाम से भी जानते हैं। जब भगवान ने उस कुंड को देखा, तो हर रोज उसी कुंड में स्नान करने का और उनके बनाए कृष्ण कुंड से भी ज्यादा प्रसिद्ध होने का वरदान दिया। अहोई अष्टमी में यहां हजारों लोग स्नान करते हैं। माना जाता है कि संतान प्राप्ति के साथ ही व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।