इस तरह के लोग चील-कौओं को खिला देते हैं शव,क्लिक करके जानिए ऐसी ही 7 बातें

इस तरह के लोग चील-कौओं को खिला देते हैं शव,क्लिक करके जानिए ऐसी ही 7 बातें लाइव हिंदी खबर :- आज से लगभग एक हजार वर्ष पहले अरब हमलावरों के आक्रमण के चलते पारसियों को ईरान छोड़कर भारत तथा अन्य देशों में शरण लेनी पड़ी। उस समय दुनिया के तीन महाद्वीपों तथा 20 देशों में राज करने वाले पारसी समुदाय की तादाद आज बहुत कम रह गई हैं। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि पारसी धर्म के अनेक रीति रिवाज हिंदू धर्म से मिलते हुए हैं।

आइए जानते हैं पारसियों के बारे में ऐसी ही कुछ बातें जो अब तक बाहर के लोग नहीं जानते

(1) हिंदू धर्म की तरह ही पारसियों में भी अग्नि को पवित्र माना जाता है तथा अग्नि की पूजा की जाती है। इनके मंदिर को आताशगाह या अग्नि मंदिर (फायर टेंपल) कहा जाता है।
(2) पारसी कम्युनिटी के लोग एक ईश्वर को मानते हैं जो ‘आहुरा माज्दा’ कहलाते हैं। ये लोग प्राचीन पैगंबर जरथुश्ट्र की शिक्षाओं को मानते हैं। पारसी लोग आग को ईश्वर की शुद्धता का प्रतीक मानते हैं और इसीलिए आग की पूजा करते हैं।
(3) ईसा मसीह की ही भांति पारसी धर्म की स्थापना करने वाला जरस्थ्रु के माने में मान्यता है कि उनका जन्म लगभग तीन हजार वर्ष पूर्व एक कुंआरी माता “दुघदोवा” से हुआ था। उनके नाम पर ही पारसियों का धर्म जोरोस्ट्रियन कहलाता है।
(4) पारसी समुदाय में बाहर के लोगों को स्वीकार नहीं किया जाता। यदि किसी पारसी लड़की ने किसी अन्य धर्म के व्यक्ति से विवाह किया है तो उसके पति तथा बच्चों को पारसी समुदाय में प्रवेश नहीं दिया जाता। इसी तरह लड़के ने बाहर के धर्म में विवाह किया है तो उसकी पत्नी को भी पारसी बनने की अनुमति नहीं होती।
(5) पारसियों का नया वर्ष 24 अगस्त को आरंभ होता है। इस दिन को नवरोज भी कहा जाता है। मान्यता है कि इसी दिन जरस्थ्रु का जन्म हुआ था।
“किस्सा ए संजान” पारसियों का सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जिसकी रचना बहमान कैकोबाद ने की थी।
(6) पारसियों पर सबसे पहला और बड़ा हमला 330 ईसा पूर्व में सिकंदर ने किया था। इसमें उनके साम्राज्य को काफी नुकसान पहुंचा था। इसके बाद अरब से आने वाले मुस्लिम आक्रमणकारियों ने इन्हें पूरी तरह नष्ट करने का प्रयास किया जिसके बाद इन्हें अपने जन्मस्थल ईरान से भागना पड़ा और अन्य देशों में शरण लेनी पड़ी।
(7) पारसी एक साल को 360 दिन का मानते हैं। बाकी पांच दिन को वे गाथा कहते हैं। इन पांच दिनों में वे अपने पूर्वजों को याद करते हैं।

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