इस माह श्रीकृष्ण की ऐसे पाएं विशेष कृपा, अपने राशिनुसार करें मंत्र जाप

Shri Krishna Mantra Jaap: Chanting These Shri Krishna Mantra Can Solve All Problems and Keeps Diseases Away | Shri Krishna Mantra: श्रीकृष्ण के इन मंत्रों का सच्चे मन से करें जाप, दूरलाइव हिंदी खबर :-हर 3 साल में एक बार एक अतिरिक्त माह का प्राकट्य होता है, जिसे अधिकमास या पुरुषोत्तम मास के नाम से जाना जाता है। हिंदू धर्म में इस माह का विशेष महत्व है। दरअसल हर तीन साल में एक बार अधिकमास आता है जो चंद्र वर्ष और सूर्य वर्ष में अंतर से बनता है।

इस माह के अतिरिक्त होने के अलावा मलीन होने के कारण कोई भी देवता इस माह में पूजा नहीं करवाना चाहता था। इस माह का देवता कोई भी नहीं बनना चाहता था। तब अधिकमास ने स्वयं भगवान विष्णु से निवेदन किया था। तब भगवान विष्णु ने इस मास को अपना नाम पुरुषोत्तम दिया था। तभी से इस माह को पुरुषोत्तम मास के नाम से भी जानते हैं।

इस महीने में धर्म कर्म, दान दक्षिणा करने का बहुत महत्व बताया गया है। अधिकमास को पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है। अधिकमास में भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करने के साथ भगवान श्रीकृष्ण की आराधना करने का भी विधान है। इनकी कृपा से जीवन में सकारात्मकता का वास होता है। पुरुषोत्तम यानि अधिकमास के स्वामी भगवान विष्णु होने के कारण इस समय में आप अपनी राशिनुसार कृष्ण मंत्र का जाप कर सकते हैं। इस संबंध में माना जाता है कि राशिनुसार मंत्र जाप से भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण जल्द प्रसन्न होकर आशीर्वाद प्रदान करते हैं।

राशिनुसार ये हैं श्री कृष्ण को प्रसन्न करने के मंत्र…

1. मेष राशि:
ॐ माधवाय नम:।।

2.वृषभ राशि:
ॐ राधाप्रियाय नम:।।

3.मिथुन राशि:
ॐ भक्त-वत्सलाय नम:।।

4.कर्क राशि:
ॐ कृष्णाय नम:।।

5.सिंह राशि:
ॐ दामोदराय नम:।।

6.कन्या राशि:
ॐ देवकीसुताय नम:।।

7.तुला राशि:
ॐ दुख हरताय नम:।।

8.वृश्चिक राशि:
ॐ भक्त-प्रियाय नम:।।

9.धनु राशि:
ॐ वासुसुताय नम:।।

10.मकर राशि:
ॐ यदुनन्दनाय नम:।।

11.कुंभ राशि:
ॐ गोविन्दाय नम:।।

12.मीन राशि:
ॐ भक्त दुख हरताय नम:।।

अधिकमास व पुरुषोत्तम मास से जुड़े कुछ खास तथ्य…

1. अधिकमास बहुत ही पुण्य फल देने वाला माना जाता है। अथर्ववेद में इसे भगवान का घर बताया गया है- ‘त्रयोदशो मास इन्द्रस्य गृह:।’

2. अधिकमास के अधिपति देवता भगवान विष्णु है। इस मास की कथा भगवान विष्णु के अवतार नृःसिंह भगवान और श्रीकृष्ण से जुड़ी हुई है। अत: इस मास में इन दोनों की पूजा करने से सभी तरह के संकट मिट जाते हैं।

3. इस मास में श्रीकृष्ण, श्रीमद्भगवतगीता, श्रीराम कथा वाचन, गजेंद्र मोक्ष कथा, और श्रीविष्णु भगवान के श्री नृःसिंह स्वरूप की उपासना विशेष रूप से की जाती है । इस माह उपासना करने का अपना अलग ही महत्व है । जो व्यक्ति इस माह में व्रत, पूजा और उपासना करता है वह सभी पापों से छुटकर वैकुण्ठ को प्राप्त होता है ।

4. इस मास में पुरुषोत्तम भगवान का षोडशोपचार पूजन करने, श्रद्धा-भक्ति से भगवान की पूजा-आराधना, व्रत आदि करने से मनुष्य के दु:ख-दारिद्रय और पापों का नाश होकर अंत में भगवान के धाम की प्राप्ति होती है।

5. धर्म ग्रंथों के अनुसार श्री नृःसिंह भगवान ने इस मास को अपना नाम देकर कहा है कि अब मैं इस मास का स्वामी हो गया हूं और इसके नाम से सारा जगत पवित्र होगा । इस महीने में जो भी मुझे प्रसन्न करेगा, वह कभी गरीब नहीं होगा और उसकी हर मनोकामना पूरी होगी । इसलिए इस मास के दौरान जप, तप, दान से अनंत पुण्यों की प्राप्ति होती है।

6. इस माह में 33 देवताओं की पूजा होती है- विष्णु, जिष्णु, महाविष्णु, हरि, कृष्ण, भधोक्षज, केशव, माधव, राम, अच्युत, पुरुषोत्तम, गोविंद, वामन, श्रीश, श्रीकांत, नारायण, मधुरिपु, अनिरुद्ध, त्रीविक्रम, वासुदेव, यगत्योनि, अनन्त, विश्वाक्षिभूणम्, शेषशायिन, संकर्षण, प्रद्युम्न, दैत्यारि, विश्वतोमुख, जनार्दन, धरावास, दामोदर, मघार्दन एवं श्रीपति जी की पूजा से बड़ा लाभ होता है।

7. इस मास में शालिग्राम की मूर्ति के समक्ष घर के मंदिर में घी का अखण्ड दीपक पूरे महीने प्रज्वलित कीजिए ।

8. इस माह में खासकर श्रीमद्भागवत की कथा का पाठ करना चाहिए या गीता के पुरुषोत्तम नाम के 14 वें अध्याय का नित्य अर्थ सहित पाठ करना चाहिए।

9. भगवान के ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ इस द्वादशाक्षर मन्त्र का जप करना चाहिए।

10. इस मास में पुरुषोत्तम-माहात्म्य का पाठ भी अत्यन्त फलदायी है।

11. इस मास में भगवान के दीपदान और ध्वजादान की भी बहुत महिमा है।

12. इस मास में गौओं ( गायों ) को ताजी व हरी घास खिलानी चाहिए।

13. इस महीने व्रत करने वालों को एक समय भोजन करना चाहिए । भोजन में गेहूं, चावल, जौ, मूंग, तिल, बथुआ, मटर, चौलाई, ककड़ी, केला, आंवला, दूध, दही, घी, आम, हर्रे, पीपल, जीरा, सोंठ, सेंधा नमक, इमली, पान-सुपारी, कटहल,/ शहतूत , मेथी आदि खाने का विधान है ।

14. शहद, चावल का मांड़, उड़द, राई, मसूर, मूली, प्याज, लहसुन, बासी अन्न, नशीले पदार्थ आदि नहीं खाने चाहिए ।

15. इस माह में विवाह, नामकरण, श्राद्ध, कर्णछेदन व देव-प्रतिष्ठा आदि शुभकर्मों का भी इस मास में निषेध है ।

16. अधिक मास के दौरान सर्वार्थसिद्धि योग 9 दिन, द्विपुष्कर योग 2 दिन, अमृतसिद्धि योग 1 दिन और पुष्य नक्षत्र 1 दिन तक आ रहा है। इन योगों में विवाह तय करना, सगाई करना, कोई भूमि, मकान, भूमि, भवन खरीदने के लिए अनुबंध किया जा सकता है। आभूषण या अन्य खरीददारी के लिए लिए भी यह शुभ योग शुभ मुहूर्त देख कर खरीद सकते हैं ।

17. इस माह में विष्णु सहस्रनाम पाठ करना चाहिए। पौराणिक शास्त्रों में भगवान विष्णु के 1000 नामों की महिमा अवर्णनीय है। विष्णु मंत्र का जाप करने वाले साधकों को भगवान विष्णु स्वयं आशीर्वाद देते हैं, उनके पापों का शमन करते हैं और उनकी समस्त इच्छाएं पूरी करते हैं ।

18. ऐसा माना जाता है कि अधिकमास में किए गए धार्मिक कार्यों का किसी भी अन्य माह में किए गए पूजा-पाठ से 10 गुना अधिक फल मिलता है । पौराणिक सिद्धांतों के अनुसार इस मास के दौरान यज्ञ- हवन के अलावा श्रीमद् देवीभागवत, श्री भागवत पुराण, श्री विष्णु-पुराण, भविष्योत्तर पुराण आदि का श्रवण, पठन, मनन विशेष रूप से फलदायी होता है ।

19. अधिक मास में ध्यान और योग के माध्यम से इस पूरे मास में जातक अपने धार्मिक और आध्यात्मिक प्रयासों से उच्च स्तर पर पहुंचकर सफलता का सारे रास्ते खोल सकता है । अत: बड़ी प्रतीक्षा के बाद आया यह सुअवसर नहीं चूकना चाहिए । आध्यात्मिक उन्नती के लिए यह मास उत्तम है । इन प्रयासों से समस्त कुंडली दोषों का भी निराकरण हो जाता है।

20. सेहत और स्वास्थ के लिए भी यह मास उत्तम माना गया है। अधिकमास के दौरान किए गए प्रयासों से व्यक्ति स्वयं को बाहर से स्वच्छ कर परम निर्मलता को प्राप्त कर नई उर्जा से भर जाता है।

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