श्राद्ध करने की सरल विधि, अपने पितरों को ऐसे करें प्रसन्न

लाइव हिंदी खबर :-सनातन धर्म में पितृपक्ष की अपनी महत्‍ता है। माना जाता है कि इस दौरान यदि पितरों को प्रसन्‍न कर लिया जाए तो घर-परिवार पर उनकी कृपा बनी रहती है। साथ ही परिवार में किसी भी तरह के दु:ख तकलीफ में भी कमी आती है।

Pitru Paksha 2020: जानिए श्राद्धपक्ष में क्या करना चाहिए, क्या नहीं? | Pitru Paksha 2020: Here is Dos and Donts - Hindi Oneindia

पितृ पक्ष या श्राद्ध पक्ष 16 द‍िन की अवधि है। इसमें सनातन धर्म के लोग अपने पितरों को श्रद्धापूर्वक याद करते हैं और उनके लिए पिंडदान करते हैं। पितृपक्ष को लेकर यह भी मान्‍यता है क‍ि अगर इस समय पितरों को प्रसन्‍न कर लिया जाए तो घर-परिवार पर उनकी कृपा बनी रहती है। इसके अलावा जातक और उसके परिवार पर कोई भी बुरा साया या फिर दु:ख-तकलीफ नहीं आती।

नरक से रक्षा करने वाला ही पुत्र…
वहीं शास्त्र कहते हैं कि ‘पुन्नाम नरकात् त्रायते इति पुत्रः, अर्थात- जो नरक से त्राण ( रक्षा ) करता है वही पुत्र है। श्राद्ध कर्म के द्वारा ही पुत्र जीवन में पितृ ऋण से मुक्त हो सकता है, इसीलिए शास्त्रों में श्राद्ध करने की अनिवार्यता कही गई है। जीव मोहवश इस जीवन में पाप-पुण्य दोनों कृत्य करता है। पुण्य का फल स्वर्ग है और पाप का नर्क।

पंडित शर्मा का कहना है कि शास्त्रों के मुताबिक नर्क में पापी को घोर यातनाएं भोगनी पड़ती हैं और स्वर्ग में जीव सानंद रहता है। जन्म-जन्मांतर में अपने किये हुए शुभाशुभ कर्मफल के अनुसार स्वर्ग-नरक का सुख भोगने के बाद जीवात्मा पुनः चौरासी लाख योनियों की यात्रा पर निकल पडती है अतः पुत्र-पौत्रादि का यह कर्तव्य होता है कि वे अपने माता-पिता तथा पूर्वजों के निमित्त श्रद्धा पूर्वक ऐसे शास्त्रोक्त कर्म करें, जिससे उन मृत प्राणियों को परलोक अथवा अन्य लोक में भी सुख प्राप्त हो सके। शास्त्रों में मृत्यु बाद और्ध्वदैहिक संस्कार, पिण्डदान, तर्पण, श्राद्ध, एकादशाह, सपिण्डीकरण, अशौचादि निर्णय, कर्मविपाक आदि के द्वारा पापों के विधान का प्रायश्चित कहा गया है।

श्राद्ध : ऐसे समझें…
श्राद्ध करने की सरल विधि है कि जिस दिन आप के घर श्राद्ध तिथि हो उस दिन सूर्योदय से लेकर दोपहर से पहले की अवधि के मध्य ही अपने पितरों के निमित्त श्राद्ध-तर्पण आदि करें। प्रयास करें कि इसके पहले ही ब्राह्मण से तर्पण आदि करा लें।

16 श्राद्ध : इन भोज्य पदार्थों से करें परहेज
श्राद्ध में राजमा, मसूर, अरहर, गाजर, कुम्हड़ा, गोल लौकी, बैगन, शलजम, हींग, प्याज-लहसुन, काला नमक, काला जीरा, सिंघाड़ा, जामुन, पिप्पली, कैंथ, महुआ और चना ये सब वस्तुएं श्राद्ध में वर्जित हैं। गौ, भूमि, तिल, स्वर्ण, घी, वस्त्र, अनाज, गुड़, चांदी तथा नमक इन्हें महादान कहा गया है। भगवान विष्णु के पसीने से तिल और रोम से कुश की उत्पत्ति हुई है अतः इनका प्रयोग श्राद्ध कर्म में अति आवश्यक है।

श्राद्ध विधि: सामग्री…
श्राद्ध करने में दूध, गंगाजल, मधु, वस्त्र, कुश, तिल अभिजित मुहूर्त मुख्य रूप से अनिवार्य तो है ही तुलसीदल से भी पिंडदान करने से पितर पूर्णरूप से तृप्त होकर कर्ता को आशीर्वाद देते हैं। तर्पण के समय सर्वप्रथम निमंत्रित ब्राह्मण का पैर धोना चाहिए। इस कार्य के समय पत्नी को दाहिनी तरफ होना चाहिए। जिस दिन आपको पितरों का श्राद्धल करना हो उस तिथि के दिन तेल लगाने, दूसरे का अन्न खाने, और स्त्री प्रसंग से परहेज करना चाहिए।

ब्राह्मण भोजन से पहले इन्हें भोजन कराएं…
: श्राद्ध कर्म के दिन ब्राह्मण को भोजन कराने से पहले पंचबलि गाय, कुत्ते, कौए, देवतादि और चींटी के लिए भोजन सामग्री पत्ते पर निकालें ।
: गोबलि- गाय के लिए पत्तेपर ‘गोभ्ये नमः’ मंत्र पढकर भोजन सामग्री निकालें।
: श्वानबलि- कुत्ते के लिए भी ‘द्वौ श्वानौ’ नमः मंत्र पढकर भोजन सामग्री पत्ते पर निकालें ।
: काकबलि- कौए के लिए ‘वायसेभ्यो’ नमः’ मंत्र पढकर पत्ते पर भोजन सामग्री निकालें ।
: देवादिबलि- देवताओं के लिए ‘देवादिभ्यो नमः’ मंत्र पढकर और चींटियों के लिए ‘पिपीलिकादिभ्यो नमः’ मंत्र पढकर चींटियों के लिए भोजन सामग्री पत्ते पर निकालें।

इसके बाद भोजन के लिए जहां तक हो सके पत्ते पर अथवा थाली पर ब्राह्मण के लिए भोजन परोसें। दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके कुश, तिल और जल लेकर हथेली में स्थित पितृ तीर्थ से संकल्प करें और एक या तीन ब्राह्मण को भोजन कराएं। भोजन के उपरांत यथा शक्ति दक्षिणा और अन्य सामग्री दान करें साथ ही निमंत्रित ब्राह्मण की चार बार प्रदक्षिणा कर आशीर्वाद लें। यही सरल उपाय है जो श्रद्धा पूर्वक करने से पितरों को तृप्त कर देगा और आपके पितृ आशीर्वाद देने के लिए विवश हो जायेंगे जिससे आपके कार्य व्यापार, शिक्षा अथवा वंश बृद्धि में आ रही रुकावटें भी दूर हो जाएंगी ।

पितृ पक्ष में ऐसे भी करें पितरों का प्रसन्न…
: घर हो या व्‍यापार स्‍थल पितरों की हंसती-मुस्‍कुराती हुई तस्‍वीर लगानी चाहिए, लेकिन ध्‍यान रखें कि तस्‍वीर दक्षिण-पश्चिम की दीवार या कोने में ही लगाएं। इससे पितरों का आर्शीवाद मिलता है।

: दिन की शुरुआत करते समय सबसे पहले पितरों की तस्‍वीर को प्रणाम करें। इसके बाद उसपर फूल-माला चढ़ाएं। धूपबत्‍ती जलाएं और उनका आर्शीवाद लें। ऐसा करने से पीतरों को अच्‍छा लगता है और वह प्रसन्‍न होते हैं।

: पितरों की जयंती और बरसी मनाना कभी भी न भूलें। इस दिन कोई न कोई आयोजन जरूर करें। भले ही छोटा सा करें लेकिन उन्‍हें याद जरूर करें। साथ ही उनकी याद में खाना और मिठाईयां बांटे। इससे उनकी कृपा सदैव परिवार पर बनी रहती है।

: पितरों को प्रसन्‍न करने के लिए आप उनके नाम पर प्‍याऊ बनवाएं। कहते हैं कि इससे उन्‍हें काफी प्रसन्‍नता मिलती है। इसके अलावा उनके नाम पर शमशान में बैठने की व्‍यवस्‍था करवाएं। यदि चाहें तो कोई चबूतरा बनवा दें या फिर चबूतरा बना हो तो उसके ऊपर शेड भी डलवा सकते हैं।

: पितरों को प्रसन्‍न करने के लिए अधिक से अधिक दान करें। चाहें तो धन या फिर किसी अन्‍न-वस्‍त्र इत्‍यादि जरूरत की वस्‍तुओं को दान में दे सकते हैं। इससे पितरों को शांति मिलती है और वह प्रसन्‍न होते हैं।

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