श्री कृष्ण के जन्म से जुड़ी प्रमुख घटनाएं है बहुत ख़ास, जाने वजह

10 बातें जो कृष्ण के जीवन को बनाती है महानतम, जीवन प्रबंधन के लिए सबसे  श्रेष्ठ सूत्र | 10 things that make Krishna's life the greatest, best  formula for life management - Dainik Bhaskarलाइव हिंदी खबर :-भगवान श्री कृष्‍ण का जन्म भाद्रपद माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रात्रि में कंस की जेल मथुरा में रोहणी नक्षत्र के दौरान हुआ माना जाता है, इसे श्री कृष्ण जन्माष्टमी भी कहते हैं। जहां राम जीवन में मर्यादा पुरुषोत्तम हुए वहीं श्री कृष्ण का पूरा जीवन संघर्षों से भरा रहा, इसी के चलते वे लीला पुरुषोत्तम कहलाए।

श्री कृष्‍ण के अवतरित होने के साथ ही उनके जीवन ही संघर्ष से शुरू हो गया था। लेक‍िन इसे लेकर वह कभी भी परेशान नहीं दिखे। वह हमेशा मुस्‍कराते हुए बंसी बजाते रहते थे और दूसरों को भी समस्‍याओं को ऐसे ही मुस्‍कराते हुए सुलझाने की सीख देते थे। इन लीला पुरुषोत्तम श्री कृष्ण के जन्‍म की रात कुछ अनोखी घटनाएं हुई थीं। जो इस प्रकार हैं…

: श्री कृष्ण के जन्म के समय योगमाया द्वारा जेल के सभी संतरियों को गहरी नींद में सुला दिया गया। इसके बाद बंदीगृह का दरवाजा अपने आप ही खुल गया। उस वक्त भारी बारिश हो रही थी।

वसुदेवजी ने नन्हें कृष्ण को एक टोकरी में रखा और उसी भारी बार‍िश में टोकरी को लेकर वह जेल से बाहर निकल गए। वसुदेवजी मथुरा से नंदगांव पहुंच गए लेक‍िन उन्‍हें इस घटना का ध्‍यान नहीं था।

: श्री कृष्‍ण के जन्‍म के समय भीषण बार‍िश हो रही थी। ऐसे में यमुना नदी उफान पर थी। इस स्थिति को देखते हुए श्री कृष्‍ण के पिता वसुदेव जी कन्‍हैया को टोकरी में लेकर यमुना नदी में प्रवेश कर गए और तभी चमत्कार हुआ। यमुना के जल ने कन्‍हैया के चरण छुए और फिर उसका जल दो हिस्सों में बंट गया और इस पार से उस पार रास्ता बन गया। उसी रास्‍ते से वसुदेवजी गोकुल पहुंचे।

: वसुदेव कान्हा को यमुना के उस पार गोकुल में अपने मित्र नंदगोप के यहां ले गए। वहां नंद की पत्नी यशोदाजी ने भी एक कन्‍या को जन्‍म द‍िया था। यहां वसुदेव श्री कृष्ण को यशोदा के पास सुलाकर उस कन्या को अपने साथ वापस ले आए।

कथा के अनुसार, नंदरायजी के यहां जब कन्‍या का जन्म हुआ तभी उन्‍हें पता चल गया था क‍ि वसुदेवजी कृष्‍ण को लेकर आ रहे हैं। तो वह अपने दरवाजे पर खड़े होकर उनका इंतजार करने लगे। फिर जैसे ही वसुदेवजी आए उन्‍होंने अपने घर जन्‍मी कन्‍या को गोद में लेकर वसुदेवजी को दे द‍िया। हालांक‍ि कहा जाता है कि इस घटना के बाद नंदराय और वसुदेव दोनों ही यह सबकुछ भूल गए थे। यह सबकुछ योगमाया के प्रभाव से हुआ था।

इसके बाद वसुदेवजी नंदबाबा के घर जन्‍मीं कन्‍या यानी क‍ि योगमाया को लेकर चुपचाप मथुरा के जेल में वापस लौट गए। बाद में जब कंस को देवकी की आठवीं संतान के जन्म का समाचार मिला तो वह कारागार में पहुंचा।

उसने उस नवजात कन्या को पत्थर पर पटककर जैसे ही मारना चाहा, वह कन्या अचानक कंस के हाथों से छूटकर आकाश में पहुंच गई और उसने अपना दिव्य स्वरूप प्रदर्शित कर कंस वध की भविष्यवाणी की। इसके बाद वह भगवती विन्ध्याचल पर्वत पर वापस लौट गईं और विंध्‍याचल देवी के रूप में आज भी उनकी पूजा-आराधना की जाती है।

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