इनके मंदिर में जल रही है त्रेता युग से अखंड ज्योति,जरूर जाने भगवान शिव के ऐसे अवतार

लाइव हिंदी खबर :-यूं तो भारत में कई सिद्ध योगी व ऋषियों का जन्म हुआ है। जिनकी कई प्रकार की कथाएं भी हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि सिद्ध योगी गुरु गोरखनाथ (गोरक्षनाथ) का जन्म किसी स्त्री के गर्भ से नहीं, बल्कि गोबर और गो द्वारा की जाने वाली रक्षा से हुआ था। इसलिए इनका नाम गोरक्ष पड़ा।

गोरक्षनाथ जी ने ही नाथ योग की परंपरा शुरू की और आज हम जितने भी आसन, प्राणायाम, षट्कर्म, मुद्रा, नादानुसंधान या कुण्डलिनी आदि योग साधनाओं की बात करते हैं, सब इन्हीं की देन है।

दरअसल गुरु गोरखनाथ (गोरक्षनाथ) एक सिद्ध योगी के रूप में जाने जाते हैं, इन्होंने ही हठयोग परंपरा का प्रारंभ किया। इनको भगवान शिव का अवतार माना जाता है। गोरखनाथ को गुरु मत्स्येन्द्रनाथ का मानस पुत्र भी कहा जाता है

 

बाबा गोरखनाथ का एक प्रसिद्ध मंदिर उत्तर-प्रदेश में है, और इसी के नाम पर इस जिले का नाम गोरखपुर पड़ा। वहीं 15 फरवरी 1994 गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवैद्य नाथ जी महाराज के द्वारा मांगलिक वैदिक मंत्रोच्चारपूर्वक के साथ योगी आदित्यनाथ का दीक्षाभिषेक हुआ, जो वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी हैं। तब से लेकर अब तक ये ही गोरखनाथ मंदिर के महंत हैं।

हिन्दू धर्म, अध्यात्म व साधना के अंदर अनेक प्रकार के मत व सप्रंदायो में नाथ संप्रदाय एक प्रमुख संप्रदाय है। भारत में स्थित सभी नाथ संप्रदाय के मंदिरों तथा मठों की रखवाली यहीं से की जाती है।

ऐसा माना जाता है कि नाथ संप्रदाय के गुरु सच्चिदानंद शिव के साक्षात स्वरूप श्री गोरक्षनाथ जी प्रत्येक युग में अलग-अलग जगहों पर आविर्भूत हुए। यह स्थान इस प्रकार हैं-

: सतयुग में पेशावर जो कि पंजाब में स्थित है।
: त्रैतायुग में गोरखपुर जो कि उत्तर प्रदेश में स्थित है।
: द्वापर युग में हरमुज जो कि द्वारिका के पास स्थित है।
: कलयुग में गोरखमधी यह सौराष्ट्र में स्थित है।

मान्यता है कि गोरक्षनाथ जी चारों युगों में विद्यमान रहे हैं, और उन्होंने अमर महायोगी सिद्ध महापुरुष के रूप में विश्व में भी कई स्थानों को अपने योग के द्वारा क्रतार्थ किया।

गोरखनाथ मंदिर का निर्माण…
इस मठ का नाम सिद्ध योगी गोरखनाथ जी के नाम पर रखा गया। प्राचीन नाथ संप्रदाय की स्थापना गुरु मत्स्येंद्रनाथ द्वारा की गयी थी। यह मठ एक अत्यंत बड़े परिसर में जहां पर इनके द्वारा तपस्या की जाती थी स्थित है। उन्हें ही समर्पित करते हुए इस मंदिर की स्थापना की गई थी।

गोरखनाथ जी ने अपने तपस्या के तरीके श्री मत्स्येंद्रनाथ जी के द्वारा प्राप्त किए थे। गोरखनाथ जी अपने गुरु के बहुत प्रिय शिष्य थे, जिससे दोनों ने मिलकर हठ योग स्कूलों की स्थापना करवाई गई थी।

 

यह स्कूल योग अभ्यास के लिए बहुत अच्छे माने जाते थे। ऐसी मान्यता है, कि जो भी व्यक्ति गोरखनाथ चालीसा 12 बार जप करता है, वह दिव्य ज्योति या चमत्कारी लौ के साथ धन्य हो जाता है।

मंदिर का इतिहास –
हमारे देश में मुस्लिमों के शासन के प्रारंभिक चरण से ही मंदिर में यौगिक साधना की लहर पूरे एशिया में फैल चुकी थी। विक्रमीय 11 वीं शताब्दी के द्वितीय चरण में गोरखनाथ मंदिर का जीर्णाधन या नवनिर्माण करवाया गया था। इस मंदिर के नवनिर्माण में मंदिर के महंतो ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। विक्रमी 14 वीं सदी में अलाउद्दीन खिलजी के शासन काल में इस मठ को तोड़ा गया था। इस मंदिर के साधक योगीयों को बलपूर्वक निष्कासित कर दिया गया था।

ज्योति और धूना अखण्ड…
इस मठ के नष्ट हो जाने के बाद एक बार फिर इसका निर्माण किया गया और यह फिर से यौगिक संस्कृति का प्रमुख केंद्र बन गया था। 17 वीं शताब्दी में मुगल शासक औंरगजेब ने अपनी धार्मिक कटरता के कारण इसे दो बार तोड़ा गया, किंतु त्रेता युग में गुरु गोरक्षनाथ द्वारा यहां लाई गई एक अखंण्ड ज्योति सुरक्षित बनी रही।

 

स ज्योति और धूना को आज तक अखण्ड माना जाता है। यह अखंण्ड ज्योति हमें अध्यात्मिक व धार्मिक शक्ति प्रदान करती है, जो मंदिर के अंतरवर्ती भाग में स्थित है ।

ऐसा है मंदिर परिसर :
करीब 52 एकड़ में फैला यह विशाल मंदिर अपनी भव्यता के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर का रूप 9 आकार में अनेक परिस्थितियों में समय समय पर बदला जाता रहा है। आज के समय में इस मंदिर की रमणीयता बहुत कीमती आध्यत्मिक संपत्ति है। इस मंदिर में गोरखनाथ जी द्वारा पृज्जवलित अग्नि से प्राप्त अखण्ड धूना भी अत्यधिक प्रसिद्ध है।

मंदिर परिसर में प्रवेश करते ही भीतरी कक्ष की भव्य वेदी पर शिव के अवतार व अमरनाथ योगी श्री गुरु गोरखनाथ जी महाराज की सफेद संगमरमर से बनी भव्य मूर्ति स्थापित है। यह एक दिव्य योगमूर्ति है। इस मूर्ति के कुछ पास में ही उनकी चरण पादुकाओं को भी रखा गया है। इस मंदिर की परिकृमा के समय कई देवाताओं की मूतियों के दर्शन प्राप्त होते है। परिक्रमा में भगवान शिव व गणेश जी की मांगलिक मूर्ति है।

मंदिर में स्थापित मूर्तियां :
इस मंदिर की अलग-अलग देवी-देवता स्थापित है। मंदिर परिसर के पश्चिम कौने में काली मां और उत्तर में कालभैरव और उत्तर पाश्रव में शीतला माता का मंदिर स्थापित है। इस मंदिर के थोडे़ से निकट में भगवान शिव का एक भव्य शिवलिंग का मंदिर है।

मंदिर परिसर के उत्तर वर्ती दिशा में राधा कृष्ण का मंदिर में भी है। इनके अलावा मंदिर में संतोषी माता, श्री राम दरबार, नवग्रह देवता, विष्णु जी, हनुमान मंदिर, भीमसेन मंदिर आदि कई भगवानों के मंदिर स्थापित है। इस मंदिर में एक कुण्ड भी है। जिसे भीम कुण्ड के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा यज्ञशाला और गोशाला आदि भी स्थित हैं।

मंदिर में आरती व दर्शन का समय –
बाबा गोरखनाथ मंदिर सुबह तीन बजे से रात आठ बजे तक खुला रहता है जिसमें प्रतिदिन 3 बार आरती क्रमशः सुबह 3 से 4 बजे ब्रह्म वेला आरती, दोपहर में 11 बजे मध्यान्ह भोग आरती और शाम के 6 से 8 बजे तक सायं काल आरती की जाती है।

आसपास के दर्शनीय स्थल :
मंदिर परिसर के अंदर ही कई दर्शनीय स्थल मौजूद है, जो इस प्रकार हैं :
अखंड ज्योति,अखंड धूना,देव मूर्तियां,मां दुर्गा मंदिर,हनुमान जी का मंदिर,भीम सरोबर, महाबली भीमसेन मंदिर, योगिराज ब्रह्म्नाथ जी, गंभीरनाथ जी, दिग्विज्यनाथ जी और अवेधनाथ जी की मूर्तियां,मठ गोरक्षपीठाधीश्वर का निवास,श्री गोरक्षनाथ संस्कृत विद्यापीठ,गुरु श्रीगोरक्षनाथ चिकित्सालय,गुरु श्रीगोरक्षनाथ आयुर्वेद महाविद्यालय एवं धर्मार्थ।

मंदिर में त्यौहार –
बाबा गोरखनाथ के मंदिर में मकर संक्रांति, होली, गुरु पूर्णिमा, नाग पंचमी, कृष्ण जन्माष्टमी, साप्ताहिक पुण्यतिथि और विजयदशमी का त्यौहार बहुत ही धूमधाम से हर्षो उल्लास के साथ मनाए जाते हैं।

ऐसे पहुंचे यहां…
गोरखनाथ मंदिर में दर्शन के लिए आप गोरखपुर हवाई, रेल और सडक तीनों मार्गों से ही आसानी से आ सकते हैं…

हवाई मार्ग से : हवाई मार्ग द्वारा आने के लिए आप गोरखपुर एयरपोर्ट पर आ कर आसानी से टैक्सी से मंदिर पहुंच सकते हैं।

रेल मार्ग से : गोरखपुर उत्तर पूर्व रेलवे जोन का मुख्यालय है, जिससे यह रेल मार्ग द्वारा देश के बड़े बड़े शहरों से जुडा हुआ है। आप रेल मार्ग द्वारा आसानी से गोरखपुर पहुंच कर टैक्सी से मंदिर पहुंच सकते हैं।

सडक मार्ग से : सड़क मार्ग द्वारा भी आप आसानी से बस, कार के द्वारा गोरखपुर पहुंच सकते हैं।

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