अष्टांग योग रखता है आपका तन-मन स्वस्थ, जाने आप अभी

लाइव हिंदी खबर (हेल्थ कार्नर ) :-  भारत की दो हजार वर्ष पुरानी योग विद्या की विश्व स्तर पर अपनी महत्ता है, यह वजह है कि आज विश्व के 193 देशों ने आधिकारिक रूप से योग को स्वीकारा है। आयुर्वेद शास्त्रों में योग का विस्तृत वर्णन है जिसके अनुसार यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि, ये योग के आठ अंग है जिनका अपना अपना महत्व है।

अष्टांग योग रखता है आपका तन-मन स्वस्थ, जाने आप अभीयम
अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह, ये पांच मनोभाव यम हैं। इनका पालन करने से सद्भाव, भ्रातृत्व भाव, शांति स्थापना, क्रोध, लोभ, मोह, आदि दुर्गुणों से मुक्त रहकर हम सुखमय जीवन की ओर बढ़ते हैं। आज के प्रतिस्पर्धी युग में ईष्र्या, राग, द्वेष, क्रोध, दंभ व अहंकार आदि के कारण मनोरोगों का अनुपात बढ़ रहा है। यम पालना से मनोविकृतियां निश्चित तौर पर दूर रहती हैं।

अष्टांग योग रखता है आपका तन-मन स्वस्थ, जाने आप अभीनियम
शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान, ये 5 नियम हैं। ये नियम भी सदाचरण पर चलने के माध्यम के साथ-साथ आत्म शुद्धि के स्वरूप हैं। सात्विक प्रकृति का प्रादुर्भाव तथा राजसी व तामसी प्रवृत्तियों का नाश होता है।

प्राणायाम
आसन के स्थिर होने पर श्वास-प्रश्वास की गति को रोकना ही प्राणायाम है। मुख्य रूप से तीन क्रियाएं ‘पूरक’ (श्वास लेना), ‘कुंभक’ (श्वास रोकना), ‘रेचक’ (श्वास छोडऩा) क्रमश: 1:4:2 के समान अनुपात में की जाती हैं। शरीर का नाड़ी तंत्र पुष्ट होता है और योगी कह स्मृति भी बढ़ती है।

प्रत्याहार
प्रत्याहार का अर्थ है विषयों से विमुख होना, इन्द्रियों का चित्त के स्वरूप का अनुकरण करना। प्रत्याहार पालना से इंद्रियों के ग्राह्य दोष काम, क्रोध, मद, लोभ, अहंकार आदि से मुक्ति मिलती है, साधना का मार्ग प्रशस्त होता है।

अष्टांग योग रखता है आपका तन-मन स्वस्थ, जाने आप अभीधारणा
चित्त को बाहरी या आंतरिक देश (बिंदु विशेष) यथा ú गोल अक्षर, सूर्य, चंद्रमा में समाहित करना ही धारणा है। अभ्यांतर धारणा मूलाधार, नाभि प्रदेश, हृदय, त्रिकुटी, ब्रह्मरंध्र आदि स्थानों पर चित्र को कल्पना में ठहरा कर की जाती है। इससे मन की एकाग्रता बढऩे के साथ शांति और सुकून मिलता है।

ध्यान
निरंतर धारणा में मन को लगाना ध्यान कहलाता है। इससे मन की शांति और अलौकिक अनुभूति की प्राप्ति होती है। ध्यान तीन प्रकार से किया जाता है। स्थूल ध्यान-किसी वस्तु, मूर्ति आदि पर ध्यान करना, ज्योतिर्मय ध्यान- दीप्तिमान वस्तु का ध्यान करना तथा सूक्ष्म ध्यान- निराकार ब्रह्म का ध्यान करना। स्थूल ध्यान व ज्योतिर्मय ध्यान भौतिक वस्तु या दीप्यमान निकाय पर सतत दृष्टिबद्ध कर किया जाता है। सूक्ष्म ज्ञान में निराकार ब्रह्म की कल्पना कर आंख बंद कर ध्यान किया जाता है।

समाधि
समाधि ध्यान की वह अवस्था है, जिसमें ध्यान का स्वरूप शून्य जैसा हो जाता है। यह अध्यात्म की परम अवस्था है। इसमें दिव्य ज्ञान की प्राप्ति होती है, जीव आत्मा का परमात्मा से एकीकरण रूप है। यह योग का शास्त्रोक्त विवेचन है।

 

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top