फूलों की नहीं बल्कि चप्पलों की माला चढ़ाते हैं भक्त, होती है हर मुराद पूरी

फूलों की नहीं बल्कि ‘चप्पलों की माला’ चढ़ाते हैं भक्त, होती है हर मुराद पूरी,जाने वजहलाइव हिंदी खबर :- किसी मंदिर में प्रवेश करने से पहले आपको चप्पल और जूते निकालने पड़ते हैं। इतना ही नहीं कई ऐसे भी मंदिर हैं जहां आप ‘चमड़े का बेल्ट’ पहनकर मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकते हैं। मान्यता है कि अगर गलती से आप मंदिर में चप्पल पहनकर प्रवेश कर दिए तो ऐसा करने से भगवान नाराज होते हैं और दंड देते हैं। खैर अगर आप भी मंदिर जाते होंगे तो देखा होगा कि अमूमन भक्त मंदिरों में चादर, चुनरी, या फल, मिठाईयां चढ़ाते हैं लेकिन कर्नाटक में एक ऐसा मंदिर है जहां माता के मंदिर में न तो चुनरी चढ़ती है और न ही की माला। इस मंदिर में श्रद्धालु मनोकामना पूर्ती  के लिए ‘चप्पल’ चढ़ाते हैं।

मंदिर के बारे

इसमें कोई शक नहीं है कि यह देश का अनोखा मंदिर है। मंदिर कर्नाटक के गुलबर्ग जिले के गोला गांव में स्थित है जो लकम्मा देवी मंदिर को समर्पित है। इस मंदिर में भक्त देवी मां को खुश करने के लिए चप्पलों की माला चढ़ाते हैं। मंदिर के प्रांगण में एक नीम का पेड़ है जहां लोग चप्पल बांधते है।
माना जाता है कि नीम के इस पेड़ पर चप्पल बांधने से लोगों की सारी मुराद पूरी होती है। मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ यहां की आस्था का प्रतीक है। आए दिन मंदिर में भक्तों की भीड़ देखी जा सकती है।

क्यों चढ़ाते हैं ‘चप्पल की माला’

माना जाता है कि इस मंदिर में चप्पल चढ़ाने से पैर और घुटनों के दर्द हमेशा के लिए दूर हो जाते हैं। इस मंदिर में हिन्दू ही नहीं बल्कि मुसलमान भी आते हैं। मान्यता है कि इस मंदिर में माता भक्तों की चढ़ाई चप्पलों को पहनकर रात में घूमती हैं और उनकी रक्षा करती हैं। हालांकि यह कहानी कितने सच है यह कोई नहीं जानता है। लेकिन फिर भी यह परंपरा स्थानीय लोगों में काफी प्रचलित है।

फुवियर फेस्टिवल

हर दिवाली के बाद पंचमी के दिन मंदिर में खास मेले का आयोजन होता है। इस दिन मंदिर में फुटवियर फेस्टिवल का आयोजन किया जाता है। जिसमें देशभर से हजारों लोग पहुंचते हैं और माता के दर्शन करने के साथ ही पेड़ पर चप्पलों को भी बांधा जाता है।

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