लाइव हिंदी खबर :- इस पक्ष में लोग अपने पितृ दोषों को दूर करने के लिए श्राद्ध करते हैं। इस श्राद्ध में कई तरह से पूजा-पाठ किया जाता है। कई तरीके का दान किया जाता है साथ ही कौवों को खाना भी खिलाया जाता है। मगर क्या आपने कभी सोचा है कि सिर्फ कौवों को ही खाना क्यों खिलाया जाता है। आज हम आपको पितृपक्ष के इसी कर्म के बारे में बताने जा रहे हैं। आप भी जानिए कि पितृपक्ष में क्यों सिर्फ कौवों को ही करवाया जाता है भोजन।
शास्त्रों से जुड़ा है कराण
पितृपक्ष में कौवों को खाना खिलाने की प्रथा हमारे प्राचीन शास्त्रों से जुड़ी हुई है। कथा के अनुसार एक बार मरूता नाम के राजा यज्ञ कर रहे थे। उस यज्ञ में देवता भी शामिल हुए। इसी बीच वहां रवाना(कौवे जैसा दिखने वाला पक्षी) भी आ गया। जिसे देवताओं का दुश्मन भी कहा जाता है। इसके बाद यज्ञ में शामिल देवताओं में से इंद्र ने मोर, कुबेर ने गिरगिट और यम नें मोर बनकर उसे वहां से भगाया। उसे भगाने के बाद सभी देवताओं नें वापिस अपना रूप धारण कर लिया। इसके बाद अपनी जान बचाने के लिए यम ने कौवे को वरदान दिया कि तुम्हें दिया गया भोजन पूर्वजों की आत्मा को शांति देगा। बस तब से ये प्रथा चली आ रही है।
रामायण से भी जुड़ा है इस प्रथा का राज
एक दूसरी कथा की बात करें तो उसके अनुसार इंद्र के पुत्र जयंत ने कौवे का रूप धारण करके माता सीता को घायल कर दिया था। इसके बाद भगवान राम ने तीर चलाकर जयंत की एक आंख को फोड़ दिया था। जब जयंत ने माफी मांगी तो उन्हें माफी के साथ वरदान मिला जिसके तहत कौवे को खिलाया भोजन पितरों की आत्मा को शांति देता है।
भगवान का दूत और दुनिया का निर्माण करने वाला
कौवे के विषय में कई अन्य कहानियां भी हमें अपने शास्त्रों में सुनने को मिलती है। इसके सम्बन्ध में सबसे रोचक चीज जो है वो है इनकी आवाज। कौवे की आवाज में खा शब्द आता जिसका संस्कृत में अर्थ होता है- सूर्य, वायु, स्वर्ग, आसमान, पृथ्वी और खुशी। सिर्फ हिन्दी शास्त्रों में ही नहीं कई अन्य सभ्यताओं में भी कौवे को जिक्र होता है। ग्रीक माइथोलॉजी की बात करें तो इसमें रैवन(एक प्रकार का कौवा) को गुड लक का सिम्बल माना जाता है। इसे भगवान का दूत भी माना जाता है।