लाइव हिंदी खबर :-इस्लाम में माना गया है कि अल्लाह की इबादत से ही उनका रहम हासिल होता है। इबादत करने वाले पर उनका नूर बरसता है। लेकिन एक सूफी संत से जुड़ी यह कहानी इस बात को भी बदलती हुई नजर आती है। कहानी के अनुसार केवल इबादत से ही नहीं, एक अन्य कारण से भी अल्लाह अपने बच्चे को बख्श देते हैं।
इस्लाम में दसवीं-ग्याहरवीं शताब्दी के आसपास हजरत अबुल हसन खिरकानी नाम के एक सूफी संत हुआ करते थे। खिरकानी साहब के एक छोटे भाई भी थे। दोनों भाइयों के जीवन का मकसद केवल अल्लाह की इबादत करना ही था। लेकिन भाईयों पर अपनी मां जो कि बीमार थीं, उनकी सेवा की भी जिम्मेदारी थी। इसलिए उन्होंने फैसला किया कि मां की सेवा और इबादत को बांट-बांटकर करेंगे। एक रात खिरकानी साहब इबादत करेंगे और छोटा भाई मां की सेवा तो दूसरी रात खिरकानी साहब मां की सेवा में रात बिताएंगे और छोटा भाई अल्लाह के चरणों में।
इसी तरह से कुछ समय बीत गया और एक रात अचानक जब छोटे भाई की मां की सेवा करने की जिम्मेदारी थी तो उसका अल्लाह की इबादत में बैठने का बहुत मन हुआ। उसने खिरकानी साहब से कहा कि आज रात आप मां की सेवा कर लें और मैं अल्लाह के चरणों में रात बिताना चाहता हूं। यह जान खिरकानी साहब छोटे भाई की बात मान गए।
छोटे भाई ने इबादत करना शुरू कर दिया। उधर खिरकानी साहब अपनी मां की सेवा में रात बिताने लगे। कुछ देर बाद छोटे भाई को एक दिव्य वाणी सुनाई दी, ‘हमने तुम्हारे भाई को बख्शा है, यानी हम उसे मौत के बाद मोक्ष देते हैं और उसके तुफैल में तुम्हें भी बख्श देते है। यह सुन छोटे भाई को बहुत हैरानी हुई और उसने कहा कि मोक्ष मुझे मिलना चाहिए था और मेरे तुफैल में खिरकानी साहब को बख्शा जाना चाहिए था। आगे से जवाब आया कि तुम हमारी इबादत में थे जिसके आज रात हमें जरूरत नहीं थी लेकिन तुम्हारी मां को सेवा की जरूरत थी और उसकी सेवा में तुम्हारा भाई थी। यहे असली इबादत है। उस रात खिरकानी साहब के भाई को यह समझ आया कि केवल अल्लाह की इबादत ही सब कुछ नहीं है, मां की सेवा में भी अल्लाह की इबादत जितने ही ताकत होती है।