लाइव हिंदी खबर :-त्रेता युग के महान मुनि और योद्धाओं में से एक परशुराम, जिन्हें भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। भगवान विष्णु के कई अवतार है लेकिन परशुराम इनके छठें अवतार के रूप में जाना जाता है। ग्रंथों के मुताबिक मुनि परशुराम का जन्म माता रेणुका के गर्भ से हुआ था जो जगदग्नि ऋषि की पत्नि थी। शस्त्रविद्या में कुशल परशुराम भीष्म, कर्ण व द्रोण के गुरू माने जाते है। इन्होंने ही इन्हें शस्त्र चलाने की शिक्षा दी थी। अक्सर आपने परशुराम के बारे में सुना होगा या देखा होगा कि उनके हाथों में एक फरसा रहता था जैसे भगवान विष्णु के ऊंगली में सुदर्शन चक्र था। मान्यताओं के मुताबिक भगवान शिव ने यह फरसा प्रदान किया था। तभी से उनका नाम परशुराम पड़ा। आज हम भगवान परशुराम के फरसे की बात व इसके पीछे किंवदंती के बारे में जानेगें।
यहां गढ़ा है फरसा
कहा जाता है कि भगवान परशुराम का फरसा आज भी धरती के एक कोने पर गढ़ा हुआ है। झारखंड के रांची शहर से लगभग 166 किमी की दूरी पर स्थित टांगीनाथ धाम की धरती में परशुरमा का फरसा गढ़ा हुआ है। इसके पीछे एक किंवदंती प्रचलित है। माना जाता है कि इस जगह से परशुराम बेहद ही गहरा रिश्ता था। टांगीनाथ धाम का नाम भी इन्हीं के फरसे पर रखा गया है। क्योंकि यहां स्थानीय भाषा में फरसा को टांगी कहते हैं। आज भी यहां इनके पद चिन्हों को देखा जा सकता है। जिसे देखने के लिए लोग दूर-दराज से आते हैं। इसके पीछे एक किंवदंती प्रचलित है।
ये है किंवदंती
परशुराम का वर्णन हिंदू धर्म के कई ग्रंथों में किया गया है। माना जाता है कि जब सीता का स्वयंवर हो रहा था तो भगवान राम ने शिवजी का धनुष तोड़ा था। उस वक्त परशुराम काफी क्रोधित हुए। राम पर अपना क्रोध बरसा दिया, लेकिन जब उन्हें पता चला कि ये भगवान विष्णु के अवतार हैं तो काफी शर्मिदा हुए। इसका पश्चताप करने के लिए उन्होंने अपना फरसा गाढ़ जंगल में तपस्या करने चले गए।
फरसे का रहस्य
कहा जाता है कि भगवान परशुराम के फरसे में कभी जंग नहीं लगती है। खुले में रहने के बावजूद यह फरसा आज भी अपनी प्रारंभिक अवस्था में है। इसके अलावा यह फरसा कितनी गहराई में गढ़ा है, इसका पता भी आज तक कोई नहीं लगा पाया। इसके जुड़ी एक कहानी प्रचलित है कि कभी यहां के किसी लाहोर ने भगवान परशुराम के फरसे को काटने की कोशिश की थी , लेकिन वो काट नहीं पाया। लेकिन उसके इस काम का यह नतीजा हुआ कि उसके परिवार के सदस्य एक-एक कर मरने लगे। जिसके बाद वो गांव छोड़ भाग गया। इसलिए कोई भी जानकार इस फरसे को काटने की हिमाकत नहीं करता है।
भगवान शिवजी से संबंध टांगीनाथ धाम को भगवान शिवजी से भी जोड़कर देखा जाता है। बहुत से लोगों का मानना है कि यह गढ़ा हुआ फरसा भगवान शिवजी का त्रिशुल है। उनके अनुसार जब शिवजी, शनि पर क्रोधित हो गए थे तो उन्होंने अपने त्रिशूल से शनि पर प्रहार किया था। शनि किसी तरह खुद को बचाने में कामयाब रहे पर त्रिशूल किसी पर्वत में जाकर गढ़ गया। और वो त्रिशुल आज भी इसी जगह गढ़ा है। फरसे की ऊपरी आकृति कुछ त्रिशूल से मिलती है, इसलिए इसे भगवान शिवजी का त्रिशूल भी माना जाता है। हालांकि यह किवदंती मात्र ही है।