लाइव हिंदी खबर :- वैसे तो आपने भारत देश में कई बड़ी मंदिरों के बारे में सुना और उनके दर्शन किए होंगे मगर कुछ लोगों को ही ये पता होगा कि भारत से बाहर भी कई बड़े हिंदू मंदिर बने हैं। सबसे खास बात ये है कि दुनिया का सबसे बड़ा हिन्दू मंदिर भी भारत में नहीं बल्कि विदेश में बना है। अंकोरवाट में बनें इसी मंदिर के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं। आप भी जानिए इस मंदिर से जुड़ी कुछ खास और रोचक बातें।
भगवान विष्णु को समर्पित है मंदिर
कम्बोडिया के अंकोरवाट में एक विशालकाय हिन्दू मंदिर है जो भगवान विष्णु को समर्पित है। इसे पहले अंकोरयोम और उससे पहले यशोधपुर कहा जाता था। प्राचीन लेखों में कम्बोडिया को कम्बुज कहा गया है। अंकोरवाट मंदिर का निर्माण कम्बुज के राजा सूर्यवर्मा द्वितीय (1049-66 ई.) में कराया था। अंकोरवाट, जय वर्मा द्वितीय के शासनकाल (1181-1205 ई.) में कम्बोडिया की राजधानी था।
भूतल से 213 फिट है ऊंचा
इस मंदिर को सबसे बड़ी मंदिर होने का दर्जा भी मिला है। यह हिन्दुओं का सबसे विशाल मंदिर है, जिसका वास्तु देखते ही बनता है। मंदिर के मध्यवर्ती शिखर की ऊंचाई भूमितल से 213 फुट है। इस मंदिर के बाद जगन्नाथ मंदिर को सबसे ऊंचा मंदिर माना जाता है। यह अपने समय में संसार के महान नगरों में भी गिना जाता है।
हर खंड में पहुंचने के लिए बनी हैं सीढियां
एक ऊंचे चबूतरे पर स्थित इस मंदिर के तीन खण्ड हैं। प्रत्येक खण्ड से ऊपर के खण्ड तक पहुंचने के लिए सीढ़ियां हैं। प्रत्येक खण्ड में आठ गुम्बज हैं, जिनमें से प्रत्येक 180 फुट ऊंचा है। मुख्य मन्दिर तीसरे खण्ड की चौड़ी छत पर है। उसका शिखर 213 फुट ऊंचा है। दुनिया का सबसे विशालकाय मंदिर यही है जिसकी भव्यता देखते ही बनती है। मन्दिर के चारों ओर पत्थर की दीवार का घेरा है जो पूर्व से पश्चिम की ओर दो-तिहाई मील और उत्तर से दक्षिण की ओर आधे मील लम्बा है। इस दीवार के बाद 700 फुट चौड़ी खाई है, जिस पर एक स्थान पर 36 फुट चौड़ा पुल है। इस पुल से पक्की सड़क मंदिर के पहले खण्ड द्वार तक चली गई है।
यूनेस्को से मिला है विश्व धरोहर का दर्जा
यूनेस्को द्वारा इस मंदिर को विश्व धरोहर का दर्जा दिया गया है। यह राजधानी नोम पेन्ह से करीब 206 किमी की दूरी पर स्थित है। इसे दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक स्मारक भी कहा जाता है। इस मंदिर को मूल रूप से खमेर साम्राज्य के लिए भगवान विष्णु के एक हिंदू मंदिर के रूप में बनाया गया था। लेकिन यह धीरे-धीरे 12वीं शाताब्दी के अंत में बौद्ध मंदिर के रूप मे परिवर्तित हो गया।
ध्वज में भी दी गई है जगह
इसे 1983 के बाद से कंबोडिया के राष्ट्रध्वज में भी स्थान दिया गया है। यह मंदिर मेरु पर्वत का एक प्रतीक भी माना जाता है। इसके आसपास स्थित अन्य मंदिर भी सुंदरता के प्रतीक हैं। इस प्राचीन मंदिर को दूर-दूर से लोग देखने आते हैं। यहां लोग केवल वास्तुशास्त्र का आनंद लेने नहीं आते बल्कि यहां का सूर्योदय और सूर्यास्त देखने भी आते हैं।