लाइव हिंदी खबर :-मां कुष्मांडा की पौराणिक कथा:
नवदुर्गा के चौथे स्वरूप मां कुष्मांडा की पूजा ना केवल नवरात्रि में बल्कि वर्ष भर की जाती है। देवी की अराधना से भक्तों को अनेकों लाभ होते हैं। पुराणों में वर्णित जानकारी के अनुसार देवी की आठ भुजाएं हैं, इसलिए इन्हें ‘अष्टभुजा देवी’ भी कहा जाता है। इनके साथ हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल, कलश, चक्र, गदा आदि हैं। देवी का वाहन सिंह है और कहा जाता है कि इन्हें कुम्हड़े की बलि प्रिय है। इसलिए इनका नाम ‘कूष्मांडा’ पड़ा।
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार देवी कूष्मांडा ने ही ब्रह्माण्ड की रचना की है। ऐसा कहा जाता है कि जब सृष्टि का कोई अस्तित्व भी नहीं था, तब इन्हीं देवी ने इस दुनिया को आकार दिया। मां कूष्मांडा सूर्य मण्डल में निवास करती हैं। माना जाता है कि सूर्य मण्डल की शक्ति और तेज को सहन करने की क्षमता केवल देवी कूष्मांडा में ही है।
नवरात्रि के चौथे दिन देवी कूष्मांडा का इस मंत्र से ध्यान करें
स्तुता सुरैः पूर्वमभीष्टसंश्रयात्तथा सुरेन्द्रेण दिनेषु सेविता।
करोतु सा नः शुभहेतुरीश्वरी शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापदः।।
मां कूष्मांडा व्रत लाभ:
नवदुर्गा के चौथे स्वरूप देवी कूष्मांडा के नाम का व्रत करने से भक्तों के समस्त रोग-शोक मिट जाते हैं। देवी अपने भक्त से प्रसन्न होकर उसे लंबी और निरोगी आयु, बल, सुख और चेहरे के तेज क बढ़ाती है। सच्चे मन से देवी की अराधना करने वाले भक्त को समाज में उच्च पद की प्राप्ति होती है।