मस्जिद के अलावा कहां पढ़ सकते हैं नमाज, जुमे की नमाज क्यों है होती है जरूरी ?

मस्जिद के अलावा कहां पढ़ सकते हैं नमाज, जुमे की नमाज क्यों है होती है जरूरी ?

लाइव हिंदी खबर :-हरियाणा के गुरुग्राम में पिछले कुछ दिनों से खुले में नमाज को लेकर विवाद चल रहा है। हिंदूवादी संगठनों ने मुस्लिमों द्वारा खुले में नमाज पढ़ने को लेकर ऐतराज जताया था। उन्होनें यह शंका जाहिर की थी नमाज पढ़ने के बहाने मुस्लिम समुदाय के लोग सरकारी संपत्ति को कब्जाना चाहते हैं। इसके बाद राज्य के मुख्यमंत्री एमएल खट्टर ने सार्वजनिक स्थानों पर नमाज पढ़ने को लेकर हिंदूवादी संगठनों के ऐतराज को अप्रत्यक्ष रूप से सही ठहराया था। उन्होंने साफ कर दिया था कि नमाज मस्जिद, ईदगाह या सार्वजनिक स्थानों पर ही अदा की जानी चाहिए। अब इस मामले में राज्य के कैबिनेट मंत्री अनिल विज भी कूद पड़े हैं और उन्होंने हिंदू संघर्ष समिति के बयान का स्वागत किया है। उन्होंने साफ कहा है कि अगर किसी को खुले में नमाज पढ़नी पड़े, तो इसकी आजादी है लेकिन नमाज के बहाने किसी को सरकारी जमीन कब्जाने की इजाजत कतई नहीं दी जा सकती है।

नमाज क्यों जरूरी है?

कुरान शरीफ में नमाज शब्द बार-बार आया है और प्रत्येक मुसलमान स्त्री और पुरुष को नमाज पढ़ने का आदेश दिया गया है। इस्लाम में पांच बुनियादी अरकान (स्तंभ) बताए गए हैं। कलिमा-ए-तयैबा, नमाज, रोजा, जकाम और हज। इस्लाम के आरंभकाल से ही नमाज की प्रथा और उसे पढ़ने का आदेश है। यह मुसलमानों का बहुत बड़ा कर्तव्य है और इसे नियमपूर्वक पढ़ना पुण्य तथा त्याग देना पाप है। एक दिन में पांच बार नमाज अदा की जाती है और हर मुस्लिम को हर हाल में नमाज पढ़ना जरूरी है। नमाज़ पढ़ने के लिए व्यक्ति का पाक-साफ होना ज़रूरी है। साथ ही जिस जगह पर वह नमाज़ पढ़े वो भी पाक हो।

मस्जिद के अलावा नमाज कहां पढ़ी जा सकती है

दिल्ली स्थित फतेहपुरी मस्जिद के शाही इमाम मुफ्ती मोहम्मद मुकर्रम अहमद के अनुसार, मुस्लिम समुदाय का कोई भी व्यक्ति कहीं भी नमाज अदा कर सकता है। शर्त यह है कि वो जगह पाक-साफ होनी चाहिए। अगर किसी जमीन पर कोई विवाद चल रहा है तो उस पर नमाज नहीं पढ़ी जा सकती है। यह नियम सरकारी जमीन पर भी लागू होता है। यानी ऐसी कोई सरकारी जमीन जिस पर विवाद चल रहा है या अवैध कब्ज़ा है, तो वहां नमाज नहीं पढ़ी जा सकती। इसके अलावा अगर किसी मालिक ने अपनी जमीन पर नमाज पढ़ने से मना कर दिया है, तो वहां नामज़ अदा नहीं की जा सकती। हालांकि ऐसी सरकारी जमीन, जहां पहले से जहां पहले से नमाज पढ़ी जाती है या जिसे लेकर कोई विवाद ना हो, वहां नमाज पढ़ी जा सकती है।

जुमे का नमाज का महत्व

अहमद के अनुसार, इस्लाम धर्म में जुम्मे यानी शुक्रवार का दिन बेहद खास होता है। इस दिन नमाज पढ़ना जरूरी माना जाता है। शुक्रवार के दिन मस्जिद, पार्क या सड़क पर भी नमाज पढ़ते लोग दिख जाएंगे। जुमे के दिन सभी मुसलमानों को एकत्रित होकर अल्लाह का नाम लेना होता है। दरअसल, इस दिन लोग एकत्रित होकर एक-दूसरे के साथ अपना सुख-दुख बांटते हैं और अपनी परेशानियों का बोझ थोड़ा कम करते हैं। इसलिए कहा जाता है कि अल्लाह की इबादत के साथ ही शुक्रवार का दिन भाईचारे को भी समर्पित है। जुमे के दिन को अल्लाह के दरबार में रहम का दिन माना जाता है। इस दिन नमाज पढ़ने वाले इंसान की पूरे हफ्ते की गलतियों को अल्लाह माफ कर देते हैं और उसे आने वाले दिनों में एक अच्छा जीवन जीने का संदेश देते हैं। इसे अकेले नहीं पढ़ा जा सकता है। इस नमाज के दौरान ख़ुतबा (धार्मिक उपदेश) भी होता है।

जुमे के दिन मस्जिदों में भीड़ क्यों होती है?

अहमद के अनुसार, कोई जुमे की नमाज़ नहीं पढ़ पाता है तो उसको ज़ोहर की नमाज पढ़ना ज़रूरी है क्योंकि इस्लाम में नमाज छोड़ी नहीं जा सकती है। जुमे के दिन की अहमियत काफ़ी होती है, इस वजह से लोग नमाज पढ़ने आते हैं और भीड़ मस्जिद से बढ़कर सड़क तक आ जाती है और यह थोड़े समय के लिए ही होता है।

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