लाइव हिंदी खबर :- जिले के जिला परिषद सभागार में सोमवार को मंत्री जोराराम कुमावत ने गौशाला संचालकों के साथ विस्तृत बैठक की। इस बैठक का उद्देश्य गौशालाओं के संचालन से जुड़ी चुनौतियों को समझना और उनके समाधान के लिए ठोस कदम उठाना था। बैठक में जिला प्रशासन के अधिकारी, पशुपालन विभाग के प्रतिनिधि और बड़ी संख्या में गौशाला संचालक उपस्थित रहे।

गौशालाओं की वर्तमान स्थिति पर चर्चा
बैठक की शुरुआत में जिला प्रशासन के अधिकारियों ने बीकानेर जिले की गौशालाओं की स्थिति पर संक्षिप्त प्रस्तुति दी। इसमें बताया गया कि जिले में बड़ी और छोटी मिलाकर कई सौ गौशालाएं संचालित हो रही हैं, जिनमें हजारों गौवंश पल रहे हैं। गौशाला संचालकों ने यह भी बताया कि लगातार बढ़ रही महंगाई, चारे-पानी की कमी और संसाधनों की दिक्कतों के कारण संचालन में कठिनाइयाँ आ रही हैं।
मंत्री कुमावत ने इन बिंदुओं को गंभीरता से सुना और कहा कि राज्य सरकार का लक्ष्य गौवंश की रक्षा करना और गौशालाओं को आर्थिक रूप से मजबूत बनाना है। उन्होंने कहा कि गौशाला केवल परंपरा या धार्मिक आस्था का प्रतीक नहीं है, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था और पर्यावरण संरक्षण से भी गहराई से जुड़ी हुई है।
मंत्री की अपील और आश्वासन
जोराराम कुमावत ने गौशाला संचालकों से संवाद करते हुए कहा कि राज्य सरकार हर संभव सहायता प्रदान करेगी। उन्होंने कहा कि सरकार ने गौशालाओं को नियमित अनुदान उपलब्ध कराने के लिए विशेष बजट का प्रावधान किया है और इसका लाभ जल्द ही सभी पंजीकृत गौशालाओं तक पहुंचेगा।
उन्होंने यह भी कहा कि सरकार आधुनिक तकनीक के इस्तेमाल को बढ़ावा देगी, ताकि चारा उत्पादन और गौशालाओं के रख-रखाव में आसानी हो। मंत्री ने अधिकारियों को निर्देश दिए कि वे समय-समय पर गौशालाओं का निरीक्षण करें और जो भी समस्याएँ सामने आएं, उन्हें तत्काल हल करें।
गौशाला संचालकों की मांगें
बैठक में उपस्थित गौशाला संचालकों ने मंत्री के समक्ष कई मांगें रखीं। उन्होंने कहा कि वर्तमान में मिलने वाला अनुदान गौवंश की बढ़ती संख्या के अनुपात में अपर्याप्त है। इसके अलावा, पानी की कमी और पशु चिकित्सा सेवाओं की सीमित उपलब्धता भी एक बड़ी समस्या है।
कुछ गौशाला संचालकों ने सुझाव दिया कि सरकार को सामुदायिक चारा भंडार और जल संरक्षण योजनाओं पर जोर देना चाहिए। साथ ही, पशु चिकित्सकों की नियमित तैनाती और मोबाइल वेटरनरी यूनिट की व्यवस्था भी की जानी चाहिए, ताकि बीमार और घायल गौवंश को तुरंत इलाज मिल सके।
गौशालाओं को आत्मनिर्भर बनाने पर जोर
मंत्री कुमावत ने कहा कि गौशालाओं को केवल सरकारी अनुदान पर निर्भर नहीं रहना चाहिए, बल्कि आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया कि गौशालाएं गोबर और गौमूत्र से जैविक खाद, वर्मी कम्पोस्ट और पंचगव्य जैसे उत्पाद तैयार कर सकती हैं। इससे गौशालाओं की आय में बढ़ोतरी होगी और किसानों को भी सस्ते व प्राकृतिक उत्पाद उपलब्ध होंगे।
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि कई जगहों पर गौशालाओं ने गोबर गैस संयंत्र और जैविक खाद उत्पादन इकाइयाँ स्थापित कर आर्थिक आत्मनिर्भरता हासिल की है। बीकानेर की गौशालाएं भी इस दिशा में प्रयास कर सकती हैं और सरकार इसके लिए तकनीकी सहयोग उपलब्ध कराएगी।
पशु कल्याण और पर्यावरण संरक्षण से जुड़ाव
बैठक में इस बात पर भी जोर दिया गया कि गौशालाओं का महत्व केवल पशु कल्याण तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पर्यावरण संरक्षण से भी जुड़ा है। गौवंश से उत्पन्न अपशिष्ट का सही उपयोग करने पर प्रदूषण कम किया जा सकता है और ऊर्जा उत्पादन में मदद मिल सकती है।
मंत्री कुमावत ने कहा कि आज जब पूरी दुनिया पर्यावरण संकट से जूझ रही है, तब गौशालाएं टिकाऊ जीवनशैली और हरित अर्थव्यवस्था का प्रतीक बन सकती हैं। उन्होंने संचालकों से आग्रह किया कि वे अपने अनुभवों को साझा करें और मिलकर एक मॉडल तैयार करें, जिसे पूरे राज्य में लागू किया जा सके।
अधिकारियों को दिए गए निर्देश
बैठक के अंत में मंत्री ने जिला प्रशासन और पशुपालन विभाग के अधिकारियों को सख्त निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि हर गौशाला का नियमित सर्वेक्षण हो और यह सुनिश्चित किया जाए कि अनुदान का सही उपयोग हो रहा है।
साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि बारिश के मौसम में गौशालाओं में जलभराव और बीमारियों की रोकथाम पर विशेष ध्यान दिया जाए। इसके लिए आवश्यक दवाइयों और टीकाकरण की व्यवस्था पहले से सुनिश्चित की जाए।
सामाजिक सहयोग पर बल
मंत्री कुमावत ने यह भी कहा कि गौशालाओं को चलाने के लिए केवल सरकार पर निर्भर रहना पर्याप्त नहीं है। समाज को भी इसमें अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी। उन्होंने व्यापारियों, उद्योगपतियों और आम नागरिकों से अपील की कि वे गौशालाओं के लिए दान और सहयोग आगे बढ़कर करें।
उन्होंने कहा कि राजस्थान की संस्कृति और परंपरा में गौवंश का विशेष महत्व है। यदि समाज और सरकार मिलकर काम करें तो गौशालाओं की स्थिति को काफी हद तक बेहतर बनाया जा सकता है।
निष्कर्ष
बीकानेर के जिला परिषद सभागार में आयोजित यह बैठक न केवल समस्याओं को सुनने का मंच बनी, बल्कि समाधान की दिशा में ठोस कदम उठाने की शुरुआत भी साबित हुई। मंत्री जोराराम कुमावत के आश्वासनों और संचालकों की मांगों से यह स्पष्ट हो गया कि आने वाले समय में गौशालाओं की स्थिति सुधारने के लिए सरकार और समाज दोनों को मिलकर प्रयास करने होंगे।
यह बैठक इस दृष्टि से भी महत्वपूर्ण रही कि इसमें गौशालाओं को आत्मनिर्भर बनाने और पर्यावरण संरक्षण से जोड़ने की दिशा में नए विचार सामने आए। उम्मीद है कि इन सुझावों को अमल में लाकर बीकानेर ही नहीं, बल्कि पूरे राजस्थान की गौशालाएं एक सशक्त और आत्मनिर्भर मॉडल बन सकेंगी।