लाइव हिंदी खबर :-सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक अहम फैसले में दहेज प्रताड़ना के आरोप में दोषी ठहराई गई सास को बरी कर दिया। अदालत ने कहा कि दहेज से जुड़ी बातें अक्सर हवा से भी तेज फैल जाती हैं, लेकिन केवल आरोपों के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एनवी अंजारिया की बेंच ने कहा कि पड़ोसी गवाह ने साफ-साफ बयान दिया था कि महिला ने कभी बहू या उसके परिवार से दहेज की मांग नहीं की। इसके बावजूद निचली अदालतों ने उस गवाही को नजरअंदाज कर सजा सुनाई।
मामला क्या था?
यह मामला उत्तराखंड का है। वर्ष 2001 में शादी के कुछ समय बाद गर्भवती महिला ने आत्महत्या कर ली थी। पिता ने आरोप लगाया कि बेटी को दहेज के लिए प्रताड़ित किया जाता था और सास ताने मारती थी। ट्रायल कोर्ट ने जांच के बाद सास को तीन साल की सजा सुनाई, जबकि ससुर और देवर को बरी कर दिया गया। बाद में हाईकोर्ट ने भी यही फैसला बरकरार रखा।
सुप्रीम कोर्ट का तर्क
शीर्ष अदालत ने कहा कि दहेज की मांग निश्चित रूप से धारा 498-ए (क्रूरता) के तहत अपराध है, लेकिन इस मामले में ऐसे ठोस सबूत नहीं मिले। इसलिए हाईकोर्ट का फैसला रद्द करते हुए सास को बरी किया जाता है।