लाइव हिंदी खबर :- साल 2015 में आई संजय लीला भंसाली की फिल्म बाजीराव मस्तानी मराठा साम्राज्य के पेशवा बाजीराव और उनकी दूसरी पत्नी मस्तानी पर आधारित थी। बाजीराव ने 1746 ई. में एक महल का निर्माण करवाया जो शनिवार वाड़ा के नाम से जाना जाता है। मराठा साम्राज्य को बुलंदियों पर ले जाने वाले बाजीराव द्वारा बनाया गया यह महल आज भी महाराष्ट्र के पुणे में मौजूद है।
इस महल की नींव शनिवार के दिन 10 जनवरी 1730 में बाजीराव प्रथम ने रखी थी। उस जमाने में शनिवार वाड़ा को बनाने में 16 हजार एक सौ 10 रुपए की लागत आई थी। शनिवार वाड़ा इस हद तक बड़ा था कि उसमें एक बार में एक हजार से ज्यादा लोग एक साथ रह सकते थे।
शनिवार वाड़ा में कुल 5 दरवाजे हैं। पहले गेट को दिल्ली दरवाजा, दूसरे को मस्तानी दरवाजा, तीसरे को खिड़की दरवाजा, चौथे को नारायण दरवाजा और पांचवे को गणेश दरवाजा के नाम से जाना जाता है।
1818 तक यह पेशावाओं के अधिकार में रहा। 1828 ई. में शनिवार वाड़ा में एकदिन अचानक आग लगी। हालांकि यह आग कैसे लगी यह आज भी किसी को नहीं पता। इस आग से महल का एक बड़ा हिस्सा जलकर खाक हो गया। तब से अब तक इस जगह को शपित माना जाता है।
लोगों का कहना है कि यहां आज भी आत्माएं भटकती रहती हैं। स्थानीय लोगों का तो यहां तक कहना है कि अमावस की रात इस महल से एक दर्द भरी आवाज आती है। लोगों को लगता है जैसे कोई बचाओ-बचाओ पुकार रहा है। स्थानीय निवासी कहते हैं कि यह आत्मा उसी राजकुमार की है जिसकी हत्या इस महल में करवाई गई थी। दरअसल 18 वर्षीय नारायण राव की हत्या इस महल में कर दी गई थी और ऐसा सिर्फ और सिर्फ सत्ता के लालच में किया गया था।
उस दौरान राजकुमार नारायण राव को पेशवाओं के राजकुमार के रूप में निर्वाचित किया गया था। राजकुमार नारायण की चाची आनंदीबाई उसके राजकुमार बनने से खुश नहीं थी। उन्होंने कहा तो यह भी जाता है कि चाची आनंदीबाई ने ही नारायण को मरवाया था।
राजकुमार अपनी जान बचाने के लिए पूरे महल में छिपता रहा। हालांकि उसकी जान नहीं बच सकी क्योंकि हत्यारों ने आखिरकार उसे ढूंढ़ ही निकाला। राजकुमार अपने चाचा को आवाज लगाता रहा, लेकिन कोई भी उसकी मदद के लिए आगे नहीं आया। आज भी शनिवार वाड़ा में अमावस की रात को दर्द भरी आवाजें गूंजती है। लोगों के लिए यह किसी रहस्य से कम नहीं है।